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यहाँ
और
EARNहा जाता है कि अँगरेज़ी-भाषा का यहाँ
EDITAL. शब्द-भाण्डार बड़ा विशाल है और
हिन्दी का उसकी तुलना में अत्यन्त क्षद्र। यह बात ठीक भी है। परन्तु कुछ बातें ऐसी भी हैं जिनके
सम्बन्ध में हिन्दी का शब्द-भाण्डार अँगरेज़ी से अधिक भरा-पूरा है। इसी तरह की एक बात रिश्तेदारी है। विभिन्न रिश्तों को ज़ाहिर करने के लिए
हिन्दी में तो बहुत काफ़ी शब्द हैं, परन्तु अँगरेज़ी में फ़ादर लेखक, श्री सावित्रीनन्दन (पिता), मदर (माता), सन (पुत्र), डाटर (पुत्री), ब्रदर
(भाई), सिस्टर (बहन), अंकिल (चाचा), ऑन्ट (चाची), नेव्यू (भतीजा), नीस (भतीजी), कज़िन (चचेरा भाई)
आदि एक दर्जन से कुछ ही अधिक इने-गिने ही . शब्द हैं।
इसलिए अँगरेज़ी में एक-एक शब्द से इतने काम लेने पड़ते हैं जितने के लिए हमारी भाषा में पांच-पाँच, छः-छः शब्द हैं। उदाहरणतः हिन्दी में चाचा, ताऊ, मामा, फूफा, मौसा आदि शब्दों से जिन विभिन्न सम्बन्धों का प्रकटीकरण होता है, उन सबके लिए अँगरेजी में केवल एक ही शब्द है, अंकिल'। इसी प्रकार चाची, ताई, मामी, बुबा, मौसी श्राद सभी के लिए अकेला 'श्रान्ट' शब्द ही काम देता है । और चाचा या ताऊ या मामा या बुना या मौसी किसी के भी बच्चे हों, चाहे लड़के हों चाहे लड़कियाँ. सबके लिए एक ही शब्द है 'कज़िन।
मम्बन्ध-सूचक शब्दों की कमी के कारण अँगरेजी में 'इनलॉ' से बड़ा काम लेना पड़ता है। पुत्र 'सन' है तो पुत्र-तुल्य जामाता ‘सन इन-लॉ' हो गया। पिता "फादर' है तो पितृ-तुल्य श्वसुर 'फादर-इन-लॉ' हो गया। और जब जामाता 'सन-इन-लॉ' हे तब पुत्र वधू तो 'डॉटर-इन-लॉ'
हो ही गई। कहना न होगा कि मूल शब्दों की भांति ही श्री सावित्रीनन्दन कौन हैं ? यह 'इन-लॉ' की सहायता से बननेवाले शब्दों को भी अनेका'सरस्वती' के पाठक शायद न जानते
नेक अथों का भार वहन करना पड़ता है। हों। आप 'भारत' के सम्पादक पंडित
_ 'ब्रदर-इन-ला' का ही लीजिए । हमारी भाषा में जिनको केशवदेव शर्मा हैं और अपने सुन्दर
साला या बहनाई या साढ या देवर या जेट कुछ भी कहेंगे साहित्यिक लेख प्रायः इसी नाम ।
उन सबके लिए अँगरेज़ी में यही एक शब्द है। जो शब्द से लिखते हैं।
साले के लिए है वही बहनोई के लिए, यह बात हम
हिन्दुत्रों को कुछ विचित्र-सी मालूम हो सकती है, परन्तु RARREARRIERRESSERTRENERATEVEREIN है ऐसी ही बात । साले और बहनोई के सम्बन्ध को लेकर
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