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________________ संख्या १] रंगून से आस्ट्रेलिया सहायता करते रहते हैं। देश के भिन्न भिन्न स्थानों से भी बादल और हवा के सम्बन्ध में उस दफ्तर में घड़ी घड़ी पर तार पाया करते हैं । ख़बरों और स्वकीय जाँचों का सारांश निकालकर वायुविज्ञानविशारद अपनी राय कायम करता है और उसकी सब वायुयानवाहकों को सूचना देता है। वायुयानवाहक यथार्थ सूचना पाकर जिस उँचान से उन्हें मुनासिब समझ पड़ता है, अपना वायुयान चलाते हैं। जो रिपोर्ट कप्तान को मिली उससे ज़ाहिर हुआ कि दो हज़ार फुट के ऊपर हवा का वेग बढ़ता जाता था और १५,००० फुट तक भी उससे बचने की गुंजाइश नहीं थी। कप्तान ने तय किया कि २,००० फुट के नीचे से ही उड़ना होगा। खैर ११ बजे हम लोग अपनी अपनी जगह पर बैठे। बेटेविया से सोइराबेया को ज़मीन के ऊपर से राह थी। केवल १,६०० फुट की उँचाई से उड़ने की वजह से नीचे का दृश्य साफ़ साफ़ दिखाई देता था। झोकों से वायुयान करवटें लेता तथा ऊपर-नीचे हो जाता था। यान के कई फुट एकाएक गिरने पर दिल धड़कने लगता था। वैसे ही उसके एकाएक ऊपर उड़ने पर हम चौंक पड़ते थे। ऐसे ही मौकों पर 'एयर-सिकनेस' मुसाफ़िरों को हो जाती है, पर ईश्वर की दया से एयर-सिकनेस और सी-सिकनेस से एक भारी जङ्गली वृक्ष गिराया जा रहा है (आस्ट्रेलिया)] मैं बिलकुल बरी हूँ। काँच की खिड़कियों से नीचे हरे-भरे खेत लहलहाते ज्यादा रहती है। बहुत शीघ्र ही इसका अनुभव होने लगा। नज़र आते थे । बस्तियाँ दूर दूर पर साफ़-सुथरी थीं। कहीं वायुयान बहुत कुछ स्थिरता के साथ जा रहा था। जावाकहीं डच ज़मींदारों के बँगले सुंदर फुलवारियों के बीच में द्वीप के बाद बाली-द्वीप अाया। खेती यहाँ बहुत अच्छी नज़र पड़ते थे। अावपाशी के लिए बहुत-सी नहरें कटी नज़र आई। भमि उपजाऊ जान पड़ी। इस द्वीप में हर थीं। गन्ने के अगणित खेत इधर-उधर अधकटे खड़े थे। तरह की खेती होती है। थोड़ी देर में फ़र्स्ट आफ़िसर ने मिट्टी का तेल भी जावा में निकलता है, इसलिए एक जगह आकर हम लोगों को एक बस्ती दिखाकर कहा कि पहले तेल के कई कुए भी नज़र पड़े। सोइरावेया के नज़दीक बाली के राजभवन यहाँ थे, जो अब 'विश्रामगृह' बना चीनी के कारखाने भी कई दिखे । ढाई बजे वायुयान दिये गये हैं। साढ़े पाँच बजे वायुयान रामबंग नामक सोइराबेया के बंदरगाह में पहुँचा। नाश्ते का सामान एयरोड्रोम में उतरा। रात को यहाँ रुकना था। करीब १२ तैयार था। कप्तान ने जल्दी करने को कहा, जिससे अँधेरा घंटे में आज १२०० मील का सफ़र तय हुया । होने के पहले पड़ाव पर पहुँच जायँ । हेड-विंड के कारण मोटर तैयार थे, जिन पर बिठाकर हम विश्रामगृह पहुँवायुयान की गति में बाधा पड़ रही थी। जल्दी जल्दी चाये गये । एयरोड्रोम से विश्रामगृह करीब ५ मील दूर खा-पीकर वायुयान पर सब कोई आये और वायुयान उड़ा। था। मोटर से जाते हुए कई बस्तियाँ मिलीं, जिनमें वहाँ हवा के झोकों से बचने के लिए कप्तान ने समुद्री के लोगों के घर और रहन-सहन, वस्त्राभूषण इत्यादि का रास्ता पकड़ा। ज़मीन के बनिस्बत पानी पर हवा की समता कुछ ज्ञान हो सका। पुरुष व स्त्रियाँ छोटे कद के थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat w umaraganbhanda
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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