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________________ २६ सरस्वती [आस्ट्रेलिया की भेड़ों का एक झुंड ] मार्गगत दुर्घटनाओं के कारण मिस्टर बर्टराम से जिन्होंने लन्दन २ सितम्बर को छोड़ा था, सिंगापुर में मिल गई थीं। फ़्लाइंग बोट के पानी में गिर जाने के कारण इनको विंडसी अलेक्जेंड्रिया जहाज़ से आना पड़ा। फिर बैहरीन में एयरोड्रोम न मिलने के कारण मरुस्थल में उतरना पड़ा, जहाँ से ३४ घंटे के बाद आर० ए०एफ० के वायुयान द्वारा अन्य यात्रियों के साथ बचाई गई। कानपुर में इंजिन के बिगड़ जाने के कारण एक रोज़ पड़ी रहीं और रंगून में चार रोज़ । इतनी विपत्ति झेलने पर भी ये ज़रा भी हतोत्साह नहीं हुई थीं। मिसेज़ स्मिथ और मिस्टर बर्दराम दोनों मिलनसार व हँसमुख थे, और हम लोग आपस में खूब हिल-मिल गये । वायुयान यथासमय उड़ा। बहुसंख्यक विदेशयात्राओं में मैंने अनेक हवाई सफ़र किये हैं। इसलिए यादी हो जाने के कारण नये चढ़वैये की तरह मुझे वायुयान के ज़मीन छोड़ने पर कोई धड़कन नहीं मालूम पड़ी। गोधूलि की वेला थी। सूरज की सिर्फ़ लालिमा नज़र आती थी। धीरे धीरे प्रकाश बढ़ने लगा। छोटे छोटे कई द्वीप- समुदाय नीले समुद्र में फैले हुए थे । बिखरे हुए बादलों की छाया सूरज के निकलने पर समुद्र में काले धब्बों की तरह दिखती थी। सात बजे कंट्रोल रूम जहाँ बैठ कर वायुयान वाहक वायुयान चलाते हैं, खुला । इस वायुयान में भी चार इंजिन थे और दो चलानेवाले। चलानेवालों में एक कैप्टन था और दूसरा फ़र्स्ट ग्राफ़िसर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [भाग ३८ कन्टास के सभी चलानेवाले आस्ट्रेलियन हैं। फ़र्स्ट आफ़िसर ने डिब्बे से निकालकर सैंडविच व फल प्रत्येक मुसाफ़िर को दिये और खा लेने के बाद एक एक गिलास लेमोनेड । वायुयान की उड़ान समुद्र के ऊपर से ही ज़्यादातर थी। कभी कभी जावा द्वीप का किनारा दिख जाता था । १० बजे के करीब बेटेविया शहर का दर्शन हुआ। सवा दस बजे वहाँ के एयरोड्रोम में वायुयान उतरा। एयरोड्रोम के एक कमरे में नाश्ते का सामान लगा हुआ था । हम लोग खाने के लिए बैठ गये। उधर वायुयान में पेट्रोल और तेल भरा जाने लगा। खाना डच तरीके का था और उम्दा बना हुआ था। इतने में कप्तान को मौसिम की रिपोर्ट दी गई। पढ़कर उसने मुँह बिगाड़ा। मालूम हुआ कि 'हेड विंड' है। हवा व पानी की जाँच के लिए जगह जगह पर मेटेरिनोलाजिकल दफ़र खुले हुए हैं। ज़मीन से १०-१२ हज़ार फुट की ऊँचाई तक जिसके बीच में वायुयान उड़ा करते हैं, हवा एक-सी नहीं रहती। कभी कभी तो दस हज़ार फुट के ऊपर हवा का रुख बिलकुल विपरीत रहता है। ज़मीन पर हवा पूर्व से पश्चिम है तो वहाँ पश्चिम से पूर्व हो सकती है। इसी तरह हवा के वेग में भी परिवर्तन होता रहता है। नीचे श्राँधी चलती हो तो ऊपर शान्त भाव हो सकता है। बहुधा मेटिरियोलाजिकल दक्करवाले गुब्बारे उड़ाकर इसकी जाँच किया करते हैं। वायुयानवाहक भी ख़बरें देकर मेटिरियोलाजिकल दफ़रों की [आस्ट्रेलिया का एक जङ्गल का मार्ग ] www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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