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________________ सरस्वती [भाग २८ 'ग्रामों की ओर चलो' की आवाज़ उठाई गई है, तभी से वहाँ के राजनीतिज्ञों का ध्यान अपनी इस ग़लती की ओर गया है। पर फ्रांस ने उस "प्रौद्योगिक क्रान्ति" के समय अपने किसानों की रक्षा की और वह आगे भी करने का प्रस्तुत है । फ्रांस ने अच्छी तरह से महसूस कर लिया है कि उसके किसानों की शक्ति ही उसकी शक्ति है। इसलिए उसने अपने किसानों के हितों की रक्षा के सभी उपाय हूँढ निकाले हैं। यही सबब है कि फ्रांस के देहाती जीवन का अपना महत्त्व है। फ्रांस के किसान शक्तिशाली और मंयमी हैं। उन्होंने ईमानदारी और मेहनत से अपने खेतों पर काम किया है और अपने राष्ट्रीय ख़ज़ाने को सोने-चांदी से भर दिया है। खज़ाना ही क्यों, फांस की सेना भी----उमके किसान ही हैं । फ्रांस का प्रत्येक किसानचाहे वह शहर का हो या देहात का-अपने को अपनी गष्ट्रीय सरकार का हर वक्त का सिपाही समझता है। वह उसके लिए हमेशा बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहता है। वह फौजी शिक्षा स्वयं ही लेता है और अपने को अपनी दिनचर्या में सिपाही मानकर ही काम करता है । अपने लिए खुद ही राष्ट्रीय सिपाही की वदी बनवाता है और उत्सवों के अवसर पर गर्व के साथ उसे पहनकर • फ्रेंच' कहलाने में शान व इजत समझता है । इस तरह प्रत्येक देहाती फ्रांस का राष्ट्रीय सिपाही है। उसके बच्चों में कुत्ते सिर्फ विनोद के लिए नहीं पाले जाने। में भी यही मनोवृत्ति जाग्रत होली जाती है। उनमें शुरू से उनसे गाड़ी खींचने का भी काम लिया जाता है। ही फ्रांसिज्म' का बीज बोया जाता है. जो यौवनावस्था है कि वहाँ के अमीरों गरीबों में एक सामञ्जस्य का मान तक शुद्ध राष्ट्रीयता का रूप धारण कर लेता है। स्थापित है। योरप के अन्य राष्ट्रों में यह मान नहीं है। फ्रांस का किसान संसार के झगड़ों और उनके १८वीं शताब्दी के पहले इंग्लैंड और स्काटलैंड समाचारों से दूर रहना पसन्द करता है। यह प्रास्ट्रेलिया, में कृषकों की संख्या बहुत बड़ी थी; किन्तु १९वीं शताब्दी रूस, भारत, अमरीका, अफ्रीका आदि देशों की हलचलों में जो 'श्रौद्योगिक क्रान्ति' हुई उसमें वहाँ के कृपकों ने की अोर से उदासीन रहता है। यह बात अवश्य है कि काफ़ी बड़ी तादाद में खेती छोडकर कल कारखानों और वह फ्रांम के प्रत्येक हिस्से की पूरी जानकारी रखता है। मिलों में जाना पसन्द किया। कारखानों और मिलों में फ्रांस में होनेवाली प्रत्येक घटना की अोर वह पूरा ध्यान उन्हें अच्छी मजदूरी मिलती थी और किसी तरह की दिये रहता है। परासीसी किसान अपने राष्ट्र के लिए ज़िम्मेदारी भी न थी। इसी लालच में आकर किसानों ने अत्यन्त उत्सुक और अन्य राष्ट्रों की अोर बुरी तरह खेती-बारी का बहिष्कार किया। ग्राज उसी का यह उदासीन रहता है। उसकी यह उदासीनता बनावटी नतीजा है कि इंग्लैंड तथा स्काटलैंड अपने निजी खर्च नहीं, बरन स्वाभाविक है। वह खेत जोतने के लिए पुराने भर का भी अनाज नहीं उत्पन्न कर पाते और इसी लिए उन्हें हलों से ही काम लेता है. एंजिनवाले ट्रेक्टर वह काम में अन्य देशों की उपज पर निर्भर रहना पड़ता है। जब से नहीं लाता। वह यह अच्छी तरह समझता है कि 'मशीनों .. प्रमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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