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________________ साहित्यिक हिन्दी को नष्ट करने के उद्योग लेखक, डाक्टर धीरेन्द्र वर्मा एम० ए०, डी० लिट० (पेरिस ) प्रयाग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डाक्टर वर्मा का यहाँ परिचय देने की जरूरत नहीं है । आपकी धारणा है कि इस समय देश में कतिपय प्रवृत्तियाँ साहित्यिक हिन्दी के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं। वे क्या हैं ? यही आपने इस लेख में दिखाने की चेष्टा की है । वा सौ से भी अधिक वर्ष हुए जब १९वीं शताब्दी के प्रारंभ में खड़ी बोली हिन्दी गद्य के सम्बन्ध में निश्चित प्रयोग हुए थे । इन प्रारंभिक प्रयोगों में से सदल मिश्र की शैली से मिलती-जुलती हिन्दी को अपनाकर भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने १९वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इस सम्बन्ध में एक निश्चित मार्ग निर्धारित कर दिया । २०वीं शताब्दी के प्रारंभ में पण्डित महावीर - प्रसाद द्विवेदी ने इस मार्ग के रोड़े कंकड़ बीनकर इसे सबके चलने योग्य बनाया। पिछले २०-२५ वर्षों से हिन्दी की समस्त संस्थायें, पत्र-पत्रिकायें, लेखकवृन्द तथा विद्यार्थीगण इसी आधुनिक साहित्यिक हिन्दी के माध्यम को अपनाकर अपना समस्त कार्य कर रहे हैं तथा स्वाभाविकतया इसे अधिक प्रौढ़ तथा परिमार्जित करने अधिकाधिक सहायक हो रहे हैं। स किन्तु इधर कुछ दिनों से हिन्दी की इस चिर निश्चित साहित्यिक शैली को नष्ट करने के सम्बन्ध में कई चोर से उद्योग हो रहे हैं। इंशा, राजा शिवप्रसाद तथा अयोध्या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat सिंह उपाध्याय के ‘ठेट हिन्दी' प्रयोगों की तरह कुछ दिनों तक इस प्रकार के उद्योग व्यक्तिगत थे, किन्तु हिन्दियों की उदासीनता के कारण ये धीरे धीरे अधिक सुसंगठित होते जा रहे हैं और यदि इन घातक प्रवृत्तियों का नियंत्रण न किया गया तो साहित्यिक हिन्दी शैली को मारी धक्का पहुँचने का भय है। आत्मरक्षण की दृष्टि से समस्त प्रमुख विरोधी शक्तियों की स्पष्ट जानकारी अत्यन्त आवश्यक है। साहित्यिक हिन्दी के विरोध ने निम्नलिखित रूप धारण कर रक्खे हैं— १- प्रान्तीय शिक्षा विभाग की 'कामन लैंग्वेज़' वाली नीति तथा स्कूलों में अँगरेज़ी पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग | २ - हिंदुस्तानी ऐकेडेमी के कुछ प्रमुख संचालकों की 'हिन्दुस्तानी भाषा' गढ़ने की नीति । ३- हिन्दी-साहित्य सम्मेलन के वर्तमान कर्णधारों की 'राष्ट्रभाषा' की कल्पना जो धीरे धीरे उर्दू की ओर झुक रही है। ४ भारतीय साहित्य परिषद्, वर्धा, की 'हिन्दी यानी ३१४ www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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