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________________ २४ भारत कि उस समय गंगा की तलहटी से ईरान तक श्रार्यावर्त्त की सीमा थी । ज्यों-ज्यों श्रार्य जाति का अधिकाधिक विस्तार होता गया, त्यों-त्यों आर्यावर्त्त की सीमा भी विस्तृत होने लगी और शतपथ ब्राह्मण के रचमा-काल में वह मेसोपोटामिया तक जा पहुँची। इसके पश्चात् वह लघुएशिया तक जा पहुँची थी। विष्णु पुराण (तीसरा अध्याय) में की पूर्व से पश्चिम की सीमा के विषय में लिखा हैपूर्वे किराता यस्यान्ते पश्चिमे यवनाः स्थिताः ||८|| अर्थात् इसके पूर्वी भाग में किरात तथा पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं । किरात आसाम की प्राचीन जति थी। आज भी वहाँ की यात्रा, जिमदार, खाम्बु श्रादि भाषायें किराती भाषायें कहलाती हैं । यवन यूना नियों का प्राचीन नाम है, यह प्रसिद्ध ही है। यूनानी 'ग्रीक' कहलाने के पूर्व 'यवन' कहलाते थे, इसी लिए लघुएशिया के निकट जहाँ वे रहते थे वह भूभाग 'ग्रायोनिया' कहलाता था । बाइबिल में भी इनका नाम 'जवन' लिखा हुआ है। जब भारत की सीमा पश्चिम में लघु-एशिया तक थी तब मेसोपोटामिया भी भारत के अन्तर्गत था । इस स्थिति में प्रलय की घटना को वर्तमान संकुचित भारत की सीमा में घसीटने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए । मेसोपोटामिया तथा भारत के एक देश होने का प्रमाण यह भी है कि दोनों देशों के राजा भी एक ही थे । भारत का राजवंश जिस प्रकार प्रलय से प्रारम्भ होता है, उसी प्रकार सुमेरु (मेसोपोटामिया ) का भी । केवल एक राजा के नाम का अन्तर पाया जाता है। भारत का प्रथम राजा मनु था और सुमेरु का इक्ष्वाकु था। इनके पश्चात् राम के तीन पीढ़ी पश्चात् तक के राजाओं के नाम क्रमपूर्वक दोनों देशों की वंशावलियों में एक-से पाये जाते हैंभारतीय वंशावली सुमेरु- वंशावली मनु - इक्ष्वाकु विकुक्षि (भाई निमि) पुरंजय : श्रनेना सरस्वती पुन पुन अनु उपसंहार । प्रलय के पूर्व और पश्चात् भारत में कौन-सी सभ्यता थी, इसका इस लेख में भली भाँति विवेचन हो चुका है। नर्मदा सभ्यता न तो वास्तव में कोई सभ्यता थी, न प्रलय के पूर्व इसका अस्तित्व था । प्रलय उत्तर-भारत में घटित ही नहीं हुआ था । अतः नर्मदा उपत्यका का प्रलय में न डूबना पौराणिक कपोल कल्पना ही है । इन पुराणों के आधार पर ही श्री करन्दीकर ने अपनी 'नर्मदासभ्यता' के सिद्धान्त की सृष्टि कर डाली है। यदि उन्होंने पुरातत्व का आधार लिया होता तो कभी नर्मदा-सभ्यता के विषय में विद्वानों के सम्मुख वे उक्त निर्णय न रखते जिसके अनुसन्धान में उनको सफलता प्राप्त हो रही है । प्रलय के पूर्व वास्तव में भारत में वह सभ्यता थी, जिसका हमने इस लेख में 'सरस्वती सभ्यता' नाम दिया है । सिन्धु सभ्यता सरस्वती सभ्यता का ही विकसित रूप थी और सुमेर, हिटाइट, क्रीटन, मिस्री आदि सभ्यतायें सिन्धसभ्यता की ही पुत्रियाँ थीं । इस महत्त्वपूर्ण विषय पर मैंने अभी हाल में 'मनुष्य और सभ्यता की जन्मभूमि भारत' नामक ग्रन्थ लिखा है, जिसमें संसार भर के पुरातत्त्व तथा प्राचीन साहित्य का मंथन करके अकाट्य युक्तियों द्वारा यह सिद्ध किया है कि मनुष्य का विकास भारत में ही हुआ था और यहीं उसकी सभ्यता की उत्पत्ति हुई थी बक्कुसि (भाई निमी) और यहीं से वह संसार भर में फैली । प्रलय की घटना का काल ई० पू० ४२०० नहीं था, जैसा कि श्री करन्दीकर मानते हैं, किन्तु ई० पू० ३४७५ था । उक्कुसि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ सुमेरु- वंशावली में इक्ष्वाकु को प्रथम राजा माने जाने का यह कारण है कि मनु के काल में मेसोपोटामिया में प्रलय की बाढ़ आने के कारण श्रार्य लोग भारत वापस आ गये थे । इसके पश्चात् ही शीघ्र प्रलय का भय जाते रहने पर इक्ष्वाकु के साथ वे पुनः मेसोपोटामिया पहुँचे, जहाँ उन्होंने सुमेरु - सभ्यता की स्थापना की । यह सुमेरुआर्य सभ्यता सुराष्ट्र (काठियावाड़) से इक्ष्वाकु के साथ समुद्र-मार्ग-द्वारा मेसोपोटामिया पहुँची थी । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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