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________________ संख्या १] सरस्वती-तट की सभ्यता रात-नदी में आई, जिसके कारण इसके तट पर बसने- प्रलय के विषय में श्रीजायसवाल जी का सिद्धान्त ताली प्रोटो-इलामाइट-जाति नष्ट हो गई । यही प्रलय की मेसोपोटामिया में प्रलय के चिह्न मिलने के पश्चात् गढ़ थी, जिसका वर्णन मेसोपोटामिया तथा भारत दोनों श्रीकाशीप्रसाद जी जायसवाल ने यह सिद्धान्त पेश किया देशों के प्राचीन ग्रन्थों में पाया जाता है। समेरु-जाति की है कि प्रलय की बाढ मेसोपोटामिया से भारत में राजगिलगमेश की कथा में यह मूल प्रलय-कथा पाई जाती है पूताने तक फैली थी, क्योंकि प्रलय की कथा मेसोपोटामिया और इसमें से ही यह बेबीलोनियन, हिटाइट (खत्ती) तथा तथा भारत दोनों देशों में पाई जाती है। श्रीजायसवाल हेब-साहित्य में पहुंची। जी से मेरा प्रश्न है कि भारत के अतिरिक्त यह कथा प्रलय के कारण प्रोटो-इलामाइट-जाति का पेसेफ़िक में स्थित पालीनीशिया के द्वीप, मेक्सिको तथा भारत-आगमन पेरू में भी पाई जाती है तो क्या हम यह मान सकते हैं इलाम तथा ईरान के जिन ऊँचे प्रदेशों पर प्रोटो- कि प्रलय मेसोपोटामिया से प्रारम्भ होकर भारत को डुबाता इलामाइट-जाति का जो जन-समुदाय रहता था और जो हुआ, पोलीनीशिया पर फैलता हुअा, मेक्सिको और पेरू उँचाई पर रहने के कारण प्रलय से बच गया था वह तक जा पहुँचा था, क्योंकि इन देशों में भी यह कथा पाई पुनः अपनी मातृभूमि आर्यावर्त को वापस चला गया। जाती है । इतना ही नहीं, योरप के अनेक प्रदेशों में भी इस समय यहाँ वैवस्वत मनु का राज्य था और ऋषि गण यह कथा प्रचलित है । प्रलय के विस्तार को मेसोपोटामिया रातपथ ब्राह्मण की रचना कर रहे थे। प्रलय के कारण से भारत तक मानना बिलकुल अयुक्त है। मेसोपोटामिया मेसोपोटामिया में आर्य-जाति के जन-धन की भयंकर और राजपूताना के मध्य में ईरान और बिलोचिस्तान का हानि हुई थी, अतः इस जातीय घटना को शतपथ सैकड़ों मील लम्बा प्रदेश है, जिसमें अनेक पर्वतमालायें ब्राह्मण में स्थान दिया गया । शतपथ ब्राह्मण में जो प्रलय- भी हैं। क्या हम मान सकते हैं कि प्रलय मेसोपोटामिया कथा पाई जाती है उसमें यह कहीं नहीं लिखा है कि प्रलय से प्रारम्भ होकर इस सैकड़ों मील लम्बे प्रदेश को पार की यह घटना भारतवर्ष में घटित हुई थी। उसमें लिखा करता हुअा तथा वहाँ की पर्वत-मालाओं को डुबाता हुआ है कि प्रलय के समय मनु की नाव उत्तरी पर्वत की ओर राजपूताने तक आ पहुँचा था ? यदि यही बात थी तो वह चल दी। इस उत्तरी पर्वत को भारतीय विद्वानों ने बिना राजपूताने से भी आगे क्यों नहीं बढ़ा ? इन प्रदेशों के सभझे-बूझे ही हिमालय-पर्वत मान लिया है। भारत के भूगर्भ-द्वारा किसी ऐसी घटना का होना बिलकुल प्रमाणित भगर्भ-द्वारा यह बात सिद्ध नहीं होती है कि किसी समय नहीं होता। सारे उत्तर-भारत पर जल-प्रलय आया था। यदि प्रलय प्राचीन भारत की सीमा और मेसोपोटामिया वास्तव में भारतवर्ष की ही घटना थी तो मुहें-जो डेरो* मैं इस बात का वर्णन कर चुका हूँ कि प्रलय की और हड़प्या की खुदाइयों में इसके चिह्न प्राप्त होने चाहिए। कथा भारत में किस प्रकार आई। शतपथ ब्राह्मण तथा परन्तु इन खुदाइयों में कहीं भी प्रलय के चिह्न नहीं सुमेरु-साहित्य की प्रलय-कथायें एक दूसरे के समान ही प्राप्त हुए हैं । परन्तु मेसोपोटामिया में इसके प्रत्यक्ष चिह्न हैं । केवल नायक के नामों में फ़र्क है। शतपथ ब्राह्मण की पाये गये हैं और वे भी ठीक वहाँ के प्रथम राजवंश की कथा का नायक मनु है और सुमेरु-प्रलय-कथा का नायक वस्तुत्रों के नीचे के स्तर में । मेसोपोटामिया तथा भारत ऊतानपिश्तिम है । मेसोपोटामिया में जिस प्रोटो-इलामाइटदोनों देशों के राजवंशों का प्रारम्भ प्रलय से ही होता है। जाति को इस घटना का सामना करना पड़ा था वह भारअतः प्रलय के चिह्नों का मेसोपोटामिया में वहाँ के प्रथम तीय वैदिक आर्य-जाति ही थी, यह मैं सिद्ध कर चुका राजवंश की वस्तुओं के नीचे मिलना स्वाभाविक ही है। हूँ। अाज के भारत को हमको प्राचीन काल का भारत * हिन्दी में इसको मोहन जो दारो या दडो कहते हैं जो बिल नहीं समझना चाहिए। उस समय लघु-एशिया से अासाम कुल अशुद्ध है। इस स्थान का वास्तविक नाम 'मुहें-जो-डेरो है. तक भारत की सीमा थी। ऋग्वेद में ईरान तक का निसका अर्थ सिन्धी-भाषा में मुर्दो का स्थान है। भौगोलिक विवरण पाया जाता है। इससे सिद्ध होता है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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