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सरस्वती
[भाग ३८
इसके साथ ही उसे धो बियों और दर्जियों आदि पर भी गत १२ फ़रवरी को पटना नगर में एक नवजात टैक्स लगाना चाहिए था । कदाचित् उसने यह सोचा हो शिशु सड़क पर पड़ा पाया गया। कोई उसे गर्म कपड़ों में कि यदि सब एक साथ हड़ताल कर देंगे तो शहर में पूरी लपेटकर सड़क पर रख गया था। वह बच्चा सरकारी मनहूसियत छा जायगी, इसलिए उसने फ़िलहाल हज्जामों अस्पताल में रखा गया है और अनेक निःसन्तान लोगों को ही छेड़ा है। यह हड़ताल यदि एक महीने भी जारी ने उसे अपनाने के लिए मजिस्ट्रेट के पास दस्ति दी रही तो मैसूर पूरा पूरा दढ़ियलों का नगर हो जायगा। है। मजिस्ट्रेट ने सब दोस्तों को नामंजूर कर दिया है ।
पर वे एक हज्जाम की स्त्री की दास्त पर विचार कर रहे हैं। सम्भवतः बच्चा उसी को दिया जायगा। यह दुख की बात है कि जो ऐसे बच्चों को जन्म देते हैं वे उसका पालन करने का साहस नहीं कर सकते, क्योंकि उस अवस्था में समाज में वे घोर तिरस्कार के भागी हो सकते हैं। खैर, गैर कानूनी बच्चों की रक्षा की ओर लोगों का ध्यान तो जाने लगा।
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अमृतसर के एक अन्धे नवयुवक को पुलिस ने आत्महत्या करने के प्रयत्न में गिरफ्तार किया। मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने पर नवयुवक ने अपने बयान में कहा"न तो मैं अपनी जीविका कमा सकता हूँ और न भीख माँगने से रोटी मिलती है। सात दिन तक भिक्षा मांगने पर भी जब कुछ नहीं मिला तब मैं अफ़ीम खाने के लिए मजबूर हश्रा। कृपया या तो मुझे जन्म भर के लिए जेल में बन्द रखिए या मुझे भोजन देने का प्रबन्ध किया जाय. या लाहौर के मेया-अस्पताल में मेरी आँखें अच्छी कराई जायँ । नहीं तो जब मैं इस बार छूट्रॅगा तब रेलवे लाइन पर कटकर अपनी जान दे दूंगा।'
जिस संवाददाता ने यह समाचार पत्रों में भेजा है उसका कहना है कि मजिस्ट्रेट को उस पर दया आ गई
और उन्होंने उसे ६ मास की सजा दे दी। बिना भोजन के घुल घुलकर मरना जुर्म नहीं है । पर इस प्रकार के जीवन को शीघ्रतापूर्वक ख़त्म कर देने का प्रयत्न जुर्म है । यह क्यों ? कानून के विद्वानों का ध्यान इधर जाना चाहिए ।
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कच समेटि कर, भुन उलटि, खए सीस पट डारि। काको मन बाँधै न यह, जुरो बाँधनि हारि
चित्रकार-श्री केदार शर्मा
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