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________________ सरस्वती [ भाग ३८ । - AL H ___ "हमें आज तक ऐसा एक भी पुरुष नहीं मिला जिसे त्रियों को सहायता देकर, चाहे वे स्त्रियाँ उसकी बहनें हों और चाहे उपपत्नियाँ, प्रकट या गुम रूप से, गव न होता हो। हमें अाज तक ऐसी एक भी स्त्री नहीं मिली जो एक दुकान या कारखाने के मालिक की ग्रार्थिक निर्भरता को छोड़कर किमी एक पुरुष की ग्रार्थिक निर्भरता ग्रहण कर लेने को प्रतिधायुक्त उन्नति न समझती हो। इन बातों के विषय में स्त्रियों और पुरुषों के एक-दूसरे से झूट बोलने से क्या लाभ ? हमने उनको नहीं बनाया है, झूट बोलने से वे बदल नहीं जायेंगी।" ओरेज महाशय के ये शब्द बार बार मनन करने आगरा का मुरारीलाल खत्री हाईस्कूल (लड़कियों के लिए) जुलाई सन् १९३४ से योग्य है । ही स्थापित हुया है। पर इस थोड़े समय में ही इसने अच्छी उन्नति कर ली है। इस जी० के० चेस्टटन नामक स्कूल की कन्यायें संगीत-प्रतियोगिताओं में बराबर भाग लेती रही हैं और उन्होंने कितनी एक दूसरे विद्वान् की सम्मति ही शील्डे, तमगे आदि जीते हैं।] में फ़ोमिनिम अर्थात् नारी प्रभाव में अास्था का अर्थ है प्रकार की परतंत्रता में ढकेल दी गई हैं जो पहले से भी स्त्रीमुलभ विशेष गुणों को छोड़ देना। यह स्त्रियों की बहुत खराब है । सैनिक परिभाषा का प्रयोग करते हुए हम प्रशंसा करना नहीं, बरन उनको स्त्रीत्वहीन बनाना है। कहें तो कह सकते हैं कि स्त्रियों की यह विजयी प्रगति स्त्रियों के अधिकारों के लिए लड़नेवाली बड़ी से बड़ी स्त्री खाइयों में सुरक्षित शरण स्थान से निकलकर उनका भी स्त्रियों को अधिक स्त्री-सुलभ गुण-सम्पन्न बनाने में बरसते हुए गोलों के नीचे कच्ची मिट्टी के मोचों में लौट दिलचस्पी नहीं रखती। हमारे देश में इस समय जितनी श्राना है। स्त्रियाँ इस बात को जानती हैं, चाहे उनके भी स्त्रियाँ मुखिया बन रही है उनमें से अधिकांश ऐसी चापलूस हमें कितना ही धोखे में रखने का यत्न क्यों न करें। हैं जिनका गाहस्थ्य-जीवन दूसरी स्त्रियों के लिए कोई अच्छा स्वगीय श्रीयुत ए० ग्रार० ग्रोरेज पन्द्रह वर्ष तक उदाहरण नहीं उपस्थित करता। एक बार मुझे एक लीड'न्यू एज' नामक पत्र के सम्पादक रहे थे। उन्होंने इस रानी के सामने एक गृहस्थ स्त्री की प्रशंसा करने का अवसर विषय पर अन्तिम शब्द कहा है । मी मताधिकार-अान्दो- प्राप्त हुआ। इस पर उन्होंने अँगरेज़ी में कहा – “हो सकता लन के जोश के दिनों में उन्होंने लिखा था है कि वह अच्छी भार्या हो, परन्तु हम उसे अच्छी स्त्री नहीं LS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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