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________________ सरस्वती | भाग ३८ "पिछली पीढ़ी में पार्लियामेण्ट का प्रभुत्व और प्रभाव बड़ी शीघ्रता से और विपत्तिजनक रूप से क्षतिग्रस्त हुअा है; और इसकी कार्यवाही केवल समय का व्यर्थ नाश और हमारे वास्तविक शासको --मंत्रिमरा दल और नौकरशाहीके कार्य में विलम्ब कराने और बाधा डालने की एक विधि समझी जाने लगी है। मंत्रिमण्डल के एकाधिपत्य ने पार्लियामेण्ट को नि:सार और शक्तिहीन बना दिया है।" यह बात जितनी आज स्पष्ट हैं, उतनी सन १९१० में नथी। इसलिए यदि उस समय अँगरेज़ स्त्रियों ने पालियामेण्ट म प्रतिनिधि भेजने का अधिकार पाने का ही खजाने । की कुंजी समझा तो इसके लिए उनका उपहास नहीं किया जा सकता। उस समय पुरुषों को भी यही ग़लत फहमी थी। परन्नु मताधिकार प्रात करने का अान्दोलन तो अाक्रमणशील स्त्रियों की एक भाव व्यञ्जना थी, राजनीति के सिवा दुरे क्षेत्रों में भी यही भाव स्पष्ट प्रकट हो रहा था। विलायत में इस समय बहुत थोड़ी ऐसी स्त्रियां होंगी जो समझता है कि मताधिकार ने उनको कोई टांग लाभ पहुंचाया है। परन्तु वहा मी स्त्रयाँ अनेक हैं जिन्होंने 'मताधिकार प्राप्त करने के अपने जोश को कार्य के दूसरे क्षेत्रों में लगा दिया है । इनमें उन स्त्रियों की भी थोड़ीसी संख्या है जिनकी धारणा है कि उन्हें उस चीज़ से जिसे वे अपना स्वातंत्र्य अथवा 'उद्धार' कहती हैं, बहुत . कराची की कुमारी जगासिया की अवस्था अभी कराचा बड़ा लाभ हुया है। 'याज की पुरुष की दामना से छुट- कवल १४ वर्ष की है। पर इस अल्प यायु में ही इन्होंने कारा पाई हुई स्त्री, ये शब्द प्रायः स्त्रियों की पत्रिकायों में नृत्य और संगीत में बड़ी ख्याति प्राप्त कर ली है। लखनऊ लिखे मिलते हैं। इन्हीं पत्रिकायों में प्रसन्नचित्त स्नान की नुमाइश में गत २१ दिसम्बर का इन्हाने अ०भा० करती हुई लड़कियों के फोटो इम ढग के उपतं हूँ. मानो मंगीत-सम्मेलन के अवसर पर अपना नृत्य दिखाया था। स्नान करने के तालाब के गिर्द गाजरा के गच्छ मजाये यह चित्र उसी समय का है। हए हो। अँगरेजी पत्रिकायों में कभी कभी तो लड़की बड़े यह कहना गलत होगा कि जो दशा उनकी परदादियों सुन्दर वेश में स्नान करती हुई दिखाई जाती है और चित्र की थी, स्वतंत्रता की दृष्टि से यही दशा आज की युवतियों के नीचे वह कुछ लिखा रहता है जो उसकी परदादी उसे की है। निस्सन्देह याज की युवतियां अपनी परदादियों देखकर कहती। उसमें भाव यह दिखाया जाता है कि मे दो-एक छोटी छोटी बातों में कर पायदे में है। परन्तु यह एक तरुण अप्सरा है, जिसमें से माधुर्य और प्रकाश जिसे स्त्रियों का 'उद्धार' या 'नारी स्वातन्य कहते हैं. तनिक फूट फूटकर निकल रहा है, अथवा यह मनुष्य-जाति के उम १२ गम्भीरतापूर्वक विचार कीजिए। इतिहास में नवीन उपाकाल की अग्रगामिनी है। इसके त्रियां इसी बात के लिए लड़ रही थी कि हमें पुरुषों विपरीत उसकी परदादी एक पराधीन कुरूपा वृद्धा थी, जो के समान नौकरियां मिला करें. हम सभी विभागों में काम पुरुषों की उस पर लादी हुई हास्य जनक प्रथानों को कर सके। परन्तु सभी स्त्रियों की दरों और दुकानों में चुपचाप सहन कर लेती थी। श्राराम की नौकरी नहीं मिल सकती। याधुनिक प्रौद्योगिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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