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________________ संख्या ३] हमारी गली २५३ से झटका दिया और अपना हाथ छुड़ा लिया-"झाडू "जा यार, यह भी क्या गधों की बातें करता है। मैं पिटे, ज्वाना मरे। समझता है, मुझमें दम नहीं। तो यह जानता हूँ, 'खाम्रो पीअो और मज़े करो'। इससे इतना पिटवाऊँगी कि उम्र भर याद करेगा।" ज्यादा उस्ताद ने सिखाया नहीं। मैं तो मूंछों को ताव ____ मिर्जा जो एक ख़रीदार को दूध देने के बाद तनिक देता हूँ और पड़े पड़े ऐंड़ता हूँ। कहाँ की दोज़ख़ की देर के लिए घर में चला गया था, उसी वक्त लौट लगाई। अगर हुई भी तो भुगत लेंगे। अब कहाँ का रोग आया और कल्लो का अन्तिम वाक्य उसे सुनाई दिया। पाला ।” वह बोला-- "बस यार बस, क्यों ख़राब बातें मुंह से निकाल दिया ____ "क्या बात है कल्लो ? क्या हुआ ?” लेकिन कल्लो है। सब आगे आ जाता है। सारी अकड़ धरी रह बिना पीछे मुड़े तेज़ी से गली में चली गई। जायगी।" अज़ीज़ खैराती जो अपनी दुकान के सामने सो रहा "अच्छा यार ले तू इस तरह की बातें करने लगा। था, शोर से उठ गया। वह मुन्नू को खड़ा देखकर पूछने मैं अब चल दिया।" लगा-"अबे मुन्नू , क्या बात है ?" ____ "ज़री सुन तो यार, एक बात मुझे दिनों से हरियान ___मुन्नू निराशा और क्रोध से भरा खड़ा था। उसका कर रही है । कसम खा, बता देगा।" मुँह सूखकर सुन्न-सा मालूम हो रहा था। आँखें साँप "अच्छा जा तू भी क्या याद रखेगा। अल्ला कसम की आँखों की तरह ज़हरीली और तेज़ हो गई थीं। कूड़े बता दूंगा।" के ढेर पर एक बिल्ली की आँखें ज़रा देर चमकती हुई "यह बता, आख़िर तू चोरी क्यों करता है ?" दिखाई दी, लेकिन फिर छिप गई। मुन्नू ने कुछ झेपी-सी "भई, इसकी नहीं बदी थी।" निराशा-भरी आवाज़ में जवाब दिया--"कुछ नहीं यार "देख कौल दे चुका है।" कल्लो थी।" "अच्छा जा, तू जीता, मैं हारा। जो सच पूछे तो ऊपर बिल्लियाँ अभी तक लड़ रही थीं। वे एक बात यह है कि मैं कभी चोरी न करता । तू जानता है, मेरे भयानक ढङ्ग से गुर्राने के बाद ज़ोर ज़ोर से चीखती थीं। रिश्तेदार काफ़ी अमीर लोग हैं।” यह मालूम होता था कि एक-दूसरे को खा जायँगी। फिर “जदी तो मैं और भी हरियान हो रिया हूँ।" "म्याऊँ म्याऊँ" करके एक भाग निकली और बिल्ला "मेरा एक भाई लगता था। यह कोई दस बरस की गुर्राता हुआ उसके पीछे पीछे हो लिया। बात है। मेरी उससे कुछ चल गई थी। हम दोनों साथ अज़ीज़ खैराती ने मुन्नू को अपने पलङ्ग पर बिठा रहते थे। उसने मेरी मास्टर से शिकायत कर दी और लिया और सिरहाने से बीड़ी निकालकर उसकी तरफ़ बेंतें लगवाई। मेरे ऊपर भूत सवार हो गया। मैंने कहा, बढ़ाई, लेकिन मुन्नू ने अपनी कमीज़ की जेब में से “साले, अगर बदला न लिया तो मूंछे मुड़वा दूँ ।” एक चाँदी का सिगरेट-केस निकाला और अज़ीज़ से कहा- रोज़ दाँव पाकर मैंने साले का बस्ता चुरा लिया। उसके "लो मियाँ, तुम भी क्या याद करोगे, मैं तुम्हें बड़ा अन्दर बड़ी बढ़िया चीज़ों थीं। उससे शुरूअात हो गई । बढ़िया सिगरेट पिलाता हूँ ।” और एक सिगरेट निकालकर फिर एक बार मुझे एक मामू का सिगरेट-केस पसन्द आ अज़ीज़ को दे दिया। गया। मैं, उनसे माँग तो सकता न था, लेकिन मैंने पार "अरे मियाँ, अबके किसका मार लाया ?" कर दिया। उसके बाद मैंने सोचा कि इन हरामज़ादों के "मियाँ. यारों के पास किस चीज़ की कमी है। पास रुपये भी है और अच्छी चीजें भी। क्यों न उड़ा जिसको न दे मौला उसको दे आसफ़द्दौला। अगर लिया करो।" अल्लामियाँ के भरोसे पर रहते तो काम चला लिया था।" "लेकिन अगर कधी पकड़े गये तो।" "मियाँ होश की लो, पिस से डरो। दोज़ख़ में जलोगे, "फिर तूने वही फ़िज़ल की बातें शुरू कर दी। तोबा करो! अच्छा मैं अब चला, नहीं तो घर में तू-तू मैं-मैं होगी।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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