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________________ संख्या ३] कलयुग नहीं करयुग है यह ! २२१ उधर हो जाय, मैं लड़की को देखे बिना ब्याह नहीं करूँगा।" दीनानाथ ने जवाब दिया-- "मुझे लड़की पसन्द है।" सुरजनमल की दिया। आज उनके आत्मसम्मान में अपने पाँव पर खड़े आँखों के आगे होने का बल न था। आज उनके सामने उनका अपमान अँधेरा छा गया। खड़ा उन्हें ललकार रहा था। इस अँधेरे से एकाएक उन्हें एक रस्ता सूझ गया । बोले- "तो एक बाहर निकलने का कोई रस्ता न था। सोचते थे, काम करो। तुम्हारे पिता जी मध्यस्थ रहे। वे जो कुछ इस छोकरे ने बुरी जगह घेरा है। कोई दूसरा होता तो कह देंगे, मुझे मंजूर होगा।" कान पकड़ कर बाहर निकाल देते, मगर अाज-वे बेटी के मगर दीनानाथ ने भी विलायत का पानी पिया था, कारण वह सुन रहे थे जो आज तक कभी नहीं सुना था। भाँप गया कि बुड्ढे बुड्ढे एक तरफ़ हो जायेंगे, मेरा दाँव रे और बेटी में आज उन्हें पहली बार भेद दिखाई न चलेगा। उसने अपनी टोपी पर हाथ फेरते हुए कहा
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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