________________
संख्या १ ]
रुपया
घटाना मुनासिब नहीं समझा। उन्होंने इन समस्याओं का मुकाबिला करने के लिए पहले तो अपनी यह नीति बनाई कि उपज बढ़ाई जाय । कृषि की उपज और व्यावसायिक उपज इतनी ज्यादा की जाय कि इटली को उन चीज़ों के लिए किसी देश का श्राश्रित न रहना पड़े। उन्होंने इस बात का अनुरोध किया कि इटली के लोग केवल इटली का ही बना हुआ माल ख़रीदें। उन्होंने उपज में सरलता पैदा करने के लिए हड़ताल इत्यादि करना क़ानून बनाकर वर्जित कर दिया । विदेशी माल पर सख्त चुंगी लगा दी । लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसी अवसर पर उन्होंने भी लीरा की क़ीमत ४० प्रतिशत कम कर दी। जो लीरा महायुद्ध के पहले एक पौंड में २५ मिलते थे, वे ही १०० मिलने लग गये ।
भारतवर्ष की समस्यायें – भारत के सामने भी ग्राज है और विनिमय की दर क्या है ।
वही समस्यायें हैं ।
(१) जो चीजें भारतवर्ष पैदा करता है उनका भाव बहुत मद्दा हो गया है ।
(२) जो माल हम विदेशों में बेचते थे उनकी माँग बहुत कम हो गई है ।
(३) हमारी विदेशी माल की ख़रीद ज्यादा है। दिसावर की बिक्री कम है । और सोना तो द्रुत गति से ढोया चला जा रहा है ।
•
(५) भारतीय व्यवसाय कमज़ोर हो रहे हैं । (६) बेकारी बहुत ज़्यादा है |
राष्ट्रीय पक्ष का यह कहना है कि जब यही समस्यायें इंग्लैंड, फ्रांस, बेलजियम, स्वीज़लैंड, हालैंड, जापान, इटली अमरीका के सामने थीं तब उन्होंने अपने अपने सिक्के की कीमत घटाकर ही इन समस्याओं को हल किया। हम रुपये की कीमत क्यों न घटायें ?
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
( ४. भारतीय ग्रामीण संकट में हैं और क़र्ज़ उन पर बहुत में मार्क और अमरीका में डालर ।
बढ़ रहा है।
पं० गोविन्दवल्लभ पन्त का मत असेम्बली में कांग्रेस-पक्ष के उपनेता पन्त जी ने इस विषय पर अपनी राय देते हुए कहा था
"स्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने अपने अपने सिक्के की कीमत घटा दी है। मुसोलिनी किसी समय कहते थे कि इटली ने लौरा के लिए रक्त बहाया है ।
वे अन्तिम वक्त तक लीरा की क़ीमत क़ायम रक्खेंगे । उन्हीं मुसोलिनी ने आज लीरा का दाम घटा दिया है । जब हिन्दुस्तान के चारों ओर इस प्रकार अग्नि जल रही है तब क्या हिन्दुस्तान को चुपचाप बैठना चाहिए ? मेरा यह अनुरोध है कि रुपये का सम्बन्ध स्टलिंग से तोड़ दिया जाय और भारत की स्थिति देखकर उसकी नीति निर्धारित की जाय । इस देश के हितों को भेड़-बकरी की तरह योरप के हित के लिए कदापि बलिदान न करना चाहिए ।" ( हिन्दुस्तान टाइम्स १० आक्टोबर)
किन्तु इस विषय को हम अच्छी तरह नहीं समझ सकते जब तक हम यह न जान लें कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे चलता है, रुपया की क़ीमत कैसे निश्चित होती
१३
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे चलता है ? – रुपया हिन्दुस्तान का क़ानूनी सिक्का है । हिन्दुस्तान भर में रुपये से हम अपनी आवश्यकताओं की चीज़ ख़रीद सकते हैं । लेकिन हिन्दुस्तान के बाहर अगर हम रुपया लेकर जायँ तो यह सिक्का नहीं चलेगा। ईरान का दिरम या ग्वालियर का पैसा हिन्दुस्तान के बाज़ार में नहीं चल सकता । हर एक देश का सिक्का अलग अलग है । इंग्लैंड में पौंड चलता है, फ्रांस में फेंक, इटली में लीग, रूस में रूबल, जर्मनी
प्रश्न यह उठता है कि जब हर एक देश का सिक्का जुदा जुदा है तब अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे चलता है । अँगरेज़ सेठिया अपना कपड़ा हिन्दुस्तानी मारवाड़ी के हाथ बेचकर उसकी कीमत पौंड के रूप में चाहेगा। मारवाड़ी उसे पौंड कहाँ से देगा, क्योंकि हिन्दुस्तान में तो पौंड का चलन ही नहीं है । अमरीकन टाइपरायटर की कम्पनियाँ हिन्दुस्तान में अपनी मशीनें बेचकर अगर रुपया ही पायें तो वे अमरीका में वह रुपया ले जाकर क्या करेंगी ? वहाँ तो डालर चाहिए । लेकिन जब जब हम विदेशी माल मोल लेते हैं, तब दाम रुपये के रूप में ही देते हैं। क्या इस देश से रुपया विदेशों को लद जाता है और वहाँ गला दिया जाता है ?
आयात और निर्यात की परिभाषा - अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विचित्र ढङ्ग से चलता है। जो माल हम विदेशों से,
www.umaragyanbhandar.com