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हमारा आज का आर्थिक प्रश्न
रुपया
ONE
RUPEE EUR INDIA
लेखक, श्रीयुत सीतलासहाय
1904
क्टोबर के प्रथम सप्ताह में, बिक्री विदेशों में नहीं होती थी, इसलिए उनका भाव मद्दा लेजिस्लेटिव असेंबली में था। फ्रांस विदेशों से ख़रीद ज्यादा रहा था और विदेशों राष्ट्रीय पक्ष की ओर से यह में बेच कम पाता था। फ्रांसीसी किसान आर्थिक संकट में । प्रस्ताव उपस्थित किया गया पड गये थे और उनके ऊपर कर्ज की मात्रा बढती जाती था कि रुपये की कीमत घटा थी। फ्रांसीसी व्यवसायी कमज़ोर पड़ रहे थे । विदेशी व्यव
दी जाय। रुपये पर विशेष सायों के मकाबिले में उनका माल गरीं पड़ता था।
J रूप से बट्टा लगाने का यह इसलिए सरक्षण की पुकार उठ रही थी। बेकारी ज़ोरों प्रस्ताव उचित नहीं मालूम होता, लेकिन सम्पूर्ण से बढ़ रही थी और सोना बाहर खिचा जा रहा था। राष्ट्रीय पक्ष ने जिसमें कांग्रेस के प्रतिनिधि भी शामिल थे, लन्दन के 'टाईम्स' ने फ्रांस की स्थिति निम्नलिखित बट्टा लगाने के इस प्रस्ताव को ज़ोरदार तरीके से समर्थन शब्दों में बयान की हैकिया। गवर्नमेंट की ओर से सर जेम्स ग्रिग ने कहा कि इस वर्ष की प्रथम छमाही भर फ्रांस को राष्ट्रीय जब तक मैं ज़िन्दा हूँ, रुपये की कीमत में कमी न होने आर्थिक अवस्था अधिकाधिक शोचनीय होती रही। दूंगा। परिणाम यह हुआ कि रुपये की कीमत पूर्ववत् एक १९३२ से ही फ्रेंच गवर्नमेंट के बजट में घाटा रहता। शिलिंग छः पेंस ही कायम रही।।
श्रआया है और पिछले पांच बरस में तो सरकारी कर्ज़ ३० प्रस्ताव क्यों उठा--व्यवस्थापक असेम्बली के सामने प्रतिशत बढ़ गया। अर्थात २७० अरब ] इस प्रस्ताव के आने का मौका यह था कि लगभग उसी फ्रेंक हो गया था। समय फ्रांस ने अपने सिक्के फ्रेंक की कीमत एकदम घटा चूँकि डालर और पौंड तथा अन्य देशों के सिक्कों के दी, और स्वीज़रलैंड, हालेंड तथा इटली ने फ्रांस का अनु- बदले में फ्रांस का सिक्का महँगा मिलता था, इसलिए फ्रांस सरण किया। ब्रिटेन और अमरीका ने फ्रांस के इस कार्य के निर्यात पर बड़ा भयङ्कर आघात पड़ता था। फ्रांस की को प्रोत्साहन दिया और उससे सहयोग भी किया। इसलिए ६२ अरब फ्रेक (८२,५०,००,००० पौंड) से अधिक पूँजी भारतीय राष्ट्रीय पक्ष ने यह कहा कि जब योरपीय राष्ट्र पिछले १८ महीने में वहाँ से निकलकर विदेशों को चली अपने-अपने सिक्कों की कीमत घटाकर अपने निर्यात-व्यापार गई थी। फ्रांस का निर्यात-व्यापार अायात के मुकाबिले में को प्रोत्साहन दे रहे हैं और अपनी समस्यायें हल कर रहे इतना कम हो गया था कि प्रतिदिन ५,००,००० पौंड काहैं, हिन्दुस्तान भी उसी मार्ग का अनुकरण क्यों न करे। सेाना फ्रांस से विदेशों को ढोया चला जा रहा था। .
फ्रांस की स्थिति-फ्रांस के सामने अनेक आर्थिक इटली की स्थिति–इटली के सामने भी करीब-करीब समस्यायें श्रागई थीं। जो चीजें फ्रांस बनाता था उनकी यही समस्यायें थीं। पहले तो मुसोलिनी ने लीरा की कीमत
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