SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ - सरस्वती. भाग ३८ .. यह पत्र पढ़ कर वसु बाबू ने विपिन बाबू को दे "क्या वर ठीक कर लिया है ?" दिया। उन्होंने भी इसे बड़े ध्यान से पढ़ा। बाद को दोनों "अभी तक तो कुछ स्थिर नहीं हो सका है। चार-छः ही व्यक्तियों ने कुछ देर तक परामर्श किया । अन्त में जगह बातें हो रही हैं। देखें, ईश्वर क्या करता है।" उन्होंने बिछौना और बक्स ठीक करने का नौकर को "अापके बहनोई जी क्या करते हैं ? .. आदेश किया। अन्तःपुर में उन्होंने भौजाई को कहला यह बात सुनते ही हरिनाथ बाबू की आँखे डबडबा भेजा कि आज ही रात को मैं कलकत्ते जाऊँगा। 'आई। वे करुण-स्वर से कहने लगे-आज यदि वासन्ती के माता-पिता जीवित होते तो वह बेचारी मेरे घर में श्राती चौथा परिच्छेद ही क्यों और मुझे इस झञ्झट में ही क्यों पड़ना पड़ता ? विधाता का विधान परन्तु वह जब केवल छः मास की थी तभी मेरे बहनोई जी .. सवेरा होते ही हरिनाथ बाबू लौटकर घर आगये। का स्वर्गवास होगया। जो कुछ थोड़ी-बहुत सम्पत्ति थी उसे परन्तु वहाँ वे एक मिनट भी नहीं रुके। उलटे पाँव दत्त बहन जी को चकमा देकर भाई-पट्टीदारों ने बाँट लिया। बाबू के द्वार पर पहुँच कर वे “विशू" "विशू" कह कर अन्त में उन्हें मेरे इस दुःखमय परिवार में आकर शरण पुकारने लगे। लेनी पड़ी। किन्तु बेचारी वासन्ती के भाग्य में माता का ... विशू उस समय बाहर के एक कमरे में बैठा राधा- भी स्नेह नहीं बदा था। उसके चार वर्ष की पूरी होते माधव बाबू से बात-चीत कर रहा था। इतने में एक ही वे उसे त्याग कर चली गई। तभी से रात-दिन ' परिचित कण्ठ से अपने नाम का उच्चारण सुनकर वह छाती से लगाकर मैंने उसे इतनी बड़ी किया है, अबबोला-कौन है ? हरी दादा ! प्रायो, मैं यहाँ हूँ। हरिनाथ और कुछ न कह सके। पुरानी बातें स्मरण यह कहता हुआ वह निकला और हरिनाथ बाबू को साथ में आ जाने के कारण आँसुओं के भार से उनका कण्ठ-स्वर लिये हुए राधामाधव बाबू के पास ले जाकर कहने लगा- रुंध गया। वसु महाशय, ये ही वासन्ती के मामा हरिनाथ मित्र हैं। राधामाधव बाबू ने फिर कहा-अच्छा हरिनाथ राधामाधव बाबू अभी तक लेटे थे, किन्तु हरिनाथ बाबू , क्या आप वह लड़की एक बार दिखला बाबू को देखते ही उठकर बैठ गये और उन्हें बैठने सकते हैं ? को कहा। हरिनाथ बाबू के उत्तर देने से पहले ही विश्वनाथ ज़रा देर तक चुप रहने के बाद विशू ने कहा-इतने ने कहा-वसु महाशय, वासन्ती को तो श्राप कल रात्रि सवेरे कैसे पाये दादा ? में देख चुके हैं। हरिनाथ बाबू ने उत्तर दिया कि कुछ काम से कल यह सुनकर राधामाधव बाबू ने कहा-क्या वही सवेरे घोषपुर चला गया था। सोचा था कि वहाँ तीन-चार हरिनाथ बाबू की भाँजी थी ? है तो अच्छा लड़की । क्या दिन लगेंगे। परन्तु काम जल्दी ही हो गया। इसके सिवा उसकी जन्म-पत्री है ? वहीं के एक सज्जन कल वासन्ती को देखने के लिए हरिनाथ बाबू ने कहा--जी नहीं, मैं तो जहाँ तक आनेवाले हैं। इसलिए लौटने में मुझे और उतावली समझता हूँ, जन्म-पत्री नहीं है। परन्तु प्रयत्न करने पर करनी पड़ी। घर आने पर सुना कि वासन्ती चाची (विशू यह मालूम कर सकता हूँ कि किस मास में और किस तिथि की मा) के पास है, इससे उसे बुलाने के लिए मैं तुरन्त को उसका जन्म हुआ था। ठीक-ठीक समय का पता ही इधर चला आया, वहाँ ज़रा-सा बैठा तक नहीं। लगाना अवश्य कठिन है। स. राधामाधव बाबू ने तब कहा-क्या महाशय जी के राधामाधव बाबू ने कहा-आपके बहनोई जी की कोई अविवाहिता कन्या है ? उपाधि क्या थी? . हरिनाथ बाबू ने कहा-~जी नहीं, कन्या नहीं एक भाँजी है। उसी के विवाह की चिन्ता में पड़ा हूँ। ज़रा देर तक चुप रहने के बाद हरिनाथ बाबू ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy