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________________ संख्या २] फैजपुर का महाकुम्भ' १६७ हैं। यह महासभा इन्हीं किसानों के लिए श्राज़ादी की लड़ाई लड़ने का दावा करती रही है। फिर शहरों में ही इसके अधिवेशन क्यों होते रहे ? यह बात जब हम अब सोचते हैं तब आश्चर्य होता है। किन्तु इस प्रणाली की अस्वाभाविकता का पहले-पहल महात्मा गांधी को ही अनुभव हया और गांव में राष्ट्रीय महासभा के करने का विचार प्रकट किया । लोगों को आशा नहीं थी कि यह ग्रामीण अधिवेशन सफल हो सकेगा। कुछ लोगों ने मज़ाक भी उड़ाया। लेकिन फैज़पुर का अधिवेशन सफलता से हो गया । लोग समझते थे कि बहुत कम भीड़ होगी। लेकिन इतनी भीड़ हुई कि व्यवस्था करना भी मुश्किल हो गया । सभी लोगों का अनुमान है कि इतनी भीड़ अभी तक किसी कांग्रेस के किसी अधिवेशन में नहीं हुई है। भीड़ के कारण तीन दिन के बजाय दो ही दिन में महासभा का कार्य समाप्त कर देना पड़ा। इस भीड़ के उमड़ पड़ने का क्या कारण था ? गाँव में महासभा करना ही इसका कारण है । मानव-रूपी सागर एकदम उमड़ पड़ा था । असल में कांग्रेस का स्थान गाँवों [वह रथ, जिसमें राष्ट्रपति का जलूस निकला था।] में ही है। किसी भी संस्था का स्थान, भारतवर्ष के हित के लिए, गाँव में ही होना आवश्यक है। गाँवों से दूर भागकर हम असली भारत को भूलने की कोशिश करते हैं। जहाँ अधिवेशन हुआ था, उस स्थान का नाम 'तिलकनगर' रक्खा गया था। संपूर्ण नगर ६० एकड़ के घेरे में था। नगर के मध्य में "शिवाजी-फाटक" मुख्य द्वार था। इसके आस-पास थोड़े फ़ासले पर 'अंसारीफाटक' और 'शोलापुर-शहीद-फाटक' थे। शिवाजी-फाटक के बाद दूसरा फाटक 'सुभाष-फाटक' था। इन दोनों फाटकों के बीच की चौकार जगह में बाज़ार था। फाटकों के बाहरी हिस्सों में भी दूकाने थीं। उसकी बाई ओर 'सार्वजनिक काका द्वार' से होकर दर्शक प्रदर्शनी पंडाल में पहुँचते थे। इस प्रदर्शनी में ग्रामोद्योग, खादी, स्वदेशीउद्योग-धन्धे, चित्रकला, मधु-मक्खियाँ पालने और शहद निकालने आदि की कलायें एवं क्रियाओं के दिखाने का श्रायोजन था। प्रदर्शनीहाल से बाहर निकलकर दर्शक [राष्ट्रपति के साथ श्री रंजीत, जिसने अपनी जान हथेली सुभाष-फाटक-द्वारा नगर के खास हिस्से में प्रवेश करते थे। पर रखकर राष्ट्रीय झंडे की इज्जत रखी।] शिवाजी-फाटक की बाई अोर प्रदर्शनी और दाइ अोर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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