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________________ सरस्वती [भाग ३६ एक सज्जन १२ घंटे दबे रहने के बाद कैसे निकले, कि हम सब दबे हुए हैं। इस पर शान्तिदेवी ने साहस यह भी सुनिए-“भूचाल से कुछ मिनट पहले मैंने पानी किया । दूध पीती बच्ची को चारपाई के नीचे फेंक कर पिया और चारपाई पर लेट गया। जब गड़गड़ाहट की मुश्किल से गार्डर के नीचे से निकली और सास को लेकर आवाज़ आई तब समझा कि शायद कोई बला पा रही सभी आदमियों को बचा लिया। फ़ौजी सिपाहियों ने जब है। दूकान से बाहर भागा। क्या देखता हूँ कि सामने उसे इस प्रकार काम करते देखा तब हैरान रह गये। का मकान गिर रहा है। डर कर अन्दर भागा। अँगीठी मुसीबत में भी कई बार उपहासजनक बातें हो जाया के साथ मेज़ के नीचे छिप गया । इतने में हमारा मकान करती हैं । कराँची के सेठ तोलाराम की विश्वस्त सूत्र से भी गिरा । ३५ आदमी साये पड़े थे। सब दब गये। ६ सूचना मिली कि सेठ साहब भूचाल से मर गये हैं। घंटे के बाद मुझे ऊपर अँगरेज़ी में बातचीत करते हुए रिश्तेदारों ने मातम किया। दो लड़कों ने अपने सिर भी कुछ आदमी सुनाई पड़े। मैंने समझा, मेरा ही मकान मुंड़वा दिये। पर दो दिन के बाद उन्हें सक्खर से इत्तला गिरा है, इसलिए मुझे निकालने आये हैं। लेकिन वे चले मिली कि सेठ साहब सक्खर के अस्पताल में बीमार पड़े गये। मैं हैरान था कि बात क्या है। अँगीठी के रास्ते हैं। घरवालों की ग़मी खुशी में बदल गई। मुझे हवा पा रही थी। ३ घंटे के बाद फिर कुछ गोरे मुज़फ़्फ़रगढ़ का एक दम्पति मलवे में दब गया। लेकिन उधर से गुज़रे । मैंने आवाज़ दी कि मुझे निकालो। वे पत्नी को किसी तरह होश रहा। पति को प्यास लगी थी। खड़े हो गये, एक ने कहा- "बहुत नीचे दबा है इसलिए स्त्री की छातियों में दूध उतर आया। उसने दूध पिलाचलो।" वे भी गये । तीसरी बार फिर अँगरेज़ी में बातचीत पिला कर ३ दिन तक पति को जीवित रक्खा। इसके बाद सुनी। मैंने उनको पुकारा, लेकिन उन्होंने जवाब न दिया। वे दोनों निकाल कर बचा लिये गये। मैं चिल्लाया-"अरे अभी जिंदा हूँ, मुझे निकालो।" इस कई बार थोड़ी-सी नासमझी के कारण बहुत हानि पर उन्होंने मलवा खोदा और मैं बाहर आया।" हो जाती है। जगदीशकुमारी कहती है-"हमारा ब्याह एक बच्चा और स्त्री सात दिन तक दबे पड़े रहे। नौ हुए तीन मास हुए थे। हम दर्मियानी मंज़िल में सोये पड़े मास का बालक अपनी नानी के पास डोली में सोया पड़ा थे। जब पहला हिचकोला आया तब हमें होश था, पर था। मकान गिरा तब उसकीमा आदि सभी दब कर मर एक-दूसरे को देख न सकते थे। दोनों चारपाइयों में एक गये। लेकिन डोली के नीचे लोहा लगा हुआ था। इसने गज़ का फासला था। हम दोनों चिल्लाते रहे। कोई उन दोनों की रक्षा की। डोली कोठरी बन गई और उसमें मनुष्य सुननेवाला न था। मेरे ऊपर मलवा था, पति के हवा अाती रही। ७ दिन के बाद उन दोनों को जीवित ऊपर शहतीर । ६ बजे एक पड़ोसी लड़के ने मुफ मंदनिकाला गया। लेकिन दबे रहने का रिकार्ड चार सिंधी भागिनी को निकाला। उस वक्त मेरे पति की आवाज़ सज्जनों का है, जो ग़रीबाबाद-महल्ले में नौ दिन तक आनी बन्द हो रही थी। उस लड़के की मैंने हजाः मलवे के अन्दर रहे, और जब बाहर निकाले गये तब मिन्नतें की, लेकिन वह न माना; कहने लगा---"मैं जीवित थे। मुर्दे को नहीं निकालता। मैंने अाध घंटे में उनके चेहरे और कई स्त्रियाँ मर्दो से आगे निकल जाती हैं। लायल- छाती पर से मलवा साफ़ किया, लेकिन जब साढ़े ६ बजे पुर की शान्तिदेवी ऐसी ही वीरांगना है। यह और तब मेरी सारी आशाओं का अंत हो गया ।" उसके बाकी १३ रिश्तेदार मकान के अन्दर सोये हुए थे, ऐसे समय मनुष्य जब चाहता एक बात है और होती केवल सास सहन में थी। भूचाल के कारण ईंटों और दूसरी है तब उसे बहुत दुःख होता है । मा और भाई को लोहे के गार्डरों का भारी बोझ आ गिरा। रज़ाई से मुँह लेकर छोटे युधिष्ठिर की बहन कोयटा में हिन्दी-रत्न की निकाल कर उसने आवाज़ दी, लेकिन जेठ ने उत्तर दिया परीक्षा देने गई। साथ में एक अध्यापिका और उसकी दो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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