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________________ संख्या १] कोयटा में प्रलय तीसरा स्थान रेलवे स्टेशन है, जहाँ सी० एम० ओ० बच्चा था, कहने लगा-"मैं और यह, एक कमरे में की अध्यक्षता में रेलवे और बाहर के डाक्टर काम करते सोये हुए थे। स्त्री, पिता आदि दूसरे कमरे में । ३ बजे . हैं। यहाँ सहायता बहुत मामूली मिलती है। ज्यादा काम धमाका हुअा । हम जाग पड़े। मैं अभी सँभलने भी न रोगियों को गाड़ियों पर चढ़ाना रहता है। मरहम-पट्टी की पाया था कि पैरों के नीचे से मकान निकल गया। अब और ट्रेन में बिठला दिया। यह केन्द्र अब बन्द हो रहा लोहे की चादर हमारे ऊपर थी। अगले दिन हम छत के है । परन्तु अन्तिम केन्द्र ब्रिटिश हास्पिटल है, जो योरपीय नीचे से निकाले गये । हम दोनों तो बच गये, लेकिन वे मरीज़ों के लिए अलग रक्खा गया है। हमारा साथ छोड़ गये।" इसके बाद वह रोने लगा। कोयटा के अतिरिक्त सक्खर और लाहौर के बीच एक अन्य सज्जन ने बताया -"मैं तीसरी छत पर बड़े-बड़े स्टेशनों पर रिलीफ़ का काम जारी है । खाने-पीने सोया हुआ था । झटका आया तब मैंने उठकर दरवाज़े का सामान, सोने-पहनने की चीजें, दवाइयाँ और दूसरी को मज़बूती से पकड़ लिया। इस बीच में मकान फटा वस्तुएँ- कई सभा-समितियों की ओर से मुफ़्त प्रस्तुत की और मैं बाज़ार में आ रहा । मेरे पाँव और टाँगें कट गई। जाती हैं। लेकिन ये लोग कोयटा से चलने के समय घरवाले दब कर मर गये।" किस मुसीबत में होते हैं, इसकी एक झाँकी देखिए। माता अपनी सन्तान के लिए क्या कर गुज़रती है, एक महिला गाड़ी पर सवार हुई । गाड़ी चली तब उसने यह भी देखिए । भूकम्प से मकान गिर गया। करतारसिंह अपने बाल नोचने शुरू कर दिये (क्योंकि उसके सभी की स्त्री रामप्यारी ने अपने तीन मास के बालक को बचाने बच्चे मर गये थे।) कोई चीज़ निकालने के लिए उसने के लिए उसे अपनी छाती के नीचे रख लिया और आप अपना ट्रंक खोला। जब अपने मृत बच्चों के कपड़े उसकी उसके ऊपर हो गई। मकान के शहतीर ने माता के प्राण नज़र पड़े तब वह फूट-फूट कर रोने लगी | दरवाज़े ले लिये, बाप भी मर गया, परन्तु बच्चा बच गया। के साथ सिर पटकने लगी। करीब था कि वह खिड़की से जो कल लखपति थे, आज दरिद्र हैं। सक्खर-स्टेशन छलाँग लगा जाती कि पास बैठे लोगों ने उसे काबू पर एक हिन्दू-महिला गाड़ी से उतरी। कपड़े फटे हुए कर लिया। थे और रो रही थी। पूछने पर बड़ी मुश्किल से उसने __ जब ये लोग इधर आते हैं तब इनकी जो हालत बताया कि उसका पति लाखों का मालिक था, लेकिन अब होती है, यह भी देखिए । १० जून को लाहौर में कोयटा उसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। कोयटा में उसके के पीड़ितों की ऐम्बुलेंस ट्रेन पहुँची। इसमें वे लोग थे जो शरीर पर कपड़ा भी न रहा। एक मुर्दा लाश से उसने हिल-डुल न सकते थे। स्ट्रेचरों पर डालकर वे उतारे कमीज़ उतारकर अोढ़ी और गाड़ी में उसे एक अन्य गये । किसी की टाँग कटी हुई थी, किसी की बाँह, किसी का स्त्री ने पहनने के लिए धोती दी। हाथ नहीं था, किसी का पाँव; किसी की पसली टूटी थी, एक ईश्वरविश्वासी सिक्ख ने बताया- "हम बीस किसी की हड्डी। हर एक डिब्बे में बिजली के पंखे चल आदमी इकहे काम करते थे, परन्तु सिर्फ चार बचे । रात को रहे थे । नर्से, डाक्टर और खाने का सामान मौजूद था। सुख की नींद सोया था। सुबह आँख खुली तब अपने ये रोगी मेयो अस्पताल, आर्यसमाज-अस्पताल, महिला- आपको मलवे में दबा पाया। वाहगुरु ने सिर बाहर विद्यालय आदि में पहुँचा दिये गये। रक्खा । बार-बार पुकारा, लेकिन कौन सुनता था। सबको ये मूक दृश्य दिल को पिघला देते थे, परन्तु इनसे अपनी अपनी पड़ी हुई थी। ज़ोर-ज़ोर से रोना शुरू कर शायद बढ़कर प्रभाव करनेवाली मुसीबत की वे मूर्तियाँ दिया। चार घंटे के बाद वाहगुरु ने कृपा की। दूसरा थीं जिनको न सिर्फ आँखों ने देखा, बल्कि कानों ने सुना जन्म प्रदान किया और ताकत बख्शी। ज़ोर लगाया और भी। एक सिक्ख नवयुवक जिसके पास एक छोटा-सा मिट्टी धीरे-धीरे हट गई।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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