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________________ संख्या १) जाग्रत महिलायें मंथन । ये सब चित्रपट ऐसे हैं कि अनेक बार देखने से भगवान् ने पुरुष और स्त्री में प्रत्येक विषय में भी आँखों को तृप्ति नहीं होती। बाल-बच्चों से लेकर भेद-भाव नहीं किया है। तो भी आर्य स्त्री में शील, युवक-युवती, बूढ़े आदि सभी ये चित्रपट देख सकते विनय, आत्मगौरव, लज्जा और प्रेम जन्मगत ही हैं। धन्य है उनका कला-प्रेम ! आनन्द की बात है कि होता है। तो क्या आज सिनेमा घरों में इन सब कई पढ़ी-लिखी कुमारियाँ और विवाहित स्त्रियाँ और भूषणास्पद बातों को तिलाञ्जलि दे देना ठीक होगा ? मर्यादाशील कुटुम्ब की महिलायें इन दोनों कम्पनियों यह एक प्रश्न है। में काम कर रही हैं। सभ्य गृहिणियों को या सभ्य कुल की कुमारियों मेरे ख़याल में ऐसे कई फिल्म हैं जिनमें भारतीय को चित्रपट में काम करने के पहले इन सब बातों ललनाओं का विनय-स्वभाव, लज्जा-नम्रता आदि पर जरूर ध्यान देना चाहिए । सिनेमा के डायसबका छिन्न-विछिन्न कर दिया गया है । कई दृश्य तो रेक्टर से इस बात की गारंटी लेनी होगी कि इतने लज्जाजनक हैं कि उन्हें देखते ही आँखें मीचनी 'स्टुडियो' में डायरेक्टर से या चित्रपट में भाग लेनेवाले पड़ती हैं। क्या हमारी हिन्दू ललनायें परपुरुषों से पुरुषों से या वहाँ के अन्य पुरुषों से उनको किसी मिल-जुल सकती हैं ? कितनी ही पढ़ी-लिखी स्त्री हो, तरह की तकलीफ न होने पायेगी। यदि ये लोग इस क्या वह अपने पति से अन्य लोगों के सामने लज्जा- बात की व्यवस्था करें कि स्त्रियों के चरित्र पर किसी स्पद बर्ताव करने को तैयार होगी या अपने पति तरह का कलंक न लगने पावेगा तथा उन्हें स्वभावको ही ऐसा व्यवहार करने देगी ? कभी नहीं । चाहे विरुद्ध पार्ट करने को न दिये जायेंगे तो अवश्य ही जो हो योरपीय महिलाओंकी नकल करते हुए भी उच्चकुल की महिलायें चित्रपट-कला में भाग लेंगी भारतीय महिला अपना लज्जाशील स्वभाव कभी नहीं और इस कला को समुन्नत करेंगी। छोड़ेगी। और एक बात । पुरुष-वेश धारण करना, सबसे पहले आवश्यकता यही है कि आर्यपुरुषों अपने पति को छड़ी से मारना, पति से नौकर को में पूर्णरूप से परिवर्तन होना चाहिए। भारतीय तरह बर्ताव रखना, बार बार चुम्बन करना—यह स्त्रियों को वे अपना भोग्य वस्तु समझते हैं। अगर सब अँगरेजी चित्रपटों की नक़ल है। आर्य-महिलाओं वे कला-प्रेम से भारतीय महिलाओं को भी चित्रपटकी इज्जत रखना आर्य-पुरुषों का धर्म है। हम लोग कला में भाग लेने का अवसर देना चाहते हैं तो यह प्रत्येक विषय में अन्य देशवासियों की नक़ल करने में जरूरी बात है कि वे पहले महिलाओं को गौरवपूर्ण अपना हिन्दूत्व भूल जाते हैं। हाँ, हम लोगों को दृष्टि से देखें, और हर एक विषय में योरपीय पश्चिमवासियों से सीखने लायक अनेक बातें हैं, पर चित्रपटों की उन बातों की नकल न करें, जिनसे हमारे हम लोग उन पर ध्यान ही नहीं देते। हिन्दूत्व को कलंक लगता है। पाश्चात्यों का अन्धाधुन्ध ___ आज-कल पति-पत्नियों का सम्बन्ध पिछले ज़माने अनुकरण करना भारतवासियों को उचित नहीं है। की तरह नहीं रह गया है। पति-पत्नी में ऊँच-नीच क्या समाज-सुधारक और कला-प्रेमी पुरुष इस का भेदभाव नहीं रहता है, न यह रहना उचित है। विषय पर ध्यान देंगे ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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