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________________ ५६४ सरस्वती शुरू हुआ। हाली भी उसमें शरीक हो गये और इन्होंने का अद्भुत परिचय दिया है । 'मुसद्दस' को देखकर उर्दू-कविता का रूप ही पलट दिया । सर सैयद ने उसकी और उसके साथ हाली की बड़ी तारीफ़ की थी। लिखा था - " किस सफ़ाई से यह नज़्म तहरीर हुई है, बयान से बाहर है। जब ख़ुदा पूछेगा कि तू क्या लाया तो कहूँगा कि हाली से 'मुसद्दस' लिखवाकर लाया हूँ ।" सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ में मुस्लिम ऍग्लो ओरियंटल कालेज की स्थापना कर दी थी। यही कालेज आज मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में दिखलाई दे रहा है । हाली सर सैयद की मुसलमानों को शिक्षा देने की स्कीम का पूर्ण रूप से समर्थन करते थे । उस समय मुस्लिमों में शिक्षा की कमी के कारण उनके कट्टरपंथी लोग शिक्षा के विरोधी थे। उनका कहना था कि पश्चिमी शिक्षा और विज्ञान इस्लाम के शत्रु हैं । इस मनोवृत्ति को मुस्लिमों से दूर करने में सर सैयद को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था । हाली ने सर सैयद को इस सम्बन्ध में बड़ी सहायता पहुँचाई । अपने लेखों, कविताओं, व्याख्यानों श्रादि से हाली ने सर सैयद के शिक्षा-प्रचार के आन्दोलन के सम्बन्ध में फैली हुई ग़लतफ़हमियों को बहुत कुछ दूर कर दिया, फिर भी कट्टरपन्थी मुसलमान सर सैयद को उनकी इस चेष्टा के लिए 'काफ़िर' तक कहा करते थे और हाली को भी उनके साथी होने के कारण अनेक बार कष्ट उठाने पड़े । कहा जाता है कि एक बार हाली संयुक्त प्रान्त के एक जज के यहाँ से लौट रहे थे । अलीगढ़ वापस लौटते समय उन्होंने एक गाड़ी किराये की । योरपीय ढंग से रहनेवाले जज के यहाँ हालाँ कि जज मुसलमान ही थे, कुछ दिन रहने के कारण ही उस मुसलमान गाड़ीवाले ने हाली के हाथ से पानी लेना तक पसन्द न किया । वह उन्हें क़ाफ़िर समझने लगा था। हाली का कई बार इसी तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा था । सर सैयद की सम्मति से हाली ने अपना सुप्रसिद्ध 'मुसद्दस' लिखा। इस 'मुसद्दस' ने सच पूछो तो हाली को अमर किया । इसके लिखने में हाली ने अपनी प्रतिभा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ 'मुसद्दस' के प्रकाशित होने पर लोगों में एक जीव लहर - सी उठी । हाली ने उसका कापी राइट अपने हाथों सुरक्षित नहीं रक्खा, बल्कि उसे सर्वसाधारण के समर्पण कर दिया। जिसे इच्छा हो वही उसे प्रकाशित करा सकता था । लाखों की संख्या में उसकी खपत हुई । आज भी उसकी अच्छी खपत है 1 'मुसद्दस' में इस्लाम के प्राचीन गौरव तथा वर्तमान पतन का सजीव वर्णन करके मुसलमानों को जाग्रत करने की चेष्टा की गई है। हिन्दी के प्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त को अपना प्रसिद्ध काव्य-ग्रन्थ 'भारतभारती' लिखने की प्रेरणा हाली के 'मुसद्दस' से ही मिली थी। जिस प्रकार गुप्त जी हिन्दी तथा हिन्दुओं के राष्ट्रीय कवि हैं, उसी प्रकार हाली उर्दू तथा मुसलमानों राष्ट्रीय कवि थे । उर्दू काव्य में तो वे एक नवीन रंग के प्रवर्तक ही कहे जा सकते हैं । हाली ने अनेक पुस्तकें लिखीं । 'शेर और शायरी' नामक पुस्तक इन्होंने गद्य में लिखी और उसके द्वारा उर्दू-कविता में सुधार के उपाय बतलाये । 'हयाते जावेद' नाम से हाली ने सर सैयद का जीवनचरित लिखा । शेख सादी और हकीम नासिर खुसरो की जीवनियाँ लिखीं। 'मुनाजाते बेवा' का तो कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इनकी रुबाइयों का अनुवाद अँगरेज़ी में हुआ है । इनकी कवितायें और निबन्ध कई विश्वविद्यालयों की पाठ्य-पुस्तको में स्थान पाये हुए हैं । । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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