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________________ ५४२ सरस्वती [भाग ३६ का अड्डा होने के कारण यह नगर बहुत प्रसिद्ध हो गया था। सन् ६३ ईसवी में भूकम्प से पाम्पियाई की भीषण हानि हुई थी, तो भी यह समृद्धिशाली व्यापारिक केन्द्र बना रहा और भूकम्प के बाद ही यह नगर फिर से बस गया। प्रथम भूकम्प के सोलह वर्ष बाद अन्तिम विध्वंस संघटित हुआ। विसूवियस एकाएक [पाम्पियाई–एक भद्र पुरुष का गृह और उद्यान जागृत हो उठा और अपनी चोटी से बड़ी कि नेपल्स यथेष्ट प्राचीन नगर है। विसूवियस का शीघ्रता के साथ जलती हुई राख और लावा की जीवित ज्वालामुखी नेपल्स की खाड़ी पर प्रहरी के घोर वृष्टि करने लगा। पाम्पियाई के ऊपर २० समान खड़ा है। अतीत काल से यह ज्वालामुखी से २५ फुट तक मोटी राख पड़ गई। उसके निवासी पड़ोस के नगर का कई बार विध्वंस कर चुका है। ढहते हुए मकानों से भागे; परन्तु उनमें बहुत-से हवा प्राचीन रोमन नगर–प्रसिद्ध पाम्पियाई इसी में फैली जहरीली भाफ से दम घुट जाने के कारण विसूवियस से निकले लावा में समा गया था। जो मर गये। यात्री इटली से गुजरते हैं वे विसूवियस और पाम्पि- इस भीषण दुर्घटना ने विद्वानों के अध्ययन के याई का नगर जिसकी अब बहुत काफी खुदाई हो लिए सांस्कृतिक काल के अनेक अमूल्य स्मारकों को चुकी है, देखने से नहीं चूकते। पाम्पियाई के खंडहरों सुरक्षित रक्खा है। पाम्पियाई का पता लोगों को से रोमन नगर का प्राचीन वैभव, उसकी संस्कृति, सोलहवीं शताब्दी में चल गया था, यद्यपि वास्तविक कला और खेल सब हमारे सामने अत्यन्त स्पष्टरूप से खुदाई सन् १८०६ में आरम्भ हुई। तब से यह कार्य आ जाते हैं । रोमन-इतिहास और संस्कृति से सम्बन्ध अविश्रान्तभाव से चल रहा है। उल्लेखनीय इमारतें रखनेवाली यहाँ जो पुरातत्त्व की वस्तुएँ निकली हैं जिनमें 'हाउस आफ वेट्टी', 'हाउस आफ सिलवर वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। प्रत्येक वर्ष हज़ारों यात्री वेडिङ्ग' और 'हाउस आफ गोल्डेन क्यूपिड' पाम्पियाई देखने आते हैं। सम्मिलित हैं, अभी तीस वर्ष हुए प्रकाश में लाई गई पाम्पियाई नगर को उसका विधिवत् स्वरूप हैं। सुव्यवस्थित जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण ने इसे ईसा के जन्म से ६ शताब्दी पूर्व यूनानियों ने दिया पुरातत्त्व के क्षेत्र में संसार का सबसे सफल प्रयास था। फोनेशिया और यूनान के नाविकों का उतरने प्रमाणित किया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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