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________________ कोरिया का जनमत FHtitiHitta [कोङ-गोसान्–उतेन्जी (नया पुल)] लेखक, श्रीयुत राहुल सांकृत्यायन कोरिया का वज्रपर्वत प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नमूना है। पचास मील के गिर्द में फैले इस पर्वत पर बौद्धों के अनेक मठ, मन्दिर और विहार हैं । श्रीयुत राहुल सांकृत्यायन जी को भी इस पर्वत और इसके बौद्ध आश्रमों ने आकर्षित किया, और आपने इस पर्वत-प्रदेश की यात्रा की। इस लेख में उसी का वर्णन है। ङ-गो-सान् कोरिया का अतिसुन्दर सेन् स्टेशन तक गई है। कोरिया के स्थानों के नाम मैं यहाँ जापानी-भाषा तथा जगत्प्रसिद्ध पर्वत है। अँगरेज़ी में लिख रहा हूँ। कोरियन और जापानी दोनों भाषाओं में नाम के लिए में इसे 'डाइमंड मौन्टेन' कहते हैं चीनी शब्द-संकेत लिखे जाते हैं, उच्चारण में दोनों अपनी अपनी भाषा और कोरिया की भाषा में 'खिम्-खङ्- का प्रयोग करते हैं । अँगरेज़ी-भाषा में छपे काग़ज़-पत्रों में जापानी उच्चा सान्' । दक्षिण-भारत के आन्ध्र-प्रदेश रण ही ज़्यादातर लिखा जाता है, और वही बहुत प्रचलित हो गया है। AAMA में अवस्थित श्री पर्वत (वर्तमान हम लोग पौने आठ बजे गाड़ी से रवाना हुए। रास्ते में कहीं धान, लात नागार्जुनी कोंडा) का दूसरा नाम साँवाँ के खेत, कहीं छोटे देवदार और दूसरे वृक्षों से हरे-भरे पर्वत, कहीं वज्रपर्वत था। बौद्ध-धर्म के प्रचार के फूस की चौरस छत के छोटे छोटे घरोंवाले कोरियन गाँव थे। जहाँ-तहाँ साथ कोरिया का यह पर्वत वज्रपर्वत हुआ। कोरिया का वज्रपर्वत जापानियों के भी घर, जो अपेक्षाकृत अधिक बड़े, खपडैल या टीन की अपनी अनुपम शोभा और प्राकृतिक वैचित्र्य के लिए विश्व-विख्यात हो छतोंवाले तथा काँच से जड़े सरकन्त कपाटों से युक्त दिखलाई पड़ते थे। पूर्वी समुद्री-तट पर ५० मील के घेरे में पचासों जगह गाड़ी की सुरंगें पार करनी पड़ी। खेतों को देखने से स्पष्ट अवस्थित है। कोरिया की राजधानी सीमोल (केइ-जो) से ८ घंटे में रेल- मालूम होता था कि यहाँ के किसानों ने नये ढङ्ग के खेती के तरीके को द्वारा पहँचा जा सकता है। कोरियावासियों को कहावत है-“प्राकृतिक बहुत अशों में अपना लिया है। यहाँ जापानी पुरुष आम तौर से सौन्दर्य की बात मत चलाओ, जब तक तुमने कोङ खिम्-खङ-सान् कोट-बूट पहने हुए दिखाई दिये, किन्तु कोरियन पुरुष प्रायः सभीनहीं देखा है।" सफ़ेद अचकन और पायजामे पहने हुए दिखाई पड़ते थे। ___कोङ्-गो-सान् की इस प्रकार की ख्याति सुनकर किसका मन उसे साढ़े दस बजे के करीब हम चु-सेन् स्टेशन पर पहुँचे। ओन्देखने को न ललचायेगा? १३ अगस्त को श्री कुरिता के साथ हम वज्र- सेइ-री (ओन्-छङ्-नी) के लिए मोटर-बस तैयार थी। हम बस पर बैठकर पर्वत के लिए रवाना हुए। गन्-जेन् से समुद्र-तट से होती हुई रेल चु- आध घंटे में एक जापानी होटल में दाखिल हो गये। ओन्-सेइ-री का ५१२ Shree Sudilantaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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