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सरस्वती
. [भाग ३६
की शक्ति बढ़ती और मजबूत होती जायगी। हम अपने 'स्व' को बदल लें और अपने आपको इससे एक और नतीजा भी साफ़ निकलता है- इंग्लैंड के 'स्व' में जज्ब कर दें। इससे हमको बगैर अगर हमें हिन्दुओं को मिटाते हुए ही स्वराज्य का किसी तकलीफ़ या कुर्बानी के स्वराज्य मिल युद्ध करना है तो इससे कहीं बेहतर बात यह है कि जायगा।
बस्ती है यह किन मस्तों की
लेखक, श्रीयुत रामानुनलाल श्रीवास्तव बस्ती है यह किन मस्तों की कैसी अद्भुत मधुशाला है । बेहोश पड़े पीनेवाले मदहोश पिलानेवाला है। क्या नहीं जानते हो कोई इस ढब से आनेवाला है।
उर में मरुथल की प्यास भरी कर में टूटा-सा प्याला है। ऐसे प्यासे को मधुबाले कुछ अपना जादू दिखला दे। सुधिवालों को बेसुध कर दे सुधिहीनों में फिर सुधि ला दे। मुझको तो कुछ ऐसी दे दे बस एक दिवू मैं लाखों में ।
कुछ शीशे की कुछ सागिर की कुछ दे जो भरी है आँखों में । तू ढाले जा ऐ मधुबाले जिससे मैं तलछट तक पाऊँ।
औ' चूम चूम अपने ओठों को झूम झूम पीते जाऊँ ॥ . मधु कभी नहीं है चुकने की तू देने में संकोच न कर ।
मैं पीनेवाला मतवाला कुछ कम ज्यादा का सोच न कर ॥ तू यह न समझना मधुबाले मैं प्यास बुझाने आया हूँ। मस्तों के उर का एक तुझे संदेश सुनाने आया हूँ॥ यह प्यास हमारी बनी रहे औ' बना रहे आना-जाना ।
दर पर यह लगती रहे सदा आबाद रहे यह मैखाना ॥
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