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________________ ४७४ सरस्वती [भाग ३६ राय देना "अनैतिक, असामयिक और हानिकर" समझती और सरकार पर यह असर डालना चाहिए कि वह इन हो तो इस पर यही पूछा जा सकता है कि वह किस चिकित्सा-पद्धतियों को प्रोत्साहन दे। मेरे स्वर्गीय मित्र समय की राह देख रही है। क्या वह समझती है कि हकीम अजमलखाँ ने दिल्ली में यूनानी कालेज खोलकर लखनऊ के अधिवेशन तक वातावरण निर्मल हो जायगा प्रशंसनीय काम किया है। इस सम्बन्ध में मैं यह कहना और कांग्रेसवाले एक दिल से पद-ग्रहण करने अथवा न चाहता हूँ कि सरकार ने डाक्टरी शिक्षा देने में तो कोताही करने का निश्चय कर सकेंगे ? यह अाशा सफल होने की नहीं की, पर इसका कोई प्रबन्ध नहीं किया गया कि कोई अाशा नहीं है, वरञ्च ज्यों ज्यों समय बीतेगा, विदेशों से ओषधियों का मँगाना बन्द किया जाय । भारत त्यो न्यों भावों की तीव्रता बढ़ती ही जायगी । अब तो में सब तरह की जड़ी-बूटियाँ और अोषधियाँ पैदा होती हैं। कार्यसमिति के सदस्यों को भी वादविवाद में पड़ने की बंगाल में हमारे कुछ डाक्टर भाइयों ने दवाइयाँ बनाने स्वतन्त्रता मिल गई है, इससे वाद पर और भी रंग चढ़ का प्रबन्ध किया है, और मैं इस सम्बन्ध में बंगाल केमिकल जायगा । यह विषय ही ऐसा है जिसमें कांग्रेस के भीतर वर्क्स और बंगाल इम्यूनिटी वर्क्स को बधाई देता हूँ। एक-मत हो नहीं सकता। पर बंगाल में जो कुछ हो रहा है वह अभी बहुत कम - कांग्रेसवालों का उसके नेताओं का कर्तव्य है कि है। इस कार्य का और भी विस्तार होने की बड़ी जनता को प्रश्न समझा और दिशा भी दिखावें । आवश्यकता है। नेताओं का चुप हो रहना और समय पर केवल वोट दूसरा बड़ा प्रश्न है डाक्टरी शिक्षा का । इस समय गिनकर ऐसे प्रश्न का निर्णय कराना सर्वथा अनुचित है। इसके लिए दो मुख्य शिक्षालय हैं—एक तो लखनऊ इसी अर्थ में हम कहते हैं कि इस समय कार्यसमिति को का किंग जार्ज मेडिकल कालेज और दूसरा है आगरे का चाहिए था कि हमें दिशा दिखाती, नेतृत्व ग्रहण करती, मेडिकल स्कूल । ब्रिटिश मेडिकल कौंसिल में उनका न कि टाल-मटूल करती। रजिस्ट्रेशन नहीं स्वीकार किया जाता इसलिए आगरे के मेडिकल स्कूलवाले नाराज़ हैं। दूसरा बड़ा प्रश्न है मेडिकल शासन का। इसकी भी तारीख ईस्ट इण्डिया प्राचीन और नवीन चिकित्सा पद्धति कम्पनी के साथ है जब कि कम्पनीवालों को अपनी गोरी ___ संयक्त प्रान्तीय मेडिकल कान्फरेंस में सभापति फ़ौजों के साथ डाक्टर भी विलायत से भेजने पड़ते थे। के आसन से मेजर रंजीतसिंह ने जो भाषण किया गत महायुद्ध से यह प्रमाणित हो गया है कि सब काम गोरे है उसमें आपने बहुत-सी महत्त्व की बातें कही हैं। डाक्टर ही नहीं कर सकते, क्योंकि बहुसंख्यक हिन्दुस्तानी नवीन चिकित्मा-पद्धति के पण्डित होते हुए भी डाक्टरों ने भी महायुद्ध में काम किया था। आई० एम० आप प्राचीन प्रणाली को प्रोत्साहन देने के पक्ष में एस० के बारे में मैं यही कहूँगा कि केवल ज़िद के ही हैं। अपने भाषण में आपने कहा है कारण योरपीय डाक्टरों को हिन्दुस्तानियों के मुताबिले मैं भूतपूर्व मंत्री राय राजेश्वरबली को धन्यवाद देता में ऊँचे पद दिये जाते हैं। मैं केवल इतना ही कहूँगा हूँ जिन्होंने सर्वप्रथम देशी चिकित्सा पद्धति को सुधारने के कि ग्रेट ब्रिटेन में इस समय सैकड़ों हिन्दुस्तानी डाक्टर लिए कहा, और सरकार से कुछ सहायता भी दिलवाई। काम कर रहे हैं, जिनमें से कई डाक्टर वहाँ उच्च पदों पर हमें इस पद्धति की ओर सहायता का हाथ बढ़ाना चाहिए. आसीन हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara. Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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