________________
४६८
सरस्वती
में इतनी अधिक शक्ति या जाती है जिसका हम स्वप्न में भी ध्यान नहीं कर सकते ।
संयुक्त राज्य (अमरीका), जर्मनी और इंग्लैंड में यह समस्या भयंकर रूप धारण कर रही है । यहाँ केवल स्टैंडर्ड श्रायल ट्रस्ट का संक्षिप्त परिचय दिया जायगा जिससे इस समस्या की भयंकरता का अनुमान हो सके । स्टैंडर्डयल ट्रस्ट का वार्षिक लाभ लगभग पाँच करोड़ डालर है और यह सब लाभ कतिपय पूँजीपतियों की जेब में जाता है। ट्रस्ट ने लगभग ६ या १० रेलवे लाइनें तथा २५ बैंक खरीद लिये हैं । संयुक्त राज्य की लगभग सब तेल की खानें इस ट्रस्ट के हाथ में हैं । यदि तेल की कोई नई खान निकलती है और कोई दूसरी कम्पनी उसको ले लेती है तो ट्रस्ट उस क्षेत्र में एक फ़र्ज़ी कम्पनी खड़ी कर देता है, जो नाममात्र के मूल्य पर तेल बेचती है और कुछ ही समय में नई कम्पनी को अपना कारबार बन्द करना पड़ता है और खान ट्रस्ट को बेच देनी पड़ती है । यद्यपि ट्रस्ट को भी इस प्रतिद्वद्विन्ता में लाखों डालर की हानि उठानी पड़ती है, तथापि यह उसके लिए एक खिलवाड़ मात्र है। ट्रस्ट अपनी रेलों को आज्ञा देता है कि उसके प्रतिद्वन्द्वी का तेल बीच में ही नष्ट कर दिया जाय और क्षतिपूर्ति कर दी जाय । फल यह होता है कि नई कम्पनियों के ग्राहकों को कभी तेल प्राप्त ही नहीं होता। यही नहीं जो रेलवे लाइनें ट्रस्ट की नहीं हैं उन्हें भी ट्रस्ट की आज्ञा माननी पड़ती है, क्योंकि ट्रस्ट उनका सबसे बड़ा ग्राहक है । इस प्रकार ट्रस्ट अपने प्रतिद्वन्द्वियों को थोड़ी-सी हानि उठा कर सर्वदा के लिए नष्ट कर देता है ।
ट्रस्ट का राजनैतिक प्रभाव भी कुछ कम नहीं है । ट्रस्ट अपने कर्मचारियों को संयुक्त राज्य की व्यवस्थापिका सभा के लिए खड़ा करता है और जो भी राजनैतिक दल प्रबल होता है उसी को आर्थिक सहायता देकर मोल ले लेता है । संयुक्त राज्य में केवल यही एक ट्रस्ट नहीं है। स्टीलट्रस्ट, तम्बाकू- ट्रस्ट, तथा शक्कर ट्रस्ट इत्यादि सभी बलवान् हैं। ये सब ट्रस्ट कुछ इने-गिने पूजीपतियों के हाथ में हैं । अस्तु, ये ही पूँजीपति वास्तव में देश के शासक हैं, प्रजा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
[ भाग ३६
तंत्र तो नाम मात्र को है । वास्तव में जो भी देश औद्यो गिक देश हैं, वहाँ पूँजीपतियों का ही शासन है, प्रजातंत्र तो देखने भर को है । दक्षिण अफ्रीका में जवाहरात की खानों का ट्रस्ट (डी बियर्स कम्पनी) अपने कर्मचारियों को व्यवस्थापिका सभा के लिए खड़ा करता है, धन व्यय करके वोट खरीदे जाते हैं और वहाँ का शासन उस कम्पनी के स्वामियों के हाथ में है। यही नहीं, ये प्रबल पूँजीपति अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भी बहुत बड़ा प्रभाव रखते हैं । स्टैंडर्ड आयल ट्रस्ट ने मैक्सिकन विद्रोह को प्रोत्साहन दिया, मैसोपोटेमिया, तुर्की, फ़ारस की राजनैतिक हलचलों में भाग लिया केवल वहाँ की तेल की खानों को हथिया लेने के अभिप्राय से ।
आधुनिक पूँजीवाद से उत्पन्न हुई दूसरी समस्या से तो आज प्रत्येक मनुष्य अवगत है । वह है समाज में आर्थिक विषमता । कुछ पूँजीपतियों के पास अनन्त धनराशि इकट्ठी हो गई है और अधिकांश जनता दरिद्रजीवन व्यतीत कर रही है। यही कारण है कि ग्राज संसार के प्रत्येक देश में श्रमजीवी और कृषक समुदाय क्षुब्ध हो उठा है । साम्यवाद तथा कम्यूनिज्म इसी क्षुब्धता के चिह्न हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारे देश में भी वर्ग -युद्ध न छिड़े तो हमें अपना औद्योगिक संगठन दूसरे प्रकार से करना होगा ।
इससे पाठक यह न समझ लें कि भारतवर्ष को औद्यो गिक देश न बनाये जाने का परामर्श दिया जा रहा है। वास्तव में हमारे देश को जितनी आवश्यकता उद्योगधंधों की है, उतनी किसी भी देश को नहीं है । श्रौद्योगिक संगठन किस प्रकार का हो, इसी में मतभेद है । कुछ धंधे तो बड़े बड़े कारखानों के बिना चल ही नहीं सकते | उदाहरण के लिए लोहे, स्टील तथा अन्य धातुओंों के कारखाने, इंजिनियरिंग वर्क्स, यन्त्र बनाने के कारखाने, रेलवे सम्बन्धी सामान बनाने के कारखाने, जलप्रपात द्वारा बिजली बनाने के कारखाने, माइनिंग ( खानों को खोदना) इत्यादि । ये धंधे तो बड़ी मात्रा में बड़े बड़े कारखाने खोल कर ही खड़ा किये जा सकते हैं। बिना इन धंधों की उन्नति किये देश औद्योगिक उन्नति
www.umaragyanbhandar.com