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________________ संख्या ५ भारत में औद्योगिक उन्नति का प्रभ कर सकती हैं। यही नहीं, जो देश गहरी खेती(Intensive cultivation ) श्रम - पूँजी प्रधान खेती करते हैं, वहाँ जन संख्या और भी घनी होती है । किन्तु सबसे अधिक घनी जन-संख्या औद्योगिक देशों की होती है, क्योंकि प्रौद्योगिक पदार्थों के उत्पन्न करने में प्रकृति का व्यय अपेक्षाकृत बहुत कम होता है । किन्तु औद्योगिक देशों को भी कच्चा माल उत्पन्न करने और अपनी जनसंख्या के लिए भोज्य पदार्थ प्राप्त करने के लिए कोई न कोई उपाय करना ही पड़ता है। यदि वे स्वयं कच्चा माल उत्पन्न करें तो उन्हें बहुत अधिक भूमि की आवश्यकता होगी । एक कारखाना सैकड़ों वर्गमील भूमि पर उत्पन्न किये हुए कच्चे माल को पक्के माल में परिणत कर देता है । यही कारण है कि इंग्लैंड, जर्मनी और जापान इत्यादि को इस बात की आवश्यकता प्रतीत होती है कि उनके कारखानों के लिए कच्चा माल उत्पन्न करने का कार्य दूसरे देश करते रहें और उनको कच्चा माल अपनी भूमि पर उत्पन्न न करना पड़े । यदि इंग्लेंड अपनी भूमि पर उत्पन्न किये हुए कच्चे माल पर ही अवलम्बित रहे तो उसे ६० प्रतिशत कारखाने बंद करना पड़ेंगे और लगभग तीन चौथाई जन संख्या को बाहर भेजना पड़ेगा या फिर इस ऐश्वर्य को तिलांजलि देकर निर्धनता से गुज़ारा करना पड़ेगा । इंग्लैंड का आधुनिक संगठन दो बातों पर निर्भर है । एक तो उसने कच्चा माल और भोज्य पदार्थ उत्पन्न करने का भार अन्य देशों पर लाद रक्खा है, दूसरे उसके पास कारखानों के तैयार किये हुए माल को बेचने के लिए सुरक्षित बाज़ार हैं । इसके लिए इंग्लैंड को अन्य देशों पर राजनैतिक प्रभुत्व बनाये रखना श्रावश्यक है ! किसी भी देश का आर्थिक शोषण किये बिना राजनैतिक प्रभुत्व स्थापित नहीं हो सकता । अस्तु, ऐसे देश का औद्योगिक संगठन अप्राकृतिक है। जब तक इंग्लैंड भारतवर्ष, बर्मा, अफ्रीका के उपनिवेशों, मिस्र, सूदान तथा आस्ट्रेलिया इत्यादि प्रकृति-देन से भरे हुए देशों को कच्चा माल उत्पन्न करने तथा इंग्लैंड के कारखानों में तैयार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४६५ 1 किये हुए माल को खरीदने के लिए बाधित कर सकता है तभी तक उसकी इतनी अधिक जनसंख्या का भरणपोषण भली भाँति किया जा सकता है। इंग्लैंड को आज भी भयंकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है । प्रत्येक आश्रित देश अपनी स्वतंत्रता की माँग कर रहा है। स्वतन्त्र होते ही प्रत्येक देश अपने धंधों की उन्नति करेगा और इंग्लैंड के माल पर आयात कर लगाकर उसके माल का श्रना बंद कर देगा । उस समय समृद्धिशाली इंग्लेंड का औद्योगिक संगठन नष्ट-भ्रष्ट हो जायगा और रोटी का सवाल वहाँ वालों के सामने भी भयंकर रूप में उपस्थित होगा | आज हम संसार के राजनैतिक रंग-मंच पर जापान को कोरिया पर अत्याचार करते और चीन को हड़प जाने का प्रयत्न करते पाते हैं, इटली स्वतन्त्र अबीसीनिया को पराधीन बनाने पर तुला हुआ है, जर्मनी ने पिछले योरपीय युद्ध में अपना सर्वस्व स्वाहा कर दिया और संयुक्तराज्य (अमरीका) दक्षिणअमरीका में येrरपीय देशों को घुसने नहीं देना चाहता, इस सबका भेद केवल यही है कि ये देश अपने अप्राकृतिक औद्योगिक संगठन को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए उन देशों का हथियाकर उनका आर्थिक शोषण करना चाहते । जिस दिन यह आर्थिक शोषण बंद होगा वही दिन इन देशों की आर्थिक मृत्यु का दिन होगा । क्या भारतवर्ष कभी स्वप्न में भी इन देशों के समान ही कारखानों का देश हो सकता है ? जब चार करोड़ मनुष्यों की आवादीवाला देश जिसकी दो-तिहाई जनसंख्या कारखानों में काम करती है, अपने तैयार माल की खपत के लिए संसार की एक तिहाई जन संख्यावाले देशों को अपने राजनैतिक प्रभुत्व में रखना श्रावश्यक समझता है तब यदि भारतवर्ष की आधी जनसंख्या भी किसी दिन कारखानों में काम करने लगी तो भारतवर्ष का संसार- विजय करके संसार के सब देशों को अपना तैयार माल खरीदने के लिए बाधित करना होगा । ध्यान रहे अब वह आर्थिक युग श्रा रहा है जब हर एक देश अपने धंधों की उन्नति में लग जायगा और संसार के पिछड़े हुए देश भी बाहर का वह तैयार माल मँगवाना www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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