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कलिंग युद्ध
लेखक, श्रीयुत अनूप शर्मा, एम० ए० एल०टी०
[कलिंग-युद्ध भारतीय संग्रामों में एक ऐतिहासिक संघर्ष है । यह वह युद्ध है जिसने सम्राट अशोक के जीवन को कहाँ से कहाँ प्रवाहित कर दिया । संसार - विजिगीषु चक्रवर्ती को धर्माचार्य बनानेवाला यह युद्ध भारतीय इतिहास में चिर- स्मरणीय रहेगा । प्रस्तुत प्रसंग में उसी युद्ध का संध्याकालीन दृश्य है जब सम्राट अशोक, लाखों की संख्या में वीरों का संहार करके, उसी युद्ध भूमि के मध्य से होकर अपने शिविर ACT जा रहा है । जाते-जाते वह निम्नलिखित मर्मवेधी शब्द म्रियमाण सैनिकों के मुख से सुन रहा है -]
( १ )
साहस ने शक्ति ने, समुन्नति की साधना ने,
नाश को, निपात को, निधन को जगा दिया। आहत जनों के प्राण वायु की प्रतारणा ने,
आह के धुएँ को आसमान में लगा दिया || क्रोधित नृपों के युग लोहित विलोचनों ने,
लौह लेखनी से युद्ध-पटल रँगा दिया | हाय ! प्रतिशोध के पिशाच सूत्र- धारकों ने,
वीर नायकों को रंग- मंच से भगा दिया ||
( २ )
देखो म्रियमाण की दशा को भर लोचनों को,
तड़प रहा है अंग अंग, मृत्यु आई है । पीतभूमिका पै रक्त-रंग के प्रसंग-संग,
लाल लीक ललित ललाट पर धाई है ॥ अटक रही है कंठ-कूप में गिरा की धार,
शुष्क रसना ने कुछ स्नेह-पुट पाई है । उसकी पुकार - लौ गमिष्यमाण दीपक की-
युद्ध-भूमि-मंडल में श्रूयमाण छाई है ||
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( ३ )
"हाय, हाय ! पुत्र मेरे ! हाय, रे कलत्र मेरे !
हाय, भूप ! जिसके लिए यों मैंने जान दी ।
जिसके लिए ही हा, हा ! पेट भरने के हेतु,
सुभट- संहारिणी लड़ाई घोर ठान दी ॥
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सुनता नहीं है आज वह भी नृपाल मूढ़,
जिसने मुझे है ऐसी विपति महान दी ।
ज्ञात होता, भूप के अनूप कर्ण - कुंजरों को,
धिर विधाता ने अहंता की अलान दी |
(8)
तो फिर सहाय सर्व-शक्तिमान शंकर तू,
तेरे दरबार में प्रवेश दोन पाता है । तेरे ही अचल चरणों में क्रोस पीड़ितों का,
टूटता नहीं है जब जाके टकराता है ।।
शेष में शयान एक तू ही शेषशायी नाथ !
तू तो सुनता है, तू ही विश्व का विधाता है।" यह कह लोहू के पलंग पै तड़प वीर,
- गति वाले मार्ग द्वारा स्वर्ग जाता है ।
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