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________________ संख्या ५ ] पता -1 मौहनिया हैं । पृष्ठ संख्या १४, मूल्य चार आने है । - हिन्दू - शुद्धि-सभा, राजा की मंडी, आगरा । विष्णु पुराण के भौगोलिक वर्णनों का ग्राज-कल के देशों, पर्वतों, नदियों तथा भूमिखण्डों के नामों के साथ संगति-स्थापन की चेष्टा लेखक ने इस पुस्तक में की है। सप्तद्वीपा वसुमती के पौराणिक भूमिखण्डों का विभाजन, नदियों के समूहों का वट, कदम्ब, पीपल तथा जम्बु वृक्षों का नाम देना आदि कई एक बातों पर लेखक ने एक नवीन दृष्टिकोण से विचार किया है। लेखक ने जिन प्राचीन नामों की श्राज-कल के द्वीपों या देशखण्ड आदि के नामों से संगति बैठाई है वह एक विवाद ग्रस्त विषय हैं। इसी विषय पर अन्य विद्वानों की पुस्तकों से अपने मतभेद के कारण तथा पुष्टि के लिए लेखक ने प्रमाण नहीं दिये हैं । पुस्तक में कई एक बातें बड़े मार्के की कही गई हैं । गजप्रमाण जम्बुका गिरना और उनके रस से नदियों के निकलने के वर्णन को लेखक ने बड़ी कुशलता से तुषार के बड़े बड़े खण्डों वा ग्लेसियरों का पतन कह कर समझाया है। उनकी उद्भावनायें हमें बुद्धिसंगत प्रतीत होती हैं। कृष्ण के बाल्यकाल, गोवर्धनधारण, चीरहरण आदि को भी लेखक ने भौगोलिक चित्रों का रूप दिया है। इन चित्रों की स्पष्ट व्याख्या करने की आवश्यकता है । पुस्तक में अनेक मान-चित्र दिये गये हैं । परन्तु पुस्तक का काग़ज़ और छपाई दोनों ही रद्दी हैं । यदि लेखक महोदय अपनी इन खोजों को उचित रूप में प्रकाशित करें तथा इस विषय पर अन्य लेखकों की गवेषणाओं की तुलनात्मक समीक्षा करके अपने विचारों की पुष्टि में दृढ़ प्रमाण उपस्थित कर सकें तो यह पुस्तक बड़ी उपयोगी सिद्ध होगी । २३ - कविवर रत्नाकर -- लेखक, पण्डित कृष्णशंकर शुक्ल, एम० ए०, प्रकाशक, विद्याभास्कर बुकडिपो, बनारस | मूल्य २| है | स्वर्गीय श्री बाबू जगन्नाथदास 'रत्नाकर' याधुनिक काल के एक प्रसिद्ध महाकवि थे । उन्होंने सदैव (आजीवन) व्रजभाषा देवी की उपासना तन-मन-धन से की। पुस्तकें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४६३ प्रस्तुत पुस्तक में पंडित करुणाशंकर जी ने रत्नाकर के काव्य- कौशल पर बड़े ही सुन्दर रूप से मार्मिक प्रकाश star है और बड़ी ही चारुता से उसकी आलोचना की है | हिन्दी - साहित्य में इस प्रकार की आलोचनात्मक पुस्तकों की बड़ी कमी है। प्रकाशक महोदय का भी कार्य सर्वथा स्तुत्य है । ऐसा प्रकाशन वस्तुतः हिन्दी - साहित्य का श्रीवर्धक ही है । पुस्तक छपाई - सफ़ाई तथा आकार प्रका रादि में भी बड़ी ही रुचिर - रोचक है। आशा है पुस्तक का पूर्णतया समादर होगा । -- रामशंकर शुक्ल, 'रसाल', एम० ए० २४ - - पटना के दो साप्ताहिक - गत दो वर्षों से पटना से योगी और नवशक्ति नामक दो सुन्दर सचित्र साप्ताहिक पत्र प्रकाशित हो रहे हैं। योगी के सम्पादक श्रीयुत रामवृक्ष शर्मा बेनीपुरी बिहार के नवयुवक और अनुभवी पत्रकार हैं। आपका खयाल है कि अन्य प्रान्तवाले बिहारवालों का समुचित श्रादर नहीं करते, इसलिए इस सम्बन्ध में भी 'योगी' के पृष्ठों में बराबर श्रान्दोलन करते रहते हैं । 'नवशक्ति' के सम्पादक श्रीयुत देवव्रत जी भी बिहार के नवयुवक और अनुभवी पत्रकार हैं । आपका प्रयत्न यह है कि 'बिहार का अपना एक पत्र हो जो स्थायी रूप से समस्त राष्ट्र और खास कर बिहार की सेवा करता रहे' । आप अपने इन प्रयत्न में बहुत कुछ सफल हुए हैं । राष्ट्रपति श्री राजेन्द्रप्रसाद जैसे बिहार के लोकनेताओं का आपको सहयोग प्राप्त है । नवशक्ति कांग्रेस की नीति का समर्थक है । 'योगी' की नीति इससे कुछ भिन्न है । वह कांग्रेस के अन्तर्गत जो नवीन साम्यवादी दल क़ायम हो रहा है उसका पोषक प्रतीत होता है। इस भेद के अतिरिक्त दोनों पत्रों में बहुत कुछ साम्य है । दोनों की छपाई-सफ़ाई एक-सी है और दोनों का वार्षिक मूल्य भी एक ही अर्थात् ३ ) है । हम पटना के इन दोनों महयोगियों की हृदय से उन्नति चाहते हैं । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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