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________________ ४५४ सरस्वती [भाग ३६ बड़ी बड़ी दूकानें थीं। उनमें से अधिकांश ठग थे और जब तक आप उनसे खूब दृढ़तापूर्वक सौदा न करें, आपका ठगाया जाना अवश्यम्भावी है। हमने कुछ वस्तुएँ खरीदीं और होटल में गये। भोजन के बाद हम पिरमिड देखने निकले। पिरमिडों को जो सड़क जाती है वह [अरबी कहवा (पोर्ट सईद)] कैरो की अत्यन्त सुन्दर सड़कों में से एक है। राजसी महल की विभिन्न वस्तुओं के रूप-रङ्ग को, जो सड़क के दोनों ओर मिस्र के श्रीमन्तों के बँगले हैं। बिलकुल नये-से जान पड़ते थे, देखकर हमें बड़ा पहाड़ी के नीचे उपत्यका में एक मील जाकर सड़क आश्चर्य हुआ। क़ब्र में रक्खी गई शृङ्गार की विभिन्न समाप्त हो जाती है। यहाँ से पिरमिडों तक जाने वस्तुओं की कारीगरी और उन पर किये गये सुनहले के लिए ऊँट मिलते हैं। ये ऊँट बड़े ही सीधे काम का सविस्तर वर्णन करना असम्भव है। प्रद-- होते हैं। यद्यपि आरम्भ में यह सवारी बड़ी र्शन की वस्तुओं से ३,५०० वर्ष पूर्व की मिस्री संस्कृति खतरनाक जान पड़ी तथापि हमें इससे बहुत आनन्द का अनुमान किया जा सकता है। इन अवशेषों मिला। प्राचीन पिरमिड, जिनके विषय में मिस्री से यह स्पष्ट हो जाता है कि उन दिनों के मिस्र- पुरातत्त्व के विशारदों ने आश्चर्यजनक बातें बतलाई निवासी किस प्रकार का जीवन व्यतीत करते थे। हैं वास्तव में दर्शनीय हैं और जो स्वेज नहर से हमारी चार पहिये की गाड़ियों की तरह उनके रथ गुज़रते हैं उन्हें यह अवसर न चूकना चाहिए। हम होते थे। उनके रथों में मील बतानेवाले यंत्र भी पिरमिडों के आन्तरिक भाग में गये और प्राचीन थे। हमारे पाठक मिस्र देश की ममियों और मिस्री मिस्रियों ने उन विशाल स्तूपों की कैसे रचना की है पुरातत्त्व के महान ज्ञाता मिस्टर होवर्ड कार्टर-द्वारा यह देखकर हमें बड़ा आश्चर्य हुआ। प्रत्येक पत्थर खोजे गये अन्य अवशेषों के सम्बन्ध में पढ़ चुके हैं। समान पूर्ण घनाकार वज़न में लगभग १५ टन के इसलिए मैं पुरातत्त्व-सम्बन्धी खोजों का यहाँ वर्णन होगा। पिरमिड नम्बर १ की उँचाई लगभग ५०० न करूँगा। इस संग्रहालय में रोमन-काल की, जो फीट है और इसकी बनावट क्रकचायत के समान पुरातत्त्ववेत्ताओं को अध्ययन की यथेष्ट सामग्री है। अन्दर के भाग में शिखर तक जाने के लिए प्रदान करता है, कुछ आश्चर्यजनक मूर्तियाँ भी हैं। सीढ़ियाँ हैं। मैं और मेरे चीनी मित्र मिस्टर कू संग्रहालय देखने के पश्चात् हम देशी बाजार में चोटी तक गये । परन्तु जब हम नीचे उतरे तब | गये। वहाँ यहूदियों, इटालियनों और यूनानियों की सर्वथा थक गये थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.core
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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