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संख्या ५]
विवाह की कुछ और विचित्र प्रथायें
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है और उसका अर्थ यह होता है कि संतान बहुत- साज ढीला करती है। इससे भी यह समझा जाता सी और आसानी के साथ हो। पश्चिमी रूस के है कि वधू फलवती होगी और संतानोत्पत्ति में उसे यहूदियों में वर अपनी वधू के सम्मुख एक अंडा कोई कष्ट न होगा। रखता है और उसका यह अर्थ समझा जाता है कि ये सारी प्रथायें जादू-टोने के काल की हैं। हम जैसे मुर्गी आसानी से अंडा देती है, वैसे ही वधू के लोग जादू-टोने से तो अब हटते चले जाते हैं, विज्ञान भी सरलता से संतान हो। स्वीडन देश के कुछ ने उसका स्थान ही अब मनुष्य-जीवन में नहीं छोड़ भागों में वधू अपने जूते के फीते खुले छोड़ देती है रक्खा है, पर अभी रूढ़ियाँ पुरानी ही चली जा
और उसका अर्थ यह लगाया जाता है कि जैसे खुले रही हैं। हुए जूते से पैर आसानी से निकल आता है, वैसे ही नोट-मुझे इस लेख के और इससे पहलेवाले संतानोत्पत्ति में वधू को कोई कष्ट न हो। वहाँ यह लेख के लिखने में, Nash Magazine तथा London भी होता है कि गिर्जाघर से लौटकर वयू घोड़े से Life से बहुत सहायता मिली है। इसलिए उन दोनों तुरन्त ही उतरती है, घोड़े को बाग फौरन निकाल पत्रों के प्रति कृतज्ञता प्रकाश कर देना मैं अपना लेती है, घोड़े को नाक पर मारती है और उसका कर्तव्य समझता हूँ। लेखक ]
- जीवन लेखक, कुवर सोमेश्वरसिह, बी० ए०
है बँधा परिस्थितियों से, जग की मेरा यह जीवन । चलने है कभी न पाता, वाञ्छित पथ पर उन्मन मन ॥१॥
हैं निठुर सत्य से टकरा, मिटती मंजुल आशाय। उल्लास-सुमन को मुरझा,
जाती हैं विपुल व्यथायें ।। २॥ हँसने है मुझे न देता, जीवन का अविरल क्रन्दन । सोने निर्विघ्न न देता, वनों का मधुमय गुंजन ।। ३ ।।
मन को मृदु कहीं जगत का, परिहाम टोक जाता है। सीमा का अकरुण शासन,
फिर मुझे रोक जाता है ।।४।। सुख का प्रवाह अनियंत्रित, उर में जब बह जाता है। कर्त्तव्य तभी कुछ मुझसे, चुपके से कह जाता है॥५॥
है मुझे डुबो देता जब, मेरा सुखमय पागलपन । है चुटकी-सी ले जाती, चेतना निपट निष्ठुर बन ॥६॥
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