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________________ ४३६ सरस्वती [भाग ३६ - - व्याह ली जाती हैं। पर प्रत्येक भाई की प्रत्येक पर्न एक समान ही पत्नी होती है। यह नहीं होता कि एक भाई की एक ही पत्नी हो। इस भाँति कई पति और कई पत्नियाँ हो जाती हैं। संतान पारि वारिक संतान होती है, व्यक्तिगत संतान नहीं। इस तरह का परिवार भारतीयों के परिवार से कह अधिक शक्तिशाली होता है और बँटवार की शायद ही कभी आवश्यकता पड़ती हो। तिव्वत में विवाह एक आर्थिक अथवा व्यावमायिक संस्था है, धार्मिक संस्कार नहीं। तिब्बत की स्त्रियाँ कई पति वरण करने को बाध्य नहीं की जाती हैं। वे इस प्रणाली का स्वयं पसंद करती हैं। उनकी ममझ में यही नहीं आता है कि जिस स्त्री के एक ही पति होता है वह अपने पति के लंबी यात्रा पर चले जाने पर निवाह कैसे करती है। हम लोगों को तिब्बत का इस प्रकार का विवाह अजीब मालूम हो सकता है, पर तिव्वतवाले उसी में बड़े सुग्बी हैं और ऐसा विवाह उनकी आर्थिक दशा के बहुत अनुकूल है। उन्हें पाप या भ्रष्टाचार का इस विषय में अनुवोध नहीं होता और ठीक भी है। आचार-विचार और प्रथायें समय और परिस्थिति पर निर्भर हैं। [एशियाई यहूदी विवाह के बाद मछली के ऊपर भारतवासियों की तरह यह विश्वास करना कि जो से कूदते हैं हम करते हैं या कहते हैं वही ठीक है और बाक़ी दूसरा भाई घर संभालता है और जब उसको सब ग़लत है, केवल मूर्खता और कूपमंडूकता है। भौजाई उसकी पत्नी भी होती है तब वह जी लगा- विवाह की काई एक प्रथा सर्वव्यापी नहीं कर काम भी करता है। उधर जो भाई यात्रा पर कही जा सकती। देश, काल और जाति के अनुसार गया होता है उसे अक्सर महीनों बाहर रहना पड़ता प्रथायें वनती और बिगड़ती चली जाती हैं। अक्सर है। तिव्वत में रेल नहीं है और सड़कें भी बहुत कम यह होता है कि सिद्धान्त एक ही होता है, पर भिन्न हैं। यदि बर्फ पड़ने लगी तो चलना असंभव हो जाता भिन्न देशों में वह भिन्न भिन्न प्रकारों से चित्रित है। इसलिए परदेश में यात्री को स्त्री की आवश्यकता किया जाता है। उदाहरण के लिए एक सिद्धांत यह पड़ती है। थोड़े दिनों के लिए वह परदेश में ही है कि शुभ कार्य में अनिष्ट से बचाने का प्रयत्न किया व्याह कर लेता है। तिब्बत-निवासी ऐसे विवाहों जाय। सब देशों में यह समझा जाता है कि विवाह को बुरी निगाह से नहीं देखते हैं। यदि परिवार के समय अशुभ शक्तियाँ अपना कारोबार खास की आर्थिक स्थिति इस बीच में अच्छी हो गई तो तौर से जारी रखती हैं और उनसे बचने के लिए एक पत्नी के स्थान पर दो अथवा तीन पत्नियाँ हजारों टोटके किये जाते हैं। वधू का भूमि पर पैर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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