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________________ कोणार्क की यात्रा संख्या १ ] है। यहाँ एक सरकारी डाक बँगला भी है। दिव्यसिंह बाबू के घर में बड़ी भीड़ थी, कोई सभा हो रही थी, इसलिए भोजन के लिए १२ बज गये। रात को यह निश्चय किया गया कि सवेरे ३ बजे उठकर चन्द्रभागा चला जाय । यहाँ का सूर्य-दर्शन प्रसिद्ध है । माघ- सप्तमी के दिन यहाँ एक बड़ा भारी मेला होता है। १० हज़ार के क़रीब नरनारियों का जमाव होता है। कोणार्क से २ मील की दूरी पर चन्द्रभागा समुद्र से मिलती है । ३५ [पत्थर पर सहस्रदल कमल ] क़रीब ४॥ बजे नींद खुली। प्रातःसमीर में विचरते हुए चन्द्रभागा-पुलिन पर पहुँचे। चन्द्रभागा में पानी नहीं था । केवल १५-२० हाथ लम्बा ४ हाथ चौड़ा एक कुण्ड था । उसी में थोड़ा पानी था, थोड़ी दूर चलकर चन्द्रभागा का मुहाना था। पर पानी का प्रवाह न होने के कारण मुहाने लगे। पूर्व की ओर समुद्र की कोख से द्वितीय चन्द्रकार के को देखकर आनन्द नहीं मिला। यह चन्द्रभागा पहले 'चित्रोत्पला' के नाम से पुकारी जाती थी। चीनी यात्री हूएनसाँग ने अपने यात्रा वर्णन में जिस 'चित्रोत्पला' का उल्लेख किया है वह यही है । ग्रीक लेखक टोलेमी ने मुहाने पर जिस नागर बन्दर का उल्लेख किया है वह यहीं समान एकदम लाल दिखलाई दिया। थोड़ी ही देर में वह अरुण अर्ध चन्द्राकार में परिणत हो गया। अब वह सोने के घड़े के आकार में परिणत हुआ । साफ़ मालूम देने लगा जैसे कुंभकार चाक में घड़े को फिराता है। इसके बाद यह देखा गया, मानो कोई लाल लट्टू घुमाया जा रहा हो। फिर वह एकाएक ऊपर उठ गया । दिग्दिगन्त में किरणें दौड़ गई । शान्ति भंग हो गई । यही बतलाया जाता है 1 हठात् हम लोगों की आँखें पूर्व की ओर गई। अब हम श्रानन्द- सिन्धु की लहरियों में खेलने लगे । सर्वत्र नीरवता, निस्तब्धता, शान्ति-किसलय-युक्त पौधे लहलहाने श्रद्भुत दृश्य देखने के लिए माघ-सप्तमी को यहाँ १०-१२ हज़ार ग्रादमी एकत्र होते हैं। उसी दिन का सूर्योदय- दर्शन पुण्यप्रद भी माना जाता है । इस सूर्योदय की सुन्दरता का आँकना चित्रकार की तूलिका की शक्ति के बाहर की बात है । इसके सौन्दर्य से विस्मय-विमुग्ध होकर हमारी मण्डली की सरोजनी चौधरानी के ५ वर्षीय नाती ने कहा कि मा (नानी) देख तो कितना सुन्दर दिखाता है । ५ वर्ष के बालक को भी उस अलौकिक सुन्दरता का परिबोध हुआ । यह दृश्य देखने के पश्चात् समुद्र की लहरों के साथ खेलने लगे । २०-२० हाथ ऊँची उदधि-ऊर्मि उठती थी । स्नान कर हम सब कोणार्क को लौटे । कोणार्क का प्रसिद्ध मन्दिर अति जीर्ण अवस्था में [कोणार्क से एक मील दूर दक्षिण रामचण्डी ग्राम का है। प्रधान मन्दिर गिर गया है। सामने का हिस्सा जिसे भोगशाला कहते हैं, विद्यमान है। इसके अन्दर काली मन्दिर । ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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