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________________ ४२८ सरस्वती पर पचीस सहस्र जनता की उपस्थिति में इनका अत्यन्त प्रभावशाली भाषण हुआ । इनके प्रयत्न से ये दोनों हड़तालें शान्तिपूर्वक बीत गई, अन्य स्थानों की भाँति किसी प्रकार का झगड़ा टंडा नहीं होने पाया । म्यूनिसिपल बोर्ड - ई-सन् १६२० में ये मेरठ- म्यूनिसिपलटी के सदस्य चुने गये । उक्त बोर्ड के ये पहले हिन्दू वायस - चेयरमैन तथा शिक्षा विभाग के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। बोर्ड में इनका कार्य विशेषरूप से प्रशंसनीय रहा । हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही इन पर पूर्ण विश्वास रखते थे । साहित्य-सेवा और राज्य - सम्मान – मेरठ के देव नागरी स्कूल में ही इन्हें प्रारम्भिक शिक्षा मिली थी। इस स्कूल को साधारण स्थिति से इन्होंने हाई स्कूल बना दिया और उसके लिए एक विशाल भवन भी बन - वाया । मेरठ कालेज को आर्थिक संकटों से मुक्त कराना, उसमें बोर्डिंग हाउस की स्थापना कराना तथा ऐतिहासिक और दार्शनिक वर्ग खुलवाना भी इनका ही काम है । 'वैश्य - नाइट स्कूल' को भी इन्होंने ही 'वैश्य - स्कूल' बनाकर पूर्ण उन्नतावस्था में पहुँचा दिया है । इनका शिक्षाप्रेम यहाँ तक बढ़ा हुआ है कि इस स्कूल में रात्रि के समय ये स्वयं विद्यार्थियों अँगरेज़ी तथा संस्कृत पढ़ाया करते थे । इनकी सार्वजनिक सेवाओं पर मुग्ध होकर प्रान्तीय सरकार ने इनको 'आनरेरी मजिस्ट्रेट' बनाया और 'राय साहब' की उपाधि प्रदान की । सन् १६२० में ये 'राय बहादुर' बनाये गये। इसके बाद सन् १६३० में 'नाइट हुड' अर्थात् 'सर' का उच्च पद इन्हें प्रदान किया गया । सर सीताराम बनारस के 'हिन्दू विश्वविद्यालय' के सदस्य हैं । सन् १६३२ में इलाहाबाद और सन् १९३३ में आगरा की यूनिवर्सिटी तथा वृन्दावन गुरुकुल के वार्षिक अधि वेशनों पर दीक्षांत भाषण किये। इनके भाषणों की प्रशंसा अनेक सामयिक प्रमुख पत्रों ने मुक्तकंठ से की है । ज्वालापुर के गुरुकुल - महाविद्यालय ने भी इनके साहित्यप्रेम से प्रभावित होकर इनको मानपत्र समर्पित किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ कौंसिल-कार्य्य- - सन् १६२० में ये प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिल के मेम्बर चुने गये । वहाँ जनता के हित के अनेक कार्य किये, जिससे इनके प्रति जन साधारण का और भी अधिक विश्वास बढ़ गया। इनके ही प्रयत्न से आगरा यूनीवर्सिटी का क़ानून स्वीकृत हुआ और उक्त यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई। ये बहुत बड़े जमींदार हैं, फिर भी कृषकों का पक्ष लेने और उनकी भलाई करने में तनिक भी नहीं हिचकते । ये अवध के कृषक -कानून की सेलेक्ट कमेटी के भी सदस्य थे । नक़लों तथा नालिशों पर जो स्टाम्प बढ़ा दिया गया था, इनके प्रयत्न से फिर पूर्ववत् हो गया। इन्होंने सट्टे को संशोधन द्वारा जुवे के क़ानून में सम्मिलित कराया, प्राइवेट प्रेक्टिस करनेवाले डाक्टरों को सिविल सर्जन बनाने, राजनैतिक कैदियों को छुड़ाने तथा उनको सुख पहुँचाने, और फ़ौजदारी के नये क़ानून को इस प्रांत से हटा लेने इत्यादि के लिए इन्होंने भरसक परिश्रम किया। ये यू० पी० कौंसिल की प्रायः सभी उपसमितियों के सदस्य रहे । इनकी काय युक्तियों और प्रभावशाली भाषणों से कौंसिल का इतिहास परिपूर्ण है । प्रान्तीय सरकार ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को एक लाख बीस हज़ार रुपये वार्षिक सहायता देना स्वीकार किया था, इस स्वीकृति के प्राप्त करने में इन्होंने भी सहायता पहुँचाई थी । सन् १९२३ में ये यू० पी० कौंसिल के लिए बिना प्रतिद्वन्द्विता के दूसरी बार सदस्य चुने गये तथा बहुमत से यू० पी० कौंसिल के प्रेसीडेंट निर्वाचित किये गये । इनके न्याययुक्त तर्क और कार्य कुशलता की कौंसिल में बड़ी प्रशंसा हुई । इनका अध्यक्ष पद का कार्य बहुत ही संतोष - प्रद रहा। सरकारी, ग़ैर-सरकारी और अन्य सभी दल के नेताओं के हृदय पर इनकी कार्य- पटुता का प्रभाव अंकित हो गया । इनके अध्यक्ष होने से पहले जो सदस्य हिन्दी या उर्दू में भाषण करते थे उनके भाषणों की रिपोर्ट नहीं ली जाती थी और न छपती थी । इनका पहला कार्य यह हुआ कि उर्दू और हिन्दी की स्पीचों के लिए एक शार्ट www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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