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________________ संख्या ५ ] लाला जी तथा प्रतिनिधियों के स्वागत और श्रातिथ्यसत्कार में बड़ा उद्योग किया था। इसी प्रकार माननीय गोखले के मेरठ आने पर इन्हीं ने उनका उपयुक्त स्वागत-सत्कार किया था । सन् १९११ में महामना मालवीय जी हिन्दू विश्वविद्यालय का झंडा लेकर मेरठ पधारे तब इनके प्रबन्ध को देखकर वे भी बहुत सन्तुष्ट हुए थे 1 सन् १९११ के दिसंबर में वैश्य महासभा के प्रमुख संचालक माननीय रायबहादुर लाला रामानुजदयालु जी के स्वर्गवासी होने पर उनके रिक्त स्थान पर इनका निर्वाचन हुआ । इनके प्रयत्न और सुप्रबंध से अखिल भारतीय वैश्य महासभा की बड़ी उन्नति हुई । कितने ही दिनों तक ये महासभा के सहायक मंत्री और प्रधान मंत्री रहे और अब भी उसके उपसभापति हैं । माननीय सर सीताराम सन् १९१५ में इनके उत्साह और परिश्रम से मेरठ में 'सेवक मंडल' की स्थापना हुई । ' सेवक मंडल' की महत्त्वपूर्ण सेवाओं द्वारा गढ़मुक्तेश्वर आदि गंगा स्नान के मेलों पर जहाँ लाखों मनुष्यों का जन-समूह एकत्र होता है, यात्रियों को अनेक प्रकार की सहायता और सुख पहुँचाया जाने लगा । ये मंडल के प्रमुख कार्यकर्ता थे । मेरठ की समस्त सामाजिक और धार्मिक संस्थानों में विशेषरूप से इनका सहयोग रहा है। मेरठ के वैश्य यंगमैन एसोसियेशन के भी ये एक उच्च पदाधिकारी थे । सन् १९१७ में मेरठ में मोहर्रम और दशहरा ( रामलीला) एक ही साथ होने के कारण मेरठ के हिन्दूमुसलमानों में दंगा हो जाने की घोर आशंका थी । सरकारी कर्मचारी भी इसके लिए विशेष चिंतित थे, परन्तु इनकी कार्यदक्षता से वह संकट की घड़ी अनायास ही टल गई । सहारनपुर, मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर - ज़िला के धारी वाल ग्राम में हिन्दू-मुसलमानों के भीषण उत्पात हुए । उस समय इन्होंने पीड़ितों और दुखी परिवारों की बड़ी सहायता की तथा अत्याचारियों को दंड दिलाया । सन् १९२४ में गंगा-यमुना की भयंकर बाढ़ से हज़ारों मनुष्यों और पशु को अपार क्षति पहुँची थी। इनका हृदय दुखी-जनों के आर्तनाद से अत्यन्त द्रवित हुआ और इनके ही प्रयत्न से उस वर्ष यू० पी० कौंसिल में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४२७ मालगुज़ारी छोड़ने और तनाब देने का प्रस्ताव पास हुआ । इनकी ज़मींदारी की ग्रामीण प्रजा इनके सद्व्यवहार से अत्यंत संतुष्ट और प्रसन्न रहती है। जनता के हितार्थ कुएँ, नालियाँ, सड़कें, पाठशालायें और मंदिर श्रद अनेक प्रकार की सुव्यवस्था और सुविधायें कर दी गई हैं। इसके सिवा इनकी रियासत में बेदखली और इज़ाफ़े के मुक़द्दमे बहुत कम चलते हैं । जनवरी सन् १९२४ में इनके सभापतित्व में मेरठनिवासी वैश्यों में प्रचलित दुष्प्रथाओं के संशोधनार्थ 'व्यवहार- रीति- पत्र' (दस्तूरुल अमल) का निर्माण हुआ । वास्तव में इनके हृदय में जातीय सुधार की प्रबल आकांक्षा है और ये सदैव जातीयान्नति का ध्यान रखते हैं। राजनीति -- परन्तु इनकी केवल सामाजिक ही नहीं, बल्कि शिक्षा सम्बन्धी और राजनैतिक सेवायें भी कम महत्त्व नहीं रखती हैं। ये राजनैतिक क्षेत्र में सन् १६०७ से ही सम्मिलित हुए हैं । महात्मा गांधी ने सन् १९१६ में जब सहयोग का शंखनाद किया था तब इन्होंने भी उसमें निर्भयता से भाग लिया था । सन् १६२० में ये मेरठ में ज़िला राजनैतिक कान्फरेंस के अध्यक्ष हुए थे, और उसी साल अमृतसर- कांग्रेस की विषय निर्वाचिनी समिति के सदस्य हुए थे । इसके बाद ये प्रायः कांग्रेस के अधिवेशनों में सम्मिलित होते रहे । ६ अप्रेल सन् १६१६ को देशव्यापी हड़ताल हुई थी । वह मेरठ के प्रसिद्ध नौचंदी मेले का अंतिम दिन था। इस दिन दूकानदारों की मेले में अधिक बिक्री होती है । परन्तु इनके असीम उद्योग से नौचंदी के मेले में भी पूर्ण हड़ताल रही। इस क्षति पूर्ति के लिए इन्होंने मेला एक दिन और बढ़ा दिया। सरकारी कर्मचारियों ने रुष्ट होकर अपना समस्त प्रबन्ध ---- - पुलिस, रोशनी यदि उठा लिया था, अतएव इन्होंने नगर - निवासियों की सहायता से ऐसा उत्तम प्रबन्ध किया कि दूकानदार इस अतिरिक्त दिन की बिक्री से परम संतुष्ट और प्रसन्न हो गये। इसी भाँति ११ तारीख को महात्मा गांधी जी के पकड़े जाने पर पुनः हड़ताल हुई। उस समय सूर्य कुंड www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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