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________________ संख्या ५] कोयासान ४२३ गोकुराकुजी बौद्ध-मन्दिर में डेरा पड़ा । तीन दिन ठहर कर जापान से प्रस्थान करने की सलाह ठहरी। ७ तारीख को इंडिया लाज देखने गये। कोबे में भारतीय छात्रों तथा अपरिचित व्यक्तियों के रहने के लिए किसी अच्छे स्थान की [शोजो शिन्-इन् ताकी गुची और योकाबुए)] आवश्यकता थी। आनन्द मोहन बाबू आज दस साल पता लगा था, मंचूरिया के तीन मगोल भिक्षु यहाँ से जापान में हैं। असहयोग में मेडिकल कालेज के पढ़ रहे हैं। सोचा उनमें कोई तिब्बती-भाषा का जान- अन्तिम वर्ष से उन्होंने असहयोग किया था। पीछे कार होगा, और उससे मंचूको और मंगोलिया के बारे में राजेन्द्र बाबू के प्राइवेट सेक्रेटरी हुए। यहाँ आने के विशेष हाल मालूम होगा। भेंट होने पर सच्चे मंगोल की बाद से भारत के राष्ट्रीय कार्य में संलग्न हैं। वे जापानीभाँति वे खुले दिल से मिले । तिब्बती-भाषा का उनका भाषा बहुत अच्छी तरह बोलते हैं। उनके जापानीज्ञान अत्यन्त अल्प था । पढ़ कर वे देश में जा कर धार्मिक भाषा के व्याख्यान कई बार रेडियो पर भी ब्राडसुधार करना चाहते हैं। सात बजने का समय नज़दीक कास्ट हुए हैं। उनकी योग्यता और संलग्नता के कारण था, इसलिए कालेज की लाइब्रेरी में गया । कितने ही जापान के प्रधान पुरुषों में है। भारअध्यापक और कुछ छात्र जमा थे। चाय और फल का तीयों के तो वे सर्वमान्य नेता हैं। भारतीय व्यवसायी भोज दिया गया। संस्कृत के सहायक अध्यापक उएदा ने पहले से भी जापान में आते हैं, किन्तु अानन्दमोहन स्वागत किया। दूसरों ने भी कुछ कहा । हमसे भारत बाबू के प्रयत्न से जापानियों की दृष्टि में उनका मान में बौद्ध-धर्म के बारे में पूछा गया। हमने जापानी अधिक बढ़ा है। भारतीय विद्यार्थियों की वे हर तरह से बंधुत्रों को भारत में बौद्ध-धर्म के पुनरुज्जीवित करने के मदद करते हैं। कितने ही कामों के सीखने के लिए बारे में कहा। उन्होंने इच्छा प्रकट की, यदि भारतीय अधिक प्रभावशाली व्यक्ति की सिफ़ारिश चाहिए, और बालक धार्मिक विद्याध्ययन के लिए आयें तो उन्हें हम वैसे कामों में आनन्दमोहन के जापानी मित्रों का प्रभाव अपने मठों में भिक्षु बनाकर रख सकते हैं। काम देता है। भारतीय विद्यार्थियों तथा यात्रियों के लिए ६ अगस्त को सवेरे सात बजे ही हम चल पड़े। कोबे में ठहरने की कोई सस्ती जगह न थी। उन्होंने आकाश मेघाच्छन्न था, और बूंदा-बाँदी हो रही थी। स्थानीय भारतीयों से चंदा करके हाल में ही ७,५०० येन् फाटक पर प्रोफ़ेसर फुजिदा मिले । वे केबलकार के स्टेशन में एक जगह खरीदी है। श्री आनन्दमोहन और उनके तक पहुँचाने पाये। मित्र इस पुरानी इमारत को गिराकर वहाँ पर एक अच्छा इस सुन्दरतम पार्वत्य दृश्य को देखते हुए हमारी कार भारतीय आवास बनाना चाहते हैं। इस पर पचास हज़ार उतरने लगी। हाशीमोतो होते हुए साढ़े दस बजे अोसाका येन् खर्च होंगे। कुछ सहायता जापानी सजन भी देंगे। पहुंचे और गाड़ी बदल कर ११|| बजे कोबे । श्री आनन्द- किन्तु आवश्यकता है कि भारतीय उनके इस काम में मोहनसहाय को पहले सूचित कर रखा था। हिगाशी मदद करें । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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