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________________ ४२० सरस्वती [भाग ३६ 757 । अति दूर अवस्थित टापू में एक सजीव ज्वालामुखी है । रोज़ उस टापू के लिए नहाज़ जाया करता है। प्रेमी युगल जाकर मीहार के अग्नि-मुख में कूद पड़ते हैं। शिन् जू के मारे सरकार ने मीहार पर कड़ा पहरा बैठा रक्खा है। रात को खुले कुत्ते पहरा देते हैं । तब भी कुत्तों को मांस का टुकड़ा डाल कर कितने ही पहुँच जाते हैं । मैंने अपने जापानी [ गोसामइ-इन् ] मित्र से पूछा -- ज्वालामुखी के पेट से लाश तो मिलेगी। -एक प्रसिद्ध चित्रकार के चित्र-फलक को दिखला नहीं, फिर पता कैसे लगता है कि मीहार में रोज़ दो एक कर जब मुझे यह कथा सुनाई गई तब मैंने कहा शिन्-जू के शिन्-जू होते हैं। उत्तर मिला-जहाज़ के मुसाफ़िरों की प्रचार का यह एक उत्तम साधन है। हिन्दी-पाठकों ने शिन्-जू गिनती करने से । पहली बार जब जापान में रोजाना १२-/ के बारे में नहीं सुना होगा । जापान में प्राज-कल इसकी १३ शिन्-जू की बात मुझसे कही गई तब मैंने उसको | भरमार है। दो तरुण-तरुणी आपस में प्रेम करते हैं । दोनों इतना अविश्वनीय समझा कि उस पर आश्चर्य भी नहीं | ब्याह करना चाहते हैं । माबाप की ओर से विरोध होता है । आर्थिक, सामाजिक या दूसरी कठिनाई बाधक होती है। तरुण-तरुणी सोचते हैं, इस जन्म में हमारा सुखमय मिलन नहीं हो सकता। चलो उस लोक को चले चलें । दोनों रेल के नीचे लेट जाते हैं, ज़हर खा लेते हैं या गैस का पाइप नाक पर लगा लेते हैं या सबसे अधिक प्रचलित ढंग है मीहारयामा का टिकट कटा लेना। मीहारयामा तोक्यो [शेोजो शिन्-इन् (चित्रफलक )] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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