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________________ संख्या ५ ] कोयासान गर्मी में हम भी इनकार करने के लिए तैयार न थे, किन्तु मालूम हुआ, इस भेंट को हम बक्स में रख भर सकते हैं, इस्तेमाल नहीं कर सकते । खैर, शकाकिबारा ने अपनी पंखी दी, और उसने बहुत सहायता पहुँचाई । आजकल गर्मी का दिन है, बहुत-से स्कूल के लड़के तथा दूसरे यात्री जापान के दार्जिलिंग और बदरीनाथ- कोयासान् की यात्रा कर रहे हैं । वसन्त में कोयासान् फूलों से ढँक जाता है । उस वक्त इस पर्वतस्थली के दर्शनार्थ और भी अधिक यात्री आते हैं। प्रतिवर्ष दस लाख तीर्थाटक कोयासान् पहुँचते हैं । यद्यपि यह पर्वत समुद्रतल से २,८५८ फुट ही ऊँचा है, तथापि भूमध्यरेखा से ३४ डिग्री से अधिक उत्तर होने से यह हिमालय के छः हज़ार फुट के बराबर ठंडा है । इसकी हरियाली को देखकर मुझे बार बार शिकम के पहाड़ याद आते थे । पाँच बजे हम अपनी ट्रेन के अन्त पर पहुँचे । दस क़दम चढ़कर केबलकार का स्टेशन श्राया । केबलकार और दूसरी रेलों में इतना ही फ़र्क़ है कि इसके खींचने में लाइन के दोनों लोहों के बीच में लोहे का मोटा रस्सा (केबल) लगा रहता है, जो बिजली के ज़ोर से चक्के पर होकर ऊपर की ओर खींचा जाता है । चढ़ाई इतनी सीधी थी, जिसे हमारे लड़कपन के अध्यापक बाबू पत्तरसिंह के शब्दों में कह सकते हैं कि 'ऊपर ताकने पर टोपी गिर जाय' । यहाँ अब न कोई गाँव दिखाई पड़ता था और न अधिक घर | अपनी गाड़ी और लाइन का खयाल छोड़ देने पर मालूम होता था, हम जापान में नहीं, हिमालय में आ गये हैं। चारों ओर जिधर देखिए, उधर सदा हरित विशाल देवदार किसी विशाल शिवालय के शिखर की तरह खड़े हैं। यदि कहीं थोड़ी-सी भी भूमि वनस्पतिशून्य है तो वह पर्वत के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४१५ [ दाई-मान ( महान् द्वार] पक्षियों के कलरव और कीट भृङ्ग की गुनगुनाहट बहुत मधुर मालूम होती थी । ट्रेन से उतरकर बाहर जाते ही दो-तीन मोटर बसें खड़ी मिलीं । १० सेन् (पाँच पैसे) दे हम एक बस पर बैठ गये, / और चन्द मिनटों में न्योनिन्-दो (महिला-द्वार) पहुँच गये । १८७२ ईसवी से पहले स्त्रियाँ यहीं तक सकती थीं। यहीं से उन्हें देवालयों के शिखरों के दर्शन होते थे, श्रागे उनका जाना निषिद्ध था । इसी लिए इस द्वार का महिला-द्वार नाम पड़ा। फाटक पर एक लेखक रहता है, जो यात्री का नाम-धाम लिखता है । कोयासान् की आबादी ३५०० (८०० साधु) है । किन्तु यहाँ कोई ठहरने का होटल नहीं है; ठहरने का प्रबन्ध मठों की ओर से अच्छे होटल से भी बढ़कर है। फाटक का आदमी आपको साथी देगा, जो ले जाकर आपको आपके ठहरने की जगह पर पहुँचा देगा । हमारे पास शिन्-नो-इन विहार के अधिपति भिक्षु मीज़हारा के लिए चिट्ठी थी, इसलिए हमें वहाँ पहुँचाने के लिए आदमी मिल गया । तार पहले से ही पहुँच चुका था, इसलिए पहुँचते ही स्वच्छ सीतलपाटियाँ बिछे तथा तीन सौ वर्ष पुराने सुन्दर चित्रफलकों से अलंकृत कमरे में जगह दी गई। www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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