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________________ छुट्टी के खेल और विनोद सन्मद [ गाँव का एक दूसरा दृश्य ] अग्रवाल, एम० ए० थे । कोई छाती के बल लेटा था, कोई पीठ के बल । स्त्रियाँ अपने पतले छातों के नीचे पड़ी थीं। पहलेपहल यह दृश्य बड़ा विचित्र लगा । स्त्री और पुरुष जिनकी देह का अधिकांश खुला था, बिलकुल पास पास लेटे हुए थे । लन्दन में तो बिना मोजे पहने निकलना पाप समझा जाता है। घरों में भी ड्रेसिङ्ग गाउन पहनना बहुत ज़रूरी होता है। बिना टाई के खुले कालर की कमीज़ पहनना तक अनुचित समझा जाता है। लेकिन ये सब बातें समुद्र के किनारे लागू नहीं हैं। शरीर का जितना अधिक भाग खुला रहे, उतना ही अच्छा है। लोगों की खुली देह को देखकर बड़ा मनोरंजन होता है । कोई तो मोटे और बड़े पेटवाले, कोई पतले-दुबले और कोई सुगठित देहवाले - सभी प्रकार के लोग दिखलाई देते हैं। स्त्रियों की मोटी मोटी खुली टाँगे बड़ी विचित्र लगती हैं। नहाने के लिए बालों के ऊपर तंग टोपी बाँधकर तो उनकी सुन्दरता नाम के लिए भी नहीं रहती । स्त्री और पुरुष लगभग एक-से ही दिखलाई पड़ते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat EAST DEAN. किनारे पर थोड़ी देर तक घूमने के बाद हम लोगों ने भी अपने कपड़े उतारकर नहाने की ४०५ www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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