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सरस्वती
[भाग ३६
किसी से लड़ने की इच्छा नहीं करता। हाँ, अगर दूसरा कारण कि गन्दे नाले के पुल से पहले ही साँस अपनी लड़ाई करने पर उतारू बैठा हो तो फिर वह भी पीछे स्वाभाविक गति पर श्रा जाय । वर्ना पुल को अगर नहीं हटता। लेकिन अगर स्वयं जेमी में लड़ाई करने की दौड़ते-दौड़ते पार किया तो सारा दिमाग़ लाहौर की इच्छा होती तो मैं उसे अच्छा शकुन ही समझता। गन्दगी से तर हो जायगा। सैर के बाद अगर दो घंटे तक छुटपन में ही अगर बच्चे में शांतिप्रियता की इच्छा ज़ोरों दर्द के मारे सिर बाँधना पड़ा तो ऐसी सैर शायद महँगा पर हो तो बड़ा होने पर वह किसी के अाक्रमण का उत्तर सौदा ही कहलायेगी। नहीं दे सकता। बल्कि तब वह आक्रमण से बचने की इस समय तरह तरह के खयाल आये। चौबुर्जी के कोशिश करता है जो कायरता में शामिल है। पास इस वक्त जो खेत हैं यहाँ एक समय रावी नदी ___ अनारकली को पार करने के बाद हम पुरानी अनार- बहती थी। चौबुर्जी के बनानेवालों के दिल में कला से कली में दाखिल हुए। यहाँ भंगी झाड़ दे रहा था। कितना प्रेम था। इतने में हम गवर्नमेंट क्वार्टरों के सारी सड़क पर गर्द उड़ रही थी। मैं तो रूमाल से नाक नज़दीक जा पहुंचे। बंद कर इस इन्तिज़ार में एक तरफ़ हो गया कि कब गर्द अब एक अन्य विचार-धारा मन में उठी। गवर्नमेंट ज़रा थमे और मैं परली तरफ़ जाऊँ। लेकिन जेमी ने ने अच्छा ही किया जो बेचारे दफ्तरों के बाबुओं को इसकी कुछ परवा न की। वह मेरी अपेक्षा तेज़ भी ऐसी खुली जगह मकान बनवा दिये हैं। नहीं तो लाहौर ज्यादा है। इसलिए नाक सिकोड़ कर झट पार हो की तंग गलियों में रहनेवाले इन ग़रीबों के बाल-बच्चे गया। कुछ दूर जाकर वह मेरे लिए खड़ा हो गया। जब कहाँ और खुले आकाश के अधिक सूर्य और वायुदेव के मैं पास पहुँचा तब वह फिर तेज़ हो गया।
दर्शन कहाँ ? लेकिन इस खुली हवा का फायदा ही क्या ? मेरे मन में पता नहीं क्या विचार आया-या तो हर समय हवा के चलने के साथ गंदे नाले की बदबू भी साथी की तेज़-रफ़्तारी से मेरे अंदर ईर्ष्या पैदा हुई या छुट- बहती चली आये ? क्वार्टरों में रहनेवाले उस समय चाहे पन का कोई पुराना संस्कार जाग उठा—मैंने दौड़ना कहीं छिप जायँ, लेकिन वह बदबू फिर भी उनका पीछा शुरू कर दिया । चौबुर्जी तक दौड़ता ही चला गया। नहीं छोड़ती। शहर के कई लोगों को शिकायत है कि जब पाँव और टाँगें कुछ तो खुलीं। जेमी भी अब बहुत खुश से ये क्वार्टर बने हमारे मकानों को किसी किरायेदार ने पूछा मालूम देता था। लाहौर में आये अभी उसे कुल एक तक नहीं। जहाँ पहले लाहौर में मकान का होना हफ़्ता ही हश्रा था। इस अरसे में उसे घर का कोई भी प्राय का एक साधन था, वहाँ अब उसकी देख-रेख पर आदमी मकान की चहारदीवारी के बाहर न लेकर आया गिरह से खर्च करना पड़ता है। बाबू लोग मौज में रहे; था । लाता भी कौन ? डाक्टर साहब अपनी किताबों और दस फी सदी काट कटवाई और इन बँगला-नुमा क्वार्टरों अस्पताल के अलावा तीसरी बात जानते नहीं। पाल और में जा टिके । लेकिन इसके साथ ही उनको एक शिकायत किड बच्चे ठहरे । जेमी को साथ लेकर वे बाहर जायँ तो भी है । अगर कहीं घर में मेम साहब या कोई बच्चा बीमार डर है कि उसे नई चीजें दिखाते-दिखाते कहीं खद भी न हो जाता है तो शहर से डाक्टर बुलाते बुलाते टाँगों का भूल जाय। बाकी रहा मैं। मुझे अखबार में दिन के कचूमर निकल जाता है, सिर पर जो कर्ज हो जाता है अलावा रात को भी ड्यूटी देनी पड़ती थी। अब वह अलग। मुश्किल से एक महीने के लिए रात की ड्यूटी से जान इन्हीं विचारों में मारकेट गुज़र गया, ग्राउंड भी गुज़र छूटी है । यही कारण है कि सुबह को सैर की ठानी। गया, गैर-सरकारी दूकानें निकल गई और मंदिर भी निकल
चौबुर्जी से कुछ पहले ही मैंने दौड़ना बन्द कर दिया गया। मोड़ मुड़कर हमने अपने आपको भाई साहब के था-वहाँ जहाँ यूनिवर्सिटी ग्राऊंड खतम होता है । इस दरवाजे के सामने खड़ा पाया। दरवाजा खटखटाया ।
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