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________________ एक मनोवैज्ञानिक कहानी जेमी रहे हैं " लेखक, श्रीयुत धर्मवीर, एम० ए० ME DIA च्छा, तो श्राज जनाब सैर को उतरा हूँगा कि ऊपर से डाक्टर साहब की आवाज़ पड़ी ___ "कुमार जी, ज़रा जेमी को भी साथ लेते जाना।" A मैं कुरते के बटन बन्द मैं वहीं खड़ा हो गया। कुछ क्रोध-सा भी आ गया । कर रहा था कि ये शब्द क्रोध में ही उलटे पाँव ऊपर चढ़ पाया और बाहर से ही डाक्टर साहब ने मुझसे कहे। मज़ाक में कहा-"तो क्या मुझे अब जेमी जैसों को भी ख छड़ी उठाते हुए मैंने जवाब अपने साथ घसीटना पड़ेगा ? भई, मुझसे यह न होगा; । दिया-"हाँ जनाब, जा तो मैं इस सैर से बाज़ आया ।" रहा हूँ अगर आप लोग इजाज़त दें।" भाई साहब ने समझा कि मैं ग़स्से में हूँ। वे अपनी “ज़रूर जाइए ।” भाई साहब कहने लगे-"सैर चारपाई से उठे, गरम चादर प्रोढ़ी और ऊपर चल होनी अच्छी होती है अगर्चे हमसे नहीं किये बनती। दिये। जानते थे कि अब इसको कुछ कहना भिड़ों के इससे शायद तुम्हारा कब्ज़ भी जाता रहेगा।" छत्ते में हाथ देना है। मैं कुर्सी पर बैठा था। जेमी साहब मैं बोला-"सर्दियों की सैर का मेरा यह पहला दिन मेरे सामने विराजमान थे। मुझे शायद गुस्सा आया हुआ है । मैंने फैसला किया है कि आज से बाकायदा सैर को था, लेकिन उसकी तो मानहानि हुई थी, इसलिए ऐसा जाया करूँगा । लेकिन अब तो डाक्टरी मशविरा भी मिल मालूम देता था कि वह गुस्से से सूजा बैठा है । मैंने रहा है, इसलिए........." कहा-“भई, माफ़ करना । मैं तुम्हारे खिलाफ़ कुछ नहीं "नहीं नहीं, बतौर डाक्टर नहीं कह रहा था।" कह रहा हूँ। मैं तो.........." अँगड़ाई लेते हुए उन्होंने कहा। कुछ क्षण ठहरकर वे जेमी ने मेरी बात पूरी न होने दी और नाक से पूँ फिर बोले-"अरे भाई, चौबुर्जी तो तुम्हें जाना ही है। करके मुँह दूसरी तरफ़ फेर लिया। मैंने समझा मुझसे आज ज़रा-सा आगे चले जाना। सरकारी क्वार्टर वहाँ से ग़लती हुई है। मन में पाया-अगर तुम एक बार ऊपर दूर तो है नहीं ........." आ गये तो इसमें तुम्हारा हर्ज ही क्या हो गया। जेमी ___" 'श्राज' का क्या मतलब ?” मैंने उनकी बात काट की तरफ़ देखा तो वह ज्यों का त्यों रूठा बैठा था। कर कहा-"क्या मैं रोज़ जाता हूँ ? भाई साहब, यह तो अपनी ठोड़ी वह अजीब ढंग से रक्खे था। मुझे मेरा पहला दिन है । खैर, चला जाऊँगा । कहिए।" अपने आपसे कुछ घृणा-सी हुई । मैं धीरे से उठा और ___"दो-चार दिन के बाद सोहाग-भाग का व्रत है, इस- दरवाजे के बाहर निकलते हुए जेमी की तरफ़ इशारा लिए मा जी ने छोटी भौजाई के लिए मिठाई और रुपये किया। कोई और होता तो शायद न मानती, लेकिन जेमी भेजे हैं । ये वहाँ उसे देते श्राना।" में यह बात नहीं है। वह गुस्से के कारण बहुत जल्द __ "भई, चौबुर्जी के आगे तो उस सड़क पर बहुत गर्द रूठ जाता है, परन्तु फिर खुशी के कारण जल्द मान भी है। अच्छा. देता आऊँगा।" __ जाता है । इशारा पाते ही वह मेरे साथ हो लिया। धन्नू ने उन चीज़ों को रूमाल में बाँध दिया। मैं . कई व्यक्तियों की आदत होती है कि वे लड़ाई मोल उसे लेकर नीचे उतर गया। अभी आधी ही सीढ़ियाँ लेते हैं । जेमी का शुमार उनमें नहीं है । वह जान-बूझकर ३९५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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