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________________ ३६६ सरस्वती [भाग ३६ क्लीब, कापुरुष होगा कि जिसके हृदय पर उसका का वर्णन मिल जायगा कि जो जाति जाति में विद्वेष प्रभाव न पड़ता हो। भड़कानेवाली होंगी-किंबहुना मज़हबी अत्याचारों _ विनोदविहारी जी शिवाबावनी को "साम्प्र- और जातीय विग्रह-वर्णन से ही संसार के सम्पूर्ण दायिकता की आग भड़कानेवाली" कहते हुए भी इतिहास भरे पड़े हैं, उनको श्राप नष्ट नहीं कर लिख रहे हैं सकते; और न उनका प्रचार ही आप रोक सकते "हमारा खयाल है कि उनकी कविता हिन्दुओं में हैं। बुद्धिमानी तो इसी में है कि इतिहास की वात मुस्लिम-विरोधी भाव न तब पैदा कर सकी थी आप इतिहास की ही दृष्टि से देखें-भूतकाल की और न अब कर सकती है। इसलिए जहाँ तक घटना को वर्तमान पर क्यों घटित करते हैं ? मूर्ख हिन्दुओं को भड़काने का सवाल है, यह कविता लोग भी यह जानते हैंनिर्जीव है और इससे निर्दोष है। पर मुसलमान ___बीती ताहि बिसार दे", इससे भड़क सकते हैं।" विनोदविहारी जी कहते हैं कि भूषण कवि ने ___"विनोदविहारी” के ही समान “यथा नाम “मलेच्छबंस" शब्द लिख दिया है, तो आजकल के तथा गुण”–विनोद में ही विहार करनेवाले लेखकों मुसलमान अपने आपको मलेच्छबंस का कहलवाना को भले ही भूषण की कविता निर्जीव मालूम हो; थोड़े ही पसन्द करेंगे। परन्तु हमारा तो ऐसा खयाल है कि भूषण की यह भी एक बालकों की-सी बात है। आजकल कविता अत्यन्त सजीव और वीर रस से ओत-प्रोत के मुसलमानों को तो भूषण कवि ने म्लेच्छबंस का है; और पाठकों तथा श्रोताओं के हृदय पर पूर्ण कहा नहीं है। औरंगजेब के समय में जो मुसलमान प्रभाव डालनेवाली है। रह गई हिन्दुओं को हिन्दुओं पर अत्याचार करते थे, उन्हीं के लिए मुसलमानों के विरुद्ध भड़काने की बात, सो ऐसा भूषण की कविता में “मलेच्छबंस" शब्द आया है । कोई उद्देश्य कवि का नहीं है। मुसलमानों में भी- . आजकल के मुसलमान तो वास्तव में बहुत ही पवित्र आज लगभग तीन सौ वर्ष से भूषण कवि की हैं; और महात्मा गान्धी जी के "प्रयत्न" से हिन्दुओं कविता जनता में पढ़ी और सुनी जाती है-आज के साथ उनका सलूक भी दिन पर दिन बहुत अच्छा तक हमने कोई भी मुसलमान भड़कता हुआ नहीं होता जाता है, तब उनको मलेच्छबंस का कौन कह देखा। अब हमको मालूम हुआ है कि आज महात्मा सकता है ! विनोदविहारी महाशय लिखते हैंगान्धी के सामने एक कोई मुसलमान शिवाबावनी "औरंगजेब के समय में चाहे जो परिस्थिति पढ़कर भड़क उठा है। और महात्मा, तथा उनके रही हो, हमारे देश की वर्तमान स्थिति ऐसी नहीं है अन्धभक्त, एक ही मुसलमान के भड़कने से इतने कि हम इस प्रकार की कविताओं को प्रोत्साहन दें। भड़क उठे हैं कि भूषण कवि की कविता को ही उस समय हिन्दू-मुसलमान दोनों शासक थे। दोनों त्याज्य बतलाने लगे हैं। यह एक प्रकार की हिमाकत राजनैतिक शक्ति के लिए लड़ रहे थे। दोनों एक है। हमारी तो राय है कि यदि ऐसी छोटी छोटी दूसरे को हिन्दुस्तान से हटा देने का स्वप्न देख रहे बातों को लेकर हम मुसलमानों के भड़कने का थे। आज वह बात नहीं रही। आज दोनों पराधीन खयाल करने लगेंगे, तो हिन्दू और मुसलमानों में हैं और यह अनुभव कर रहे हैं कि मिलकर रहने में कभी ऐक्य हो ही नहीं सकेगा। किसी भी भाषा के ही कल्याण है। इस दिशा में प्रयत्न भी जारी है।" ऐतिहासिक साहित्य और काव्यों को यदि आप विनोदविहारी जी के इस कथन से महात्मा ढूँढ़ने लग जायँगे, तो आपको अनेक ऐसी घटनाओं गान्धी जी के समर्थन या वकालत का पता चाहे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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