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________________ भूषण का महत्त्व लेखक, श्रीयुत कमलाकर शर्मा लान जना युत विनोदविहारी" नाम है, बल्कि इसलिए भी कि वह वीर रस का वास्त के किसी लेखक ने जुलाई विक उदाहरण न होकर रीति-ग्रन्थकाल की अन्य की "सरस्वती" में "भूषण श्रृंगारी कविताओं की भाँति ही कामुकता-पूर्ण या "श्री का दूषण" शीर्षक एक भी है।" ASTI लेख लिखा है। मालूम महात्मा जी तो "शिवाबावनी" को सिर्फ दबी जाहस होता है कि आप भी ज़बान में अराष्ट्रीय ही बतलाते हैं; क्योंकि उसमें N महात्मा गान्धी के अन्ध- मुग़ल बादशाह के लिए भली बुरी बातें हैं; और वे भक्त बनकर पाँच सवारों में अपना नाम लिखाना सब ऐतिहासिक भी नहीं हैं; परन्तु उनके ये अन्धचाहते हैं, तभी तो महात्मा गान्धी की दुहाई देकर भक्त उनसे और भी दो क़दम आगे बढ़कर शिवामहाकवि “भूषण का दूषण" दिखाने की आपने बावनी को 'साम्प्रदायिकता की आग भड़कानेवाली' हिम्मत की है। बतला रहे हैं। इनकी राय में भूषण कवि की यह ___ महात्मा गान्धी ने देवनागरी लिपि अच्छी तरह कविता “वीर रस का वास्तविक उदाहरण" भी नहीं जाननेवाले किसी मुसलमान की शिकायत पर महा- है, और "रीति-काल की अन्य श्रृंगारी कविताओं कवि भूषण की शिवाबावनी के विषय में यह सम्मति की भाँति ही कामुकता-पूर्ण भी है।" विनोदविहारी दे डाली है कि इसमें "मुग़ल बादशाह के लिए भली जी कहते हैं कि “इन्द्र जिमि जम्भ पर बाड़व बुरी बातें हैं। वे सब ऐतिहासिक भी नहीं हैं।" सु अम्भ पर" इत्यादि रूपक बाँध कर कोई किसी के अतएव यह पुस्तक अराष्ट्रीय है; और महात्मा जी की हृदय में वीर रस का संचार नहीं कर सकता। यदि ऐसी भी राय प्रकट हुई है कि हिन्दी-साहित्य-सम्मे- भूषण औरंगजेब के अत्याचारों का वर्णन करते और लन की परीक्षा-पुस्तकों से यह पुस्तक निकाल देनी हिन्दुओं को उन अत्याचारों का मुक़ाबिला करने का चाहिए। जोश दिलाते तब बेशक उनकी कविता वीर रस की महात्मा जी ने स्वयं अपने अन्धभक्तों को कई कही जाती।" बार फटकारा है कि तुम अपनी स्वतंत्र बुद्धि से काम परन्तु आपको यह मालूम होना चाहिए कि लो । खाली हमारी आवाज़ में आवाज न मिलाओ। भूषण कवि छत्रपति शिवाजी की राजसभा के कवि परन्तु इन परावलम्बी प्राणियों की बुद्धि अभी तक थे; और किसी लम्बे कथानक को लेकर वीर रस का ठिकाने नहीं आई ! “भूपण का दूषण" दिखलानेवाले कोई महाकाव्य लिखना उनका उद्देश नहीं था। विनोदविहारी जी अपने इस लेख में लिखते हैं- उनका सम्पूर्ण काव्य मुक्तक काव्य के ढंग का है। ___"महात्मा गान्धी ने जो प्रश्न उठाया है उस पर शिवाजी के यश, कीर्ति, प्रताप और उनके जीवन की हमें गम्भीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता वीरता-पूर्ण भिन्न भिन्न घटनाओं को लेकर ही उन्होंने है। शिवाबावनी केवल इसी लिए त्याज्य नहीं है अपने मुक्तक छन्द रचे हैं । “शिवराजभूषण," कि वह साम्प्रदायिकता की आग को भड़कानेवाली “शिवाबावनी," " छत्रसाल-दशक ” और कुछ ३६४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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