SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५६ सरस्वती - [भाग ३६ तो नहीं हुई थी, किन्तु क्या देखता हूँ, यह भली भाँति दरवाजे के सामने खड़ी है। लोग मुझे एक बहुत बड़े नहीं समझ सकता था । कान से सुन पाता था, किन्तु कमरे में ले गये। वहाँ एक पलँग बिछा था । नाटे जो कुछ सुनता था उसका अर्थ हृदयङ्गम करने की शक्ति श्रादमी ने मेरे हाथ में फिर एक पिचकारी लगाई, मैं ज़रा मुझमें नहीं रह गई थी। हीरे . ही देर में निद्रित हो गया । गाड़ी स्टेशन के समीप आ गई। तीनों ने अपने (२) अपने मुँह का आवरण हटा दिया । क्या मैंने इन सबको निद्रा भंग होने पर देखा तब दिन अधिक चढ़ आया कभी कहीं देखा था ! चित्त में स्थिरता न होने के था। मैं कहाँ हूँ, यह जानने के लिए उठकर मैंने कमरे कारण यह बात मेरी समझ में न पा सकी। नाटे आदमी की खिड़की खोली। सामने एक छोटा बगीचा-सा था, ने मेरे पर्स से रेलवे का टिकट निकाल लिया। स्टेशन पर उसके बाद बहुत ऊँची चहारदीवारी थी। गाड़ी खड़ी होते ही दोनों लम्बे आदमियों ने मेरे दोनों सारी बातें मुझे स्मरण हो श्राई । देखा, मेरा सारा हाथ पकड़कर मुझे गाड़ी से उतारा। तीसरे आदमी ने सामान कमरे में ही रक्खा है । घड़ी और पर्स पाकेट में कुली बुलाकर मेरा सामान आदि उतरवाया। मुझे देख रक्खी । सूटकेस और बक्स खोल कर देखा । सभी चीजें कर गार्ड ने पूछा-इन्हें क्या हुआ है ? ज्यों की त्यों रक्खी थीं। नाटे आदमी ने उत्तर दिया-इन्हें कभी कभी दौरा- मैं बक्स बन्द कर रहा था, इतने में पीछे से विद्रूपासा आ जाया करता है। थोड़ी देर तक के लिए इनकी त्मक स्वर में सुना-सामान तो सब ठीक है न ? बातचीत करने की शक्ति नष्ट हो जाती है। परन्तु हम चौंक कर देखा, वही नाटा आदमी खड़ा है। उसके लोग साथ में हैं, चिन्ता की कोई बात नहीं है। अधर के कोने में श्लेषपूर्ण मुस्कुराहट थी। स्टेशन के बाहर एक बड़ा-सा कार खड़ा था। मुझे मैं उठकर खड़ा हो गया और बोला- यदि मेरी उसी पर बिठाकर उन लोगों ने मेरा सामान पीछे कैरि- चीज़ लेने की इच्छा नहीं थी तो फिर मुझे इस तरह यर में बँधवा दिया। नाटा आदमी अपने एक साथी को यहाँ ले आने में क्या लाभ है ? मुझे कहाँ ले आये हो ? लेकर मेरे पास बैठा, और तीसरे आदमी ने ड्राइवर के मैं मुक्त हूँ या बन्दी हूँ ? पास बैठकर उससे गाड़ी चलाने को कहा। गाड़ी के सभी "इतने प्रश्न एक साथ ही करोगे ? इसके लिए तो दरवाजे बन्द कर दिये गये। शीशों के पास पर्दे पड़े थे, तुम स्वतन्त्र ही हो, चाहे जितने भी प्रश्न कर सकते हो। वे सब खींचकर बंद कर दिये गये। गाड़ी के भीतर का किन्तु उत्तर पाओगे या नहीं, यह दूसरी बात है । तुम अन्धकार दूर करने के लिए बत्ती जला दी गई । बाहर यहाँ किसलिए लाये गये हो, यह तुम्हें मालूम ही हो की कोई वस्तु दिखाई नहीं पड़ रही थी। मोटर बहुत जायगा। तुम हाथ-पैर बाँध कर बन्दी नहीं किये गये हो, बढ़िया था। वह तेज़ी के साथ चला जा रहा था, उसमें किन्तु बाहर कहीं नहीं जा सकते । इस समय हाथ-मुँह किसी प्रकार की घड़घड़ाहट नहीं होती थी। सभी लोग धोकर भोजन आदि कर सकते हो। तुम्हें निराहार निस्तब्ध थे। किसी ने कोई बात नहीं की। रखने की हमारी इच्छा नहीं है ।" । ___ मैं कोई भी बात ठीक ठीक समझ नहीं पाता था। मुझे नहाने का कमरा आदि दिखा दिया गया। एक भाव मन में आता और फिर वह तत्काल ही तिरो- मुँह धोकर मैंने चाय पी। दो-एक नौकर भी दिखाई हित हो जाता । गाड़ी बहुत देर तक चलती रही। कितनी पड़े, किन्तु रातवाले दोनों अादमी मुझे वहाँ नहीं दिखाई देर तक चलती रही, यह मैं नहीं बतला सकता । अन्त में दिये। एक स्थान पर गाड़ी खड़ी हुई। लोगों ने उस पर से आहार आदि करके मैंने घर के भीतर घूमकर देखा । जब मुझे उतारा तब मैंने देखा कि गाड़ी एक मकान के दो-तीन कमरे खुले थे। शायद वे मेरे उपयोग के ही लिए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy