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________________ एक डाकू के दुःसाहसपूर्ण असफल षड्यंत्र की कहानी व्यर्थ प्रयास लेखक, श्रीयुत नगेन्द्रनाथ गुप्त (१) परन्तु यदि इनको चोरी ही करना था तो मुझे जगाने नारी निद्रा भंग हो गई। उठ- की क्या आवश्यकता थी ? मेरे सोते समय इन लोगों ISI कर बैठने का प्रयत्न किया, ने प्रवेश किया था, निद्रा भंग होने से पहले ही सारा म किन्तु बैठ न सका, मेरा सामान लेकर चले जा सकते थे। मेरी जेब में एक घड़ी शरीर किसी वस्तु के बोझ से थी और एक छोटे से पर्स में थोड़े से रुपये और रेल का SU दबा हुआ-सा था। टिकट था । मेरे पास अधिक रुपये-पैसे या कोई मूल्यवान् रेलगाड़ी वेग से चली वस्तु नहीं थी। जा रही थी। उसकी गति मैंने कहा- मेरे पास जो कुछ है उसे तुम लोग ले जा का मैं अनुभव कर रहा था। प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठा सकते हो । मैं किसी प्रकार की आपत्ति नहीं करूँगा। था । जिस समय मुझे नींद आई थी, उस समय उस डिब्बे मैं साहसी हूँ। शरीर में बल भी है, किन्तु तीन तीन में और कोई नहीं था । जाड़े के दिन थे, इसलिए शरीर आदमियों का मुकाबिला अकेले कैसे कर सकता था ? को एक कम्बल से ढंक लिया था। उन तीनों के ही हाथ में पिस्तौलें थीं। गाड़ी रोकने की , अाँख खोल कर देखा तब एक आदमी मेरी छाती जंजीर के पास एक खड़ा था। को दबाये हुए था और दो श्रादमी उसके पास ही खड़े नाटे आदमी ने कहा-हमें जो कुछ करना है उसके थे । इन तीनों ही आदमियों का मुँह ढंका हुआ था। लिए तुम्हारी अनुमति की आवश्यकता न पड़ेगी। तुम जो दो आदमी खड़े थे उनमें से एक ने मेरे कान के चुपचाप बैठे रहो, इसी में तुम्हारी भलाई है। पास मुँह ले जाकर ज़ोर से कहा-तीन-पाँच मत करना। गाड़ी का वेग कम होने लगा। एक आदमी ने मुझे जरा भी किसी तरह का झंझट किया नहीं कि मार कर पकड़ लिया और मेरे कोट की आस्तीन सिकोड़ कर मेरा डिब्बे के बाहर फेंक दिया। शान्त रहने पर तम्हें किसी हाथ ऊपर उठाया। दसरे प्राद दमी ने अपनी पिस्तौल मेरे प्रकार के भी अनिष्ट की आशङ्का नहीं है। माथे के पास लगा दी। नाटे आदमी ने मेरे हाथ में __ मैंने कहा-अच्छी छी बात है. मैं बिलकल चप एक छोटी-सी पिचकारी लगा कर न जाने कौन-सी दवा बात है, मैं बिलकुल चुप एक छाट रहूँगा। मेरे शरीर में प्रविष्ट कर दी। इसके बाद उन लोगों ने मुझे ___ जो आदमी मुझे दबाये हुए था, उसने छोड़ दिया। छोड़ दिया। मेरा बिस्तर बाँधकर वे सब मेरा सारा सामान मैं उठ कर बैठ गया। उन तीन आदमियों में से दो एकत्र करने लगे। लम्बे थे, और एक नाटा था। इसी ने मुझसे बातचीत . कुछ ही क्षणों के बाद मैं वाक्-शक्ति से रहित हो की थी। इससे अनुमान किया कि यही सरदार है। यह गया। एकदम ज्ञान-शून्य तो हुअा नहीं, किन्तु एक प्रकार भी निश्चय कर लिया कि मेरे पास जो कुछ है वह सब की मानसिक जड़ता ने मुझे अाच्छन्न कर लिया, मस्तिष्क छीन लेने के लिए ही ये लोग मेरे डिब्बे में चढ़े हैं। की धारणा-शक्ति प्रायः लुप्त हो गई । मेरी दृष्टि-शक्ति लुप्त ३५५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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