SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० सरस्वती [ भाग ३६ श्रावश्यक आर्थिक सहायता देने को तैयार हों। जिन मात्रा में मिलने से वे ऐसी ज़मानत पर रुपया क़र्ज़ देते हैं बैंकों की आर्थिक स्थिति हर प्रकार से संतोषप्रद है तथा जो बाज़ार में आसानी से बिक सके, जैसे कम्पनी के जिनके पास आवश्यक अनुभवी कर्मचारी हैं, इस काम में हिस्से, डिबेंचर, गवर्नमेंट पेपर इत्यादि । हमारे यहाँ बैंक से हाथ बँटा सकते हैं । पर इन बैंकों के लिए आवश्यक क्षेत्र कर्ज लेने की सबसे अधिक प्रचलित विधि नकद साख तैयार करने के लिए यह ज़रूरी है कि विदेशी बैंकों की है। व्यापारी अपने ही हस्ताक्षर के प्रामिसरी नोट के अनुचित वृद्धि रोकी जाय तथा उन पर समुचित नियन्त्रण साथ साथ माल भी बैंक के पास जमा कर देता है, रक्खा जाय । इस सम्बन्ध में केंद्रीय बैंकिंग कमिटी ने और बैंक को सूद उसी रकम पर देता है जो वास्तव यह सिफ़ारिश की है कि भविष्य में कोई विदेशी बैंक में वह बैंक से ले चुका है। इसके प्रचार से देश बिना रिज़र्व बैंक की अनुमति के न खुलने पावे और जो में साख के पत्रों के प्रचार में बड़ी रुकावट होती है । इस विदेशी बैंक इस समय हैं उनको शुरू में एक निश्चित विषय में केंद्रीय बैंकिंग कमिटी की सिफ़ारिश है कि समय के लिए कार्य करने की अनुमति इस शर्त पर दे दी भारतवर्ष में बैंकों को ऋण देने में अधिक उदार होना जाय कि यदि निश्चित समय के उपरान्त जाँच करने से चाहिए और व्यक्तिगत विश्वास पर ही क़र्ज़ देने की नीति यह साबित हो जायगा कि उन्होंने भारतीय बैंकिंग कानून का अधिक प्रचार करना चाहिए। पर यह तभी सम्भव तथा अन्य उन शतों का जो अनुमति देते समय की गई हो सकता है जब बैंकों को व्यापारी की ठीक ठीक आर्थिक थों, उल्लंघन किया है तो उनको अपना कार्य स्थगित कर दशा का ज्ञान होने की पूर्ण सुविधा हो। इसके लिए देना पड़ेगा। पश्चिमी देशों के ढङ्ग पर हमारे यहाँ भी सीडस और यह तो हुई ज्वायंट स्टॉक बैंकों की विदेशी व्यापार- डन्स जैसी संस्थायें स्थापित की जायँ जिनका कार्य बैंक सम्बन्धी बात । अब हमको यह जान लेना आवश्यक है को इस प्रकार की सूचना देना ही है। व्यापारियों के कि ये बैंक हमारे अन्दरूनी व्यापार को किस प्रकार धन- लेन-देन के लेखे की जाँच करने से भी बैंक को उनकी सम्बन्धी सहायता देते हैं । प्रायः व्यापारिक बैंक व्यापारियों आर्थिक स्थिति का ज्ञान हो सकता है। इसके लिए को तीन प्रकार से क़र्ज़ देते हैं-(१) पहली विधि के अनु- बैंकवालों का कहना है कि भारतीय व्यापारी इस प्रकार की सार रुपया किसी ऐसी ज़मानत के आधार पर दिया जाता है सूचना देने में बहुत ही आनाकानी करते हैं। जो आवश्यकता पड़ने पर बिना किसी कठिनाई के बाज़ार यदि बैंकों के कर्मचारी इस बात का प्रयत्न करें तो यह में बेची जा सके। (२) दूसरी विधि के अनुसार कर्ज़ ऐसे असम्भव है कि वे अपने कार्य में असफल होंगे । 'एक प्रामिसरी नोट के अाधार पर दिया जाता है जिस पर दो मनुष्य एक बैंक' की रीति का अधिक प्रचार करने से भी स्वतंत्र व्यापारियों के हस्ताक्षर हों~-एक तो स्वयं उधार ग्राहकों की आर्थिक दशा का ज्ञान आसानी से हो सकेगा। लेनेवाला और एक दूसरा मनुष्य । इस प्रकार के इसके अतिरिक्त बैंकों के कर्मचारी एक दूसरे को उन प्रामिसरी नोट को 'दो नामों का काग़ज़' कहते हैं । (३) लोगों के विषय में जो उनके ग्राहक हैं, आवश्यक सूचना तीसरी विधि के अनुसार रुपया केवल उधार लेनेवाले के दे सकते हैं। व्यक्तिगत विश्वास पर ही दिया जाता है । पाश्चात्य देशों हमारे ज्वायंट स्टॉक बैंक अन्य देशों के व्यापारिक में तीसरी विधि का ही अधिकतर पालन किया जाता है। बैंकों की तरह केवल हमारे विदेशी व्यापार को ही आर्थिक किन्तु हमारे देश में अभी तक इसका यथेष्ट प्रचार नहीं सहायता नहीं देते, परन्तु हमारी औद्योगिक पूँजी की कमी हुआ है। यहाँ बैंकवाले दूसरी विधि के अनुसार अर्थात् को पूरा करने में भी काई भाग नहीं लेते । व्यापारिक 'दो नामों का काग़ज़' पर ही कर्ज देना अधिक पसंद बैंकिङ्ग के उस प्राचीन अनुदार सिद्धान्त को कि 'व्यापारिक करते हैं। परन्तु इस प्रकार की साख का पत्र आवश्यक बैंक का कार्य केवल अल्पकालिक ऋण की माँग को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy