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________________ भारतीय ज्वायंट स्टाक बैंक लेखक, श्रीयुत प्रेमनारायण माथुर, बी० काम० हमारे देश में बैंकों की बहुत कम उन्नति हुई है। देहातों में बहुत-से लोगों ने तो बैंक का नाम तक न सुना होगा। इससे हमारे व्यापार की उन्नति भी रुकी हुई है। इस लेख में लेखक ने संक्षेप में भारतीय बैंक का इतिहास दिया है, उसके मार्ग की कठिनाइयाँ बताई हैं और उसकी उन्नति कैसे हो सकती है इस पर भी प्रकाश डाला है। मजाक्षिप्त इतिहास-हमारे देश असफल हो गये। महायुद्ध के कारण देश के व्यापार के अाधुनिक बैंकिंग संगठन की जो उन्नति हुई उसके फल-स्वरूप इस दिशा में भी का एक मुख्य अंग भारतीय उन्नति के कुछ लक्षण दिखाई पड़ने लगे । पर लड़ाई के ज्वायन्ट स्टाक बैंक हैं । देश पश्चात् की व्यापारिक मंदी के कारण बैंकों की स्थिति भी के अन्दरूनी व्यापार की वृद्धि गड़बड़ाने लगी और कई बैंक असफल हो गये । सन् न के साथ साथ व्यापारियों को १६१३ से १६२४ तक कुल मिलाकर १६१ बैंकों को - उचित आर्थिक सहायता अपना कारबार बन्द कर देना पड़ा। इसका हमारे पहुँचाने के वास्ते यह आवश्यक प्रतीत हुआ कि इस प्रकार बैंकिंग संगठन तथा व्यापारिक और प्रौद्योगिक उन्नति पर के बैंकों की स्थापना की जाय । प्रान्तीय बैंक सरकार-द्वारा बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। उपस्थित की गई अनेक बाधाओं के कारण इस कार्य का बैंकों के कार्य-भारतीय स्वायंट स्टॉक बैंकों की संचालन नहीं कर सकते थे और न विदेशी व्यापार की आर्थिक स्थापना का मुख्य उद्देश देश के बढ़ते हुए भीतरी माँग को पूरा करनेवाले विदेशी विनिमय बैंक कर सकते थे। व्यापार को यथेष्ट आर्थिक सुविधा देना था। श्राज भी इस प्रकार का सबसे पहला बैंक-बैंक अाफ़ अपर इण्डिया इनका मुख्य कार्यक्षेत्र यही है। ये बैंक देश के विदेशी था। इसके पश्चात् अन्य कई बैंकों की स्थापना की गई। व्यापार का धन-सम्बन्धी सहायता देने में बहुत कम उनमें से कुछ बैंकों के नाम ये है-इलाहाबाद बैंक भाग लेते हैं। इसका कारण विदेशी विनिमय बैंकों की (१८६६), अलाइन्स बैंक अाफ़ शिमला (१८७४), अवध कार्य-प्रवीणता तथा उनकी अनुचित प्रतिद्वन्द्विता है। कमर्शियल बैंक (१८८१), और पञ्जाब नेशनल बैंक विदेशी बैंकों का उन भारतीय व्यापारियों तथा संस्थात्रों (१८६४)। किन्तु १६ वीं शताब्दी के अन्त तक हमारे के प्रति जो देश के अायात-निर्यात-सम्बन्धी व्यापार में देश में ज्वायंट स्टाक बैंकिंग की जो उन्नति हुई वह भाग लेती हैं, सदा असंतोषजनक और कटु व्यवहार रहा किसी प्रकार संतोषजनक नहीं कही जा सकती। सन् है। विनिमय-बैंक उनको वे अार्थिक सुविधायें नहीं १६०५ के स्वदेशी आन्दोलन के फलस्वरूप देश में कई देते हैं जो अन्य विदेशी व्यापारियों तथा संस्थाओं को दी नये बैंकों की स्थापना हुई । इनमें से विशेषरूप से उल्लेख- जाती हैं। इसका परिणाम यह है कि देश के विदेशी नीय बैंक ये थे -बैंक अाफ़ इण्डिया, बैंक अाफ़ बरमा, व्यापार का केवल १५ प्रतिशत भाग हमारे हाथ में है और इण्डियन स्पेशी बैंक । किन्तु इनमें से अधिकांश और इस प्रकार कमीशन, ब्रोकरेज, और इन्श्योरेन्स प्रीमिबैंकों की कार्य-प्रणाली ठीक रास्ते पर न थी, इनके पास यम के रूप में देश का बहुत-सा रुपया हर साल देश के नकद रुपया का कोश कम था तथा इनमें से कुछ बैंक बाहर चला जा रहा है। किन्तु यदि हमको अपने विदेशी सट्टेबाज़ी में भाग लेते थे। इनका परिणाम यह हुआ कि व्यापार पर यथेष्ट अधिकार प्राप्त करना है तो यह नितान्त सन् १९१३-१४ में एक ही वर्ष के अन्दर कुल ५५ बैंक आवश्यक है कि हमारे ज्वायंट स्टॉक बैंक इस दिशा में ३४९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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