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________________ संख्या ४] तोक्यो शहर ३२५ अगणित वस्तुएँ रक्खी हुई हैं। जहाँ पहले के संग्रहालय में हमारी जैसी एकाध दर्जन मूर्तियाँ इधर से उधर डोल रही थीं, वहाँ इस म्यूजियम में कंधे से कंधा मिल रहा था। स्कूलों के सैकड़ों छात्र घूम रहे थे, और उन्हें अध्यापक व्याख्या करके प्रत्येक चीज़ को दिखला रहे थे। जीवित जाति वर्तमान की ही पूजा किया करती है। भूतपूजा अभागे भारत के भाग्य से [तोक्यो—एक राजप्रासाद का फाटक बँधी है। | इसी उद्यान में संगीत-विद्यालय तथा चित्र-विद्यालय जलाशयों का सौन्दर्य देखना हो तो शिनोबाज़ सर हैं। सड़क की अोर आने पर जेनरल तकानोरी साइगो या सुमिदा के तट पर चले जाइए। रात की दीपमाला अपने कुत्ते के साथ खड़े हैं। यदि तोमोमी इवाकुरा ने तथा बिजली के द्वारा रंग-बिरंगी विज्ञापनबाजी देखनी हो | जापान की कायापलट में दिमाग़ का काम दे दिया तो जेन- तो तोक्यो के बड़े बाज़ार गिंजा में चले जाइए। जापानी | रल साइगो विरोधियों को परास्त करने में बहादुर योद्धा थियेटर के लिए कबकी थियेटर में चले जाइए। इमारत थे। साइगो ने बड़े कौशल के साथ प्रारम्भिक लड़ाइयाँ को ही देखने से मालूम हो जायगा कि जापानी स्वदेशी | लड़कर सम्राट् मेहजी की शक्ति को दृढ़ किया। किन्तु पीछे कला के कितने भक्त हैं। सिनेमों का महल्ला प्रासाकुसा अपने साथियों के साथ मतभेद होने से वे (१८७७ ई०) है। यद्यपि शृंगार-रस के भी फ़िल्म होते हैं, तथापि सैनिक अपने घर चले गये और अन्त में अनुयायियों के बहुत स्प्रिट को खूब भरना सरकार की नीति है, इसलिए हर | ज़ोर देने पर उनका नेतृत्व कर उन्हें सरकारी सेना में लड़ना एक फ़िल्म में युद्ध और शस्त्र को आप ज़रूर देखेंगे। पड़ा। इस लड़ाई में जापान के राजपूत (सामुराई) अपने २१ जुलाई को सवेरे होवान् जी (तोक्यो) के विशेषाधिकार के छिन जाने से शामिल हुए थे। वे विशाल भवन में हमें एक व्याख्यान देना था, इसलिए वहाँ लड़े भी उसी शान से, और जब तक उनका एक भी गये। व्याख्यानदाता यद्यपि मेज़ के पास खड़े थे, किन्तु | नेता जीता रहा, वे पीछे नहीं हटे। साइगो ने घिर जाने सारी श्रोतामण्डली चटाई के फर्श पर बैठी थी। उसी पर और अाशा न देख कर हाराकिरी (आत्महत्या) की। दिन पानपैस्फ़िक बौद्ध-सम्मेलन की वर्षी मनाई जानेवाली अन्तिम समय में सरकार के बाग़ी हो जाने पर भी इनकी थी। निमंत्रण हमें भी मिला था, इसलिए शामिल होना पहले की सेवायें भुलाई नहीं जा सकती थीं। इसी लिए ज़रूरी था। यहीं श्री रासविहारी बोस के दर्शन हुए। यहाँ उद्यान में साइगो की पीतल की मूर्ति आप देख रहे हैं। उनकी हिन्दी को सुनकर मैं तो समझ ही नहीं सका तोक्यो की नई इमारतों में पार्लियामेंट-भवन बहुत कि वे बंगाली हैं। आम तौर से भारतीय बुढ़ापे में भव्य है। अगली बैठक इसी में होगी। सठिया जाते हैं, किन्तु बोस महाशय उसके अपवाद हैं ।
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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