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________________ संख्या ४] स्वदेशी में अड़चन ३१५ पड़े-सब जगह नहीं तो कम से कम आधे जिलों फिर जैसा मैं पहले भी कह चुका हूँ, गांधी जी में। पैसे की उसे तंगी होगी, कार्यकर्ता देशभक्ति के का एसोसियेशन तो शुरू से ही 'स्वदेशी' के कार्यजोम में कुछ दिन काम अवश्य करेंगे। सैकड़ों वर्षों कर्ताओं को डरा रहा है। वह कितनी ही असली का तजरुबा है कि अधिकांश सुधारक लोगों में एक स्वदेशी वस्तुओं को विदेशी घोषित करने की धमकी अभिमान-सा आ जाता है। यह अभिमान खुद ही दे चुका है। कोई भी पूँजीपति उसके कहने के अनुकाम में बाधा डालता है। उसी तरह इसमें भी होने सार मजदूरी न दे या दुर्भाग्य से बड़ा पूँजीपति हो की सम्भावना है। इत्यादि तो वह बिरादरी से खारिज किया जायगा देहातों में कितने ही उद्योगों और व्यवसायों की और उसकी बनाई हुई वस्तु विदेशी के तुल्य होगी। उन्नति क्यों न हो उनके माल का निकास भी तो होना एसोसियेशन के पास हर छोटे-बड़े कारखानों के चाहिए। वह रेल को छोड़ कौन कर सकता है ? जाँचने का कोई साधन नहीं है, क्योंकि इसमें खर्च मोटरलारियों पर हमारी 'हकमत' क्रद्ध है। उनके बहत है जो बनी हई वस्तु के दाम बढाता है। इस वास्ते ऊपर टैक्स पर टैक्स लादे जा रहे हैं और कोशिश उसे छोटे पूँजीपतियों के कहने पर ही एतबार करना इस बात की रहती है कि वे रेल का मुक़ाबिला न कर होगा। वे कह देंगे कि हम वही वेतन देते हैं जो सकें। जो पेट्रोल ब्रह्म देश से जाकर इंग्लैंड में || आपने मंज़र किया है और उन्हें मानना पड़ेगा। या =)का मिलता है, उन्हें शा-।। का मिलता है। क्या सभी आदमी जो उस एसोसियेशन के इकराररेल के किराये इस तरह रखे गये हैं कि 'बन्दरगाहों' नामे पर दस्तखत करेंगे, धर्म-मूर्ति होंगे ? ऐसा को छोड़ जहाँ विदेशी जहाज़ आ सकते हैं, हर जगह इक़रार किस काम का जो तुरन्त ही तोड़ दिया जाय ? मुकाबले में वे ज्यादा हैं। इसके कारण इलाहाबाद या कांग्रेस ने पारसाल इस एसोसियेशन को स्थापित किसी भी शहर का जो समुद्र के तट पर न हो, बना किया और नगरों की कांग्रेसी सभाओं को प्रदर्शनियाँ माल विदेशी माल का मुक़ाबिला नहीं कर सकता। करने की आज्ञा दी। परन्तु कब ? जब उसके नियमों वही कठिनाइयाँ देहाती माल के सामने आयेंगी और का पालन किया जाय। वे नियम क्या हैं ? सिर्फ वह मशीन-द्वारा बने माल की तरह कुछ दिन भी वे वस्तुएँ उस प्रदर्शनी में रक्खी जायेंगी जो या तो मुक़ाबिले पर न खड़ा हो सकेगा। जापानका मुक़ाबिला छोटे छोटे पूँजीपति जो उस सभा के नियमों को तो दूर रहा, महँगे मुल्कों का भी ऐसी सूरत में मान चुके हों, बनावें या देहाती लोग अपने घरों मुकाबिला नहीं हो सकता। दीवान चमनलाल और में बनावें, परन्तु कुल कच्चा माल स्वदेशी ही होगा। एक कानपुर के मुसलमान डिप्टी साहब जो अलग और भी कड़ी शर्ते हैं, जिनके यहाँ लिखने की अलग जापान घूमकर आये हैं, हमें बताते है कि ज़रूरत नहीं। जो शर्ते मैंने ऊपर लिखी हैं वे बहुत कड़ी जापान में मोटर टैक्सी का किराया छः-छः, सात- नहीं हैं, फिर भी क्या वे मानी गई ? नगर-कांग्रेससात मील का 1-1 या 2 देना होता है। वहाँ कमिटियों ने बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ इत्यादि पेट्रोल एक गैलन ।-) का मिलता है और लारियों शहरों में प्रदर्शनियाँ कीं। अपने इश्तिहारों में यह छापा पर टैक्स नाममात्र को लगता है। इसी से उनकी अवश्य कि नये क़ायदों के अनुसार यह प्रदर्शनी होगी। वस्तुएँ सस्ते में एक जगह से दूसरी जगह जा पहुँचती बनारस के एक कार्यकर्ता ने मुझसे कहा कि हम हैं। जहाज का भी किराया और मुल्कों के जहाजों इस नियम का पालन अगले साल से करेंगे, से बहत कम है। यह रेल और मोटरों की महँगाई इस साल तो पुराने ही कायदों पर चलेंगे। हमारे व्यवसायियों के रास्ते में बहुत बड़ी बाधा है। इलाहाबाद की प्रदर्शनी मैंने खुद देखी और वहाँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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