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________________ ३१२ सरस्वती अतिशयोक्ति से काम लिया है । अतः उनका उल्लेख न करके यहाँ हम घीर मल्लियों के मुख्य गढ़ में सिकंदर की चढ़ाई का दिग्दर्शन इतिहासकार एरियन के कथन के आधार पर कराते हैं। मल्लियों के कई छोटे-मोटे दुर्गों को हस्तगत करने के अनन्तर यूनानियों ने उनके प्रमुख गढ़ को घेर लिया और उसमें प्रवेश करने का उद्योग आरम्भ किया। कुछ सैनिक दीवार में सुरङ्ग बनाने की चेष्टा में संलग्न हुए, कुछ फाटक तोड़ने के काम में तल्लीन हुए। कुछ कीलों और सीढ़ियों के सहारे दीवार फाँदने के लिए उचित स्थान तलाशने लगे। इन प्रयत्नों से कार्य-सिद्धि में विलम्ब होते देखकर सिकंदर अधीर हो उठा और एक सैनिक के हाथ से सीढ़ी छीनकर बड़ी फुर्ती से दीवार पर जा चढ़ा। उसके पीछे उसका ढालवाहक प्यूकेसटस ढाल लिये हुए ऊपर पहुँचा । यहाँ यह बता देना उचित होगा कि वह ढाल सिकंदर को भगवान् पालस के मन्दिर से प्राप्त हुई थी और युद्ध के अवसर पर सदा उसके सामने रहती थी । इधर अपने बादशाह को दीवार पर अकेला देख कर शाही सैनिक बड़ी आतुरता से ऊपर चढ़ने लगे । फल यह हुआ कि सीढ़ियाँ टूट गई । चढ़नेवालों को चोट आई और दूसरे ऊपर चढ़ने से रहे। सिकंदर ने देखा कि दीवार पर खड़े रहकर बुर्ज में स्थित तथा किले में छिपे हुए शत्रुओं का निशाना बनने की अपेक्षा किले के भीतर दाखिल हो जाना ज्यादा अच्छा होगा। इससे यदि शत्रुओं के मन में भय का सञ्चार हुआ जैसा कि होता आया है तो काम आसानी से बन जायगा । यदि ऐसा नहीं हुआ और वह शत्रुत्रों के क़ब्ज़े में चला गया तो उसके असा धारण साहस की बात इतिहास में अमर रहेगी । मन में ऐसा विचार आते ही वह क़िले में कूद गया और दीवार से टिककर शत्रुओं के आक्रमण और अपने सैनिकों की सहायता की राह देखने लगा । मल्लियों को उसके मुख की कान्ति तथा पोशाक की भव्यता से यह निर्णय करने में विलम्ब नहीं लगा कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ दुर्ग में प्रवेश करनेवाला व्यक्ति साधारण सैनिक हैया सम्राट् । फिर क्या था ? मल्लियों ने उसे घेर लिया और धर्मयुद्धानुसार उसे परास्त कर बन्दी बनाने के हेतु क्रमशः उससे भिड़ते गये। इस बीच में सेनाध्यक्ष वरीस और ल्योनाटस कतिपय सैनिकों के साथ दीवार फांदकर क़िले में प्रविष्ट हुए। शत्रुओं की इस वृष्टता से मल्लियों की आँखों में खून उतर आया । वे शत्रुपक्ष पर बाज की तरह टूट पड़े । युद्ध की काया पलट गई । अवरीस अपने कुछ साथियों सहित मारा गया। सिकंदर को भी एक तीर लगा जो उसके फ़ौलादी कवच को भेधकर उसकी छाती में जा घुसा । तुरन्त ही सिकंदर पछाड़ खाकर गिर पड़ा और शरीर से बहुत रक्त वह जाने के कारण उसका शरीर ठंढा पड़ने लगा । बादशाह की यह अवस्था देखकर यूनानी सैनिक बहुत चिन्तित हुए । मल्लियों के मुकाबले में ठहरना तथा अपने बादशाह की रक्षा करना उन्हें कठिन हो गया। तब उन्होंने एक मत होकर क़िले के द्वार पर क़ब्ज़ा करने और बाहर की यूनानी सेना को भीतर लाने का निश्चय किया और इसमें वे सफल भी हुए। फिर क्या था ? बाहर के सब यूनानी सैनिक क़िले में घुस आये और अपने बादशाह की शोचनीय अवस्था का समाचार सुनते ही हाहाकार करते हुए विपक्षियों पर प्रलय की भाँति टूट पड़े। वीर मल्लियों ने भी उनका वीरोचित स्वागत किया । अस्त्र-शस्त्र की भंकार, आहत वीरों की मर्मभेदी पुकार और लड़नेवालों की हुंकार से क़िले का वायुमण्डल कम्पायमान हो गया । योधागरण निर्दय और निर्मोही बनकर कटनेकाटने लगे, धरती रक्त-रञ्जित हो गई । मल्लियों का क़िला मल्लियों और यूनानियों के शव से पूरित हो गया । जब विपक्षी दल में कोई भी योधा शेष नहीं रहा, किले में रक्षित बूढ़े, स्त्री तथा बालक तक समराग्नि में भस्मीभूत हो गये तब यूनानियों का ध्यान अपने बादशाह की ओर आकृष्ट हुआ, जो प्येकेसटस www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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