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________________ ३०८ सरस्वती [भाग ३६ उत्साह, शोक, भय, विस्मय, हास्य, जुगुप्सा और स्वादु का स्थान विषयवर्ग की सूची में होना चाहिए क्रोध" । इस पर भी विस्तार में लिखना इस लेख को या न होना चाहिए। वहाँ अभी श्री गणेशाय नमः अकारण बढ़ाना है। ही पर बहस है। उनके मतानुसार स्वादु के विषय अब जरा अँगरेजी-साहित्य पर दृष्टिपात करना केवल चार हैं-मीठा, कड़वा, नमकीन और खट्टा । है जिसके लिए कहा जाता है कि वह हर एक दृष्टि से बस सूची समाप्त । बाक़ी को वे गन्ध, स्पर्श, शीत, परिपूर्ण है। उस भाषा में कोई शब्द है ही नहीं जो उष्णता दृष्टि और स्वादु का संमिश्रण बतलाते हैं। 'रस' के भाव को प्रकट करे। वे लोग स्वादु-शब्द यहीं पर उनकी 'रस' तन्मात्रा की व्याख्या की इति को प्रयोग करके उस कमी को पूरा करने की चेष्टा श्री होती है।* करते हैं। यदि स्वादु कामकारी इच्छायें उत्पन्न करता होता तो अँगरेजी-साहित्य में बहुत-कुछ लिखा * इस लेख के लिखने में विश्वकोष से पूर्ण सहायता होता। अभी उनके लेखकों में यही मतभेद है कि मिली है जो कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार की जाती है । मैं सोचा करता हूँ प्रतिपल लेखक, श्रीयुत कुजविहारी चौबे __ मैं सोचा करता हूँ प्रतिपल । जब आता है सुन्दर सावन, जब आता स्वर्णिम उपाकाल, हँस-हँस धन बरसाते जीवन, हँस-हँस सरसिज होते निहाल, सज जाता अवनी का आँगन, कल-कूजन करते विहग-बाल, तब तड़प-तड़प कर तड़ित-दृश्यतब गिरा-गिरा कर ओस-बिन्दु होता रहता किसलिए विकल ? मैं॥ क्यों रोता रहता तारक-दल ? मैं॥ सजता है जब दीपक ललाम, जब आता है मञ्जल दिनान्त, द्युति छा जाती नयनाभिराम, हो जाता झंझावात शान्त, ज्योतित हो उठते धाम-धाम, मुखरित हो उठता विपिन प्रान्त, तब दीप-शिखा पर शलभ-वृन्दतब मुरझा जाती है नलिनी क्यों आहुत हो जाते जल-जल ? मैं॥ किस मूक व्यथा से हो विह्वल ? मैं० ।। आया यह सुभग वसन्त-मास, सज जाता जब रजनी का तन, फैला सर्वत्र विलास-लास, झिलमिल-झिलमिल हँसते उड़गन, छाया जग में उल्लास-हास, हो जाते कुमुद प्रसन्न वदन, पर भव-वैभव से उदासीनतब किसका दग्ध हृदय नभ से क्यों हुआ आज मेरा उरतल ? मैं० ।। गिरता है भूर पर पिघल-पिघल ? मैं० ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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